Thursday, March 25, 2021

मनहरण घनाक्षरी "होली के रंग"

(1)

होली की मची है धूम, रहे होलियार झूम,
मस्त है मलंग जैसे, डफली बजात है।

हाथ उठा आँख मींच, जोगिया की तान खींच,
मुख से अजीब कोई, स्वाँग को बनात है।

रंगों में हैं सराबोर, हुड़दंग पुरजोर,
शिव के गणों की जैसे, निकली बरात है।

ऊँच-नीच सारे त्याग, एक होय खेले फाग,
'बासु' कैसे एकता का, रस बरसात है।।

****************
(2)

फाग की उमंग लिए, पिया की तरंग लिए,
गोरी जब झूम चली, पायलिया बाजती।

बाँके नैन सकुचाय, कमरिया बल खाय,
ठुमक के पाँव धरे, करधनी नाचती।

बिजुरिया चमकत, घटा घोर कड़कत,
कोयली भी ऐसे में ही, कुहुक सुनावती।

पायल की छम छम, बादलों की रिमझिम,
कोयली की कुहु कुहु, पञ्च बाण मारती।।

****************
(3)

बजती है चंग उड़े रंग घुटे भंग यहाँ,
उमगे उमंग व तरंग यहाँ फाग में।

उड़ता गुलाल भाल लाल हैं रसाल सब,
करते धमाल दे दे ताल रंगी पाग में।

मार पिचकारी भीगा डारी गोरी साड़ी सारी,
भरे किलकारी खेले होरी सारे बाग में।

'बासु' कहे हाथ जोड़ खेलो फाग ऐंठ छोड़,
किसी का न दिल तोड़ मन बसी लाग में।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
07-03-2017

2 comments:

  1. मिथिलेश वामनकारजीThursday, March 25, 2021 6:04:00 PM

    खूब लिखे छंद जय जय बासुदेव नन्द
    एक एक बंद आज हृदय को भा गए 

    पायल की छमछम, जगमग साड़ियों की
    गोरे-गोरे मुखड़े कहाँ से ले के आ गए 

    फाग की तरंग लिखी मन की उमंग लिखी
    मारी पिचकारी और ओबीओ पे छा गए 

    मन की ये पिचकारी वाह वाह छोड़ रही
    छंद मन छूते-छूते मन में समा गए 

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  2. अशोक कुमार रक्ताले जीThursday, March 25, 2021 6:07:00 PM

    फागुन का राग कहीं, फागुन के रंग कहीं,
    तीनों छंद फागुन की, मीठी सी तरंग हैं |

    गोरी का शृंगार गलहार और प्यार कहीं ,
    भावना में जहां तहां , फागुन के रंग हैं ,

    शिव के गणों की टोली, मतवाली फाग गाती,
    नर-नारी यहाँ वहाँ, देखो सब दंग हैं,

    स्वीकारें बधाई वासुदेव जी श्रृंगार पर ,
    पढ़—पढ़ ओ बी ओ के , गण भी मलंग हैं ||..

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