देश से जो पाएं मान, जान और पहचान,
यहाँ के ही खान-पान, से वो पेट भरते।
देश का वे अपमान, करें भूल स्वाभिमान,
जो विदेशी गुणगान, लाज छोड़ करते।
यहाँ तोड़ वहाँ जोड़, अपनों से मुख मोड़।
देश का जो साथ छोड़, दूसरों पे मरते।
देश बीच आँख मीच, रहते जो ऐसे नीच,
खींच उन्हें राह बीच, प्राण क्यों न हरते।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
27-12-16
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