जो भी सत्ता पा जाता है, दिखता मद में चूर है,
संवेदन से जनता लेकिन, भारत की भरपूर है,
लोकतंत्र को कम मत आँको, हरदम इसका भान हो,
काम करो तो सत्ता भोगो, वरना दिल्ली दूर है।
(16+13 मात्रा)
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प्रथम विरोधी को शह दे कर, दिल के घाव दुखाते हैं,
फिर उन रिसते घावों पर वे, मलहम खूब लगाते हैं,
'फूट डालके राज करो' का, है सिद्धांत पुराना ये,
बचके रहना ऐसों से जो, अपना बन दिखलाते हैं।
(ताटंक छंद आधारित)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-11-18
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