Tuesday, June 15, 2021

मुक्तक (नारी)

पहचान ले नारी तू ताकत जो छिपी तुझ में,
कारीगरी उसकी जो सब ही तो सजी तुझ में,
मंजिल न कोई ऐसी तू पा न सके जिसको,
भगवान दिखे उसमें ममता जो बसी तुझ में।

(221  1222)*2
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बदी के बदले भलाई सदा न पाओगे,
सितम ढहाओगे, तुम भी वफ़ा न पाओगे,
सदा ही जुल्म किया औरतों पे मर्दों ने,
डरो ख़ुदा से नहीं तो पता न पाओगे।

(1212  1122  1212  22)
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जीवन में जो दाखिल हुई सौगात बनकर दिलरुबा,
जब हुस्न था तब तक रही नगमात बनकर दिलरुबा,
तू औरतों की हक़ परस्ती की करे बातें बड़ी,
तो क्यों रहे तेरे लिये खैरात बनकर दिलरुबा।

(2212×4)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-04-2017

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