Wednesday, June 3, 2020

ग़ज़ल (आपकी दिल में समातीं चिट्ठियाँ)

बह्र:- 2122  2122  212

आपकी दिल में समातीं चिट्ठियाँ,
गुल महब्बत के खिलातीं चिट्ठियाँ।

दिल रहे बेचैन, जब मिलतीं नहीं
नाज़नीं सी मुस्कुरातीं चिट्ठियाँ।

दूर जब दिलवर बसे परदेश में,
आस के दीपक जलातीं चिट्ठियाँ।

याद में दिलबर की जब हो दिल उदास,
लाख खुशियाँ साथ लातीं चिट्ठयाँ।

रंज दें ये, दर्द दें ये, कहकहे,
रंग सब दिल में सजातीं चिट्ठियाँ।

सूने दिन युग सी लगें रातें हमें,
देर से जब उनकी आतीं चिट्ठियाँ।

जब 'नमन' बेज़ार दिल हो तब लिखो,
शायरी की मय पिलातीं चिट्ठियाँ।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-06-19

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