बह्र:- 1212 1122 1212 22/112
बला हो जितनी बड़ी फिर भी टल तो सकती है,
हो आस कितनी भी हल्की वो पल तो सकती है।
बुरी हो जितनी भी किस्मत बदल तो सकती है,
कि लड़खड़ाके भी हालत सँभल तो सकती है।
ये सोच प्यार का इज़हार तक न उनसे किया,
कहे न कुछ वे मगर बात खल तो सकती है।
ये रोग इश्क़ का आखिर गुजर गया हद से,
मिले जो उनकी दुआ अब भी फल तो सकती है।
सनम निकाब न महफ़िल में तुम उठा देना,
झलक से सब की तबीअत मचल तो सकती है।
अवाम जाग रही है ओ लीडरों सुन लो,
चली न उसकी जो अब तक वो चल तो सकती है।
अगर तुम्हारे में है टीस देख जुल्मों को,
समय के साथ 'नमन' वो उबल तो सकती है।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-04-2018
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