Wednesday, February 13, 2019

एक मज़ाहिया ग़ज़ल (नये अमीर हैं)

बह्र:- 1212  1122  1212   22/112

नये अमीर हैं लटके जुराब पहने हुए,
बड़ी सी तोंद पे टाई जनाब पहने हुए।

अकड़ तो देखिए इनकी नबाब जैसे यही,
चमकता सूट है जूते खराब पहने हुए,

फटी कमीज पे लगता है ऐसा सूट नया,
सुनहरे कोट को जैसे उकाब पहने हुए।

चबाके पान बिखेरे हैं लालिमा मुख की,
गज़ब की लाल है आँखें शराब पहने हुए।

हुजूर वक्त की चाँदी जो सर पे बिखरी है,
ढ़के हुए हैं इसे क्यों खिजाब पहने हुए।

भरा है दाग से दामन नहीं कोई परवाह,
छिपाए शक्ल को बैठे निकाब पहने हुए।

फ़लक से उतरा नमूना रईसजादा 'नमन',
ख़याल छोटे मगर खूब ख्वाब पहने हुए।

उकाब=एक पौराणिक बहुत बड़ा पक्षी

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-10-2016

धुन- खिजाँ के फूल पे आती कभी बहार नहीं।

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