पंचिक (बतरस)
विधाओं की वर्जनाओं से परे,, विशुद्ध बतरस का आनंद लीजिए 😃😃🙏
(1)
पत्नी, पड़ौसन, और पंडिताइन काकी
इनसे कोई भी, विषय कहाँ रहा बाकी
बाजार से घर की खाटी समीक्षा
भेद बताने की, कितनी तितीक्षा
काट करे कोई, फिर बनती है झाँकी
(पत्नी, पड़ौसन, और पंडिताइन काकी)
(2)
उसकी बहु, कहना मत, बात है क्या की
सुना है मैने, कि वो रसिकन है पाकी
अरे, डिस्को में जाती है वो
सुना, रेस्त्रां में खाती है वो
हाय राम, ये ही क्या, देखना था बाकी
(पत्नी, पड़ौसन, और पंडिताइन काकी।)
(3)
ये शर्माईन, इसकी तो बात ही न्यारी है
चालीसी मे आ गई, सजने की मारी है
शर्मा को देखो उड़ गये बाल
बेचारा घूमे, लगता बेहाल
अपने को क्या मतलब, पर कहती हूँ, क्या की।
(पत्नी, पड़ौसन, और पंडिताइन काकी।)
(4)
वो वर्मा की छोरी, इक दिन कर देगी नाम
सारे दिन स्कूटी पे, हांडने भर का काम
बित्ती है पर देखो तो कपड़े
रोज नये पटयाले, कंगन, कड़े
वैसे अपने को क्या, न माँ ने परवा की
(पत्नी, पड़ौसन, और पंडिताइन काकी।)
(5)
देर हो गई री मुझे, दूध लेने जाना
हाँ, गुप्ता के छोरे को थोड़ा समझाना
दढियल क्यों बन बैठा
रहता भी है ऐंठा
अपने को क्या है पर, मरजी गुप्ता की
(पत्नी, पड़ौसन, और पंडिताइन काकी।)
(6)
कुछ भी हो, सुख दुख मे काम तो आती
इसके घर की सब्जी, उसके घर जाती
पल भर की नाराजी
अगले पल हो राजी
कहती, तूने भी सुन ली न कमला की
(पत्नी, पड़ौसन, और पंडिताइन काकी
इनसे कोई भी, विषय कहाँ रहा बाकी)
😃😃😃😃
सुप्रभात सा
जैगोबिंद बिरामण
लोसल
वाह जय सा एक से बढकर एक पंचिक। घर की औरतें और आस पास की औरतों की बतकही या 'थारी म्हारी' में इस विधा की आत्मा उजागर कर दी आपने। पंचिक विधा का मूल स्वरूप यही है। विशुद्ध हास्य की दृष्टि से किसी काल्पनिक पात्र को निशाना बनाना। मजा आ गया
ReplyDelete👏👏😀😃👏👏
वाहः पंचिक विधा में खूब पंच मार दिए जय जी आपने।👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
ReplyDeleteमैं भी इस मनोहारी हास्य विधा में प्रयास कर रही हूँ, अभी पंच लगना बाकी है😅
बहुत ही सुंदर हास्यप्रद संग्रहनीय रचना हेतु बधाई आपको।