Wednesday, December 4, 2019

ग़ज़ल (मुसीबतों में जो घिर के बिखरते जाते हैं)

बह्र: 1212  1122  1212  22

मुसीबतों में जो घिर के बिखरते जाते हैं,
समझ लो पंख वे खुद के कतरते जाते हैं।

अकेले आहें भरें और' सिहरते जाते हैं,
किसी की यादों में लम्हे गुजरते जाते हैं।

हजार आफ़तों में भी जो मुस्कुरा के जियें,
वे ज़िंदगी में सदा ही निखरते जाते हैं।

सभी के साथ मिलाकर क़दम जो चलते नहीं,
वो हर मक़ाम पे यारो ठहरते जाते हैं।

किसी के इश्क़ का ऐसा असर हुआ उनपर
कि देख आइना घँटों सँवरते जाते हैं।

उलझ के दुनिया की बातों में जो नहीं रहते,
वो ज़िन्दगी में बड़े काम करते जाते हैं

'नमन' तू उनसे बचा कर ही चलना दामन को,
जो दूसरों पे ही इल्ज़ाम धरते जाते हैं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
05-10-19

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