Wednesday, February 5, 2020

ग़ज़ल (जीवन पथिक संसार में)

बह्र:- 2212*4

जीवन पथिक संसार में चलते चलो तुम सर्वदा,
राहों में आए कष्ट जो सहके चलो तुम सर्वदा।

अनजान सी राहें यहाँ मंजिल कहीं दिखती नहीं,
काँटों भरी इन राहों में हँसके चलो तुम सर्वदा।

बीते हुए से सीख लो आयेगा उस को थाम लो,
मुड़ के कभी देखो नहीं बढ़ते चलो तुम सर्वदा।

बहता निरंतर जो रहे गंगा सा निर्मल वो रहे,
जीवन में ठहरो मत कभी बहते चलो तुम सर्वदा।

मासूम कितने रो रहे अबला यहाँ नित लुट रही,
दुखियों के मन मन्दिर में रह बसते चलो तुम सर्वदा।

इस ज़िंदगी के रास्ते आसाँ कभी होते नहीं,
तूफान में भी दीप से जलते चलो तुम सर्वदा।

जो देश हित में प्राण दे सर्वस्व न्योछावर करे,
ऐसे इरादों को 'नमन' करते चलो तुम सर्वदा।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-10-2016

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