संस्कृति अरु संस्कार हमारे, होते विकशित शिक्षा से,
रहन-सहन, उद्देश्य, आचरण, हों निर्धारित शिक्षा से,
अंधाधुंध पढ़ाते फिर भी, हम बच्चों को अंग्रेजी,
सही दिशा क्या देश सकेगा, पा इस कलुषित शिक्षा से।
जीवन-उपवन के माली हैं, गुरुवर वृन्द हमारे ये,
भवसागर में डगमग नौका, उसके दिव्य सहारे ये,
भावों का आगार बना कर, जीवन सफल बनाते हैं,
बन्द नयन को ज्ञान ज्योति से, खोलें गुरुजन न्यारे ये।
(ताटंक छंद आधारित)
*********
चरैवेति का मूल मन्त्र ले, आगे बढ़ते जाएंगे,
जीव मात्र से प्रेम करेंगे, सबको गले लगाएंगे,
ऐतरेय ब्राह्मण ने हमको, अनुपम ये सन्देश दिया,
परि-व्राजक बन सदा सत्य का, अन्वेषण कर लाएंगे।
(लावणी छंद आधारित)
*******
मुक्तक (समर्पण)
उपकार को जो मानने में मन से ही असमर्थ है,
मन में नहीं यदि त्याग तो जीने का फिर क्या अर्थ है,
माता, पिता, गुरु, देश हित जिसमें समर्पण है नहीं,
ऐसे अधम पशु तुल्य का जीना जगत में व्यर्थ है।
(2212*4)
******
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-11-16
No comments:
Post a Comment