बह्र:- 2122 2122 212
आज कहने जा रहा कुछ अनकही,
बात अक्सर मन में जो आती रही।
आज की सच्चाई मित्रों है यही,
सबके मन भावे कहो हरदम वही।
खोखली अब हो रही रिश्तों की जड़,
मान्यताएँ जा रहीं हैं सब ढ़ही।
खो रहे माता पिता सम्मान अब,
भावनाएँ आधुनिकता में बही।
आज बे सिर पैर की सब हाँकते,
हो गया क्या अब दिमागों का दही।
हर तरफ आतंकियों का जोर है,
निरपराधों के लहू से तर मही।
बात कड़वी पर खरी कहता 'नमन',
तय जमाना ही करे क्या है सही।
आज कहने जा रहा कुछ अनकही,
बात अक्सर मन में जो आती रही।
आज की सच्चाई मित्रों है यही,
सबके मन भावे कहो हरदम वही।
खोखली अब हो रही रिश्तों की जड़,
मान्यताएँ जा रहीं हैं सब ढ़ही।
खो रहे माता पिता सम्मान अब,
भावनाएँ आधुनिकता में बही।
आज बे सिर पैर की सब हाँकते,
हो गया क्या अब दिमागों का दही।
हर तरफ आतंकियों का जोर है,
निरपराधों के लहू से तर मही।
बात कड़वी पर खरी कहता 'नमन',
तय जमाना ही करे क्या है सही।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन',
तिनसुकिया
12-11-2018
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