राधेश्यामी छंद / मत्त सवैया
राधेश्यामी छंद मत्त सवैया के नाम से भी प्रसिद्ध है। पंडित राधेश्याम ने राधेश्यामी रामायण 32 मात्रिक पद में रची। छंद में कुल चार पद होते हैं तथा क्रमागत दो-दो पद तुकान्त होते हैं। प्रति पद पदपादाकुलक छंद का दो गुना होता है l तब से यह छंद राधेश्यामी छंद के नाम से प्रसिद्धि पा गया।
पदपादाकुलक छंद के एक चरण में 16 मात्रा होती हैं , आदि में द्विकल (2 या 11) अनिवार्य होता है किन्तु त्रिकल (21 या 12 या 111) वर्जित होता है।
राधेश्यामी छंद का मात्रा बाँट इस प्रकार तय होता है:
2 + 12 + 2 = 16 मात्रा (पद का प्रथम चरण)
2 + 12 + 2 = 16 मात्रा (पद का द्वितीय चरण)
द्विकल के दोनों रूप (2 या 1 1) मान्य है। तथा 12 मात्रा में तीन चौकल, अठकल और चौकल या चौकल और अठकल हो सकते हैं। चौकल और अठकल के नियम निम्न प्रकार हैं जिनका पालन अत्यंत आवश्यक है।
चौकल:- (1) प्रथम मात्रा पर शब्द का समाप्त होना वर्जित है। 'करो न' सही है जबकि 'न करो' गलत है।
(2) चौकल में पूरित जगण जैसे सरोज, महीप, विचार जैसे शब्द वर्जित हैं।
अठकल:- (1) प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द समाप्त होना वर्जित है। 'राम कृपा हो' सही है जबकि 'हो राम कृपा' गलत है क्योंकि राम शब्द पंचम मात्रा पर समाप्त हो रहा है। यह ज्ञातव्य हो कि 'हो राम कृपा' में विषम के बाद विषम शब्द पड़ रहा है फिर भी लय बाधित है।
(2) 1-4 और 5-8 मात्रा पर पूरित जगण शब्द नहीं आ सकता।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
वाह वाह आद.👍👍👍👍 आपसे यहाँ मिलकर प्रसन्नता हुई।
ReplyDeleteमुकेशजी आपका ब्लॉग में अभिनन्दन है। अपने अमूल्य सुझावों और विचार से ब्लॉग को अवश्य अनुगृहीत करते रहें।
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