Monday, August 9, 2021

32 मात्रिक छंद "आँसू"

 32 मात्रिक छंद

"आँसू"

अंतस के गहरे घावों को, कर जो याद निरंतर रोती।
उसी हृदय की माला से ये, टूट टूट कर बिखरे मोती।।
मानस-सागर की लहरों से, फेन समान अश्रु ये बहते।
छिपी हुई अंतर की पीड़ा, जग समक्ष ये आँसू कहते।।

दुखियारी उस माँ के आँसू, निराकार जिसका भीषण दुख।
ले कर के साकार रूप ये, प्रकट हुये हैं जग के सम्मुख।।
भाग्यवती गृहणी वह सुंदर, बसी हुई थी जिसकी दुनिया।
प्राप्य उसे सब जग के वैभव, खिली हुई थी जीवन बगिया।।

एक सहारा सम्पन्ना का, सभी भाँति अनुरूप उसी के।
जीवन में उनके हरियाली, बीत रहे पल बहुत खुशी के।।
दोनों की जीवन रजनी में, सुंदर एक इंदु मुकुलित था।
मधुर चंद्रिका में उस शशि की, जीवन उनका उद्भासित था।।

बिता रही थी उनका जीवन, नव शिशु की मधुरिम  कल क्रीडा़।
हो कर वाम विधाता उनसे, पर ला दी यह भीषण पीड़ा।।
छीन लिया उस रमणी से हा! उसके जीवन का धन सारा।
वह सुहाग सिन्दूर गया धुल, जीवन में छाया अँधियारा।।

उस सुहाग को लुटे हुये पर, एक वर्ष का लगा न फेरा।
दुख की सेना लिये हुये अब, दूजी बड़ विपदा ने घेरा।।
नव मयंक से छिटक रहा था, जो कुछ भी थोड़ा उजियाला।
वाम विधाता भेज राहु को, ग्रसित उसे भी करवा डाला।।

कष्टों का तूफान गया छा, उस दुखिया के जीवन में अब,
जग उसका वीरान गया हो, छूट गये रिश्ते नाते सब।
भटक भटक हर गली द्वार वह, स्मरण करे इस पीड़ा के क्षण।
उस जीवन की यादों में अब, ढुलका देती दो आँसू कण।।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
23-05-2016

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