Sunday, August 4, 2019

ग़ज़ल (आप का साथ मिला)

बह्र: 2122 1122 1122  22

आप का साथ मिला, मुझ को सँवर जाना था,
पर लिखा मेरे मुक़द्दर में बिखर जाना था।

आ सका आपके नज़दीक न उल्फ़त में सनम,
तो मुझे इश्क़ में क्या हद से गुज़र जाना था।

पहले गर जानता ग़म इस में हैं दोनों के लिये,
इस मुहब्बत से मुझे तब ही मुकर जाना था।

जब भी वो आँख दिखाता है, ख़ता खाता है,
शर्म गर होती उसे कब का सुधर जाना था।

जो लड़े हक़ के लिये, सर पे कफ़न रखते थे,
अहले दुनिया से भला क्यों उन्हें डर जाना था।

सात दशकों से अधिक हो गये आज़ादी को,
देश का भाग्य तो इतने में निखर जाना था।

जो समझते हैं 'नमन' देश को जागीर_अपनी,
ये नशा उनका अभी तक तो उतर जाना था।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-02-19

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