Saturday, July 20, 2019

मुक्तक (राजनीति-1)

हम जैसों के अच्छे दिन तो, आ न सकें कुछ ने ठाना,
पास हमारे फटक न सकते, बुरे दिवस कुछ ने माना,
ये झुनझुना मगर अच्छा है, अच्छे दिन के ख्वाबों का,
मात्र खिलौना कुछ ने इसको, जी बहलाने का जाना 

(ताटंक छंद आधारित)
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(फाइव ट्रिलियन अर्थव्यवस्था पर)

आज देश में जहाँ देख लो काले घन मँडराये हैं,
मँहगाई की बारिश में सब जमकर खूब नहाये हैं,
अच्छे दिन का अर्थ व्यवस्था में कुछ छोंक लगाने को,
पंजे पर दर्जन भर जीरो रख अब सपना लाये हैं।

(ताटंक छंद आधारित)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-11-18

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