Wednesday, February 9, 2022

निधि छंद

 निधि छंद "सुख-सार"

उनका दे साथ।
जो लोग अनाथ।।
ले विपदा माथ।
थामो तुम हाथ।।

दुखियों के कष्ट।
कर दो तुम नष्ट।।
नित बोलो स्पष्ट।
मत होना भ्रष्ट।।

मन में लो धार।
अच्छा व्यवहार।।
मत मानो हार।
दुख कर स्वीकार।।

जग की ये रीत।
सुख में सब मीत।।
दुख से कर प्रीत।
लो जग को जीत।।

जीवन का भार।
चलना दिन चार।।
अटके मझधार।
कैसे हो पार।।

कलुष घटा घोर।
तम चारों ओर।।
दिखता नहिं छोर।
कब होगी भोर।।

आशा नहिं छोड़।
भाग न मुख मोड़।।
साधन सब जोड़।
निकलेगा तोड़।।

सच्ची पहचान।
बन जा इंसान।।
जग से पा मान।
ये सुख की खान।।
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निधि छंद विधान -

यह नौ मात्रा का सम मात्रिक चार चरणों का छंद है। इसका चरणान्त ताल यानी गुरु लघु से होना आवश्यक है। बची हुई 6 मात्राएँ छक्कल होती हैं।  तुकांतता दो दो चरण या चारों चरणों में समान रखी जाती है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
19-07-16 

Thursday, February 3, 2022

स्रग्धरा छंद

    स्रग्धरा छंद "शिव स्तुति"

शम्भो कैलाशवासी, सकल दुखित की, पूर्ण आशा करें वे।
भूतों के नाथ न्यारे, भव-भय-दुख को, शीघ्र सारा हरें वे।।
बाघों की चर्म धारें, कर महँ डमरू, कंठ में नाग साजें।
शाक्षात् हैं रुद्र रूपी, मदन-मद मथे, ध्यान में वे बिराजें।।

गौरा वामे बिठाये, वृषभ चढ़ चलें, आप ऐसे दुलारे।
माथे पे चंद्र सोहे, रजत किरण से, जो धरा को सँवारे।।
भोले के भाल साजे, शुचि सुर-सरिता, पाप की सर्व हारी।
ऐसे न्यारे त्रिनेत्री, विकल हृदय की, पीड़ हारें हमारी।।

काशी के आप वासी, शुभ यह नगरी, मोक्ष की है प्रदायी।
दैत्यों के नाशकारी, त्रिपुर वध किये, घोर जो आततायी।।
देवों की पीड़ हारी, भयद गरल को, कंठ में आप धारे।
देवों के देव हो के, परम पद गहा, सृष्टि में नाथ न्यारे।।

भक्तों के प्राण प्यारे, घट घट बसते, दिव्य आशीष देते।
भोलेबाबा हमारे, सब अनुचर की, क्षेम की नाव खेते।।
कापाली शूलपाणी, असुर लख डरें, भक्त का भीत टारे।
हे शम्भो 'बासु' माथे, वरद कर धरें, आप ही हो सहारे।।

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स्त्रग्धरा छंद विधान -

"माराभाना ययाया", त्रय-सत यति दें, वर्ण इक्कीस या में।
बैठा ये सूत्र न्यारा, मधुर रसवती, 'स्त्रग्धरा' छंद राचें।।

"माराभाना ययाया"= मगण, रगण, भगण, नगण, तथा लगातार तीन यगण।
222  212  2,11  111  12,2  122  122 =  कुल 21 वर्ण की वर्णिक छंद।
त्रय-सत यति दें= सात सात वर्ण पर यति।
चार पद, दो दो पद समतुकांत।

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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Sunday, January 30, 2022

मुक्तक "टूलकिट"

(गीतिका छंद वाचिक)

टूलकिट से देश की छवि लोग धूमिल कर रहे,
शील भारत भूमि का बेशर्म हो ये हर रहे,
देशवासी इन सभी की असलियत पहचान लो,
पीढियों से देश को चर घर ये अपना भर रहे।

लोभ में सत्ता के कितने लोग अब गिरने लगे,
हो गये हैं टूलकिट के आज ये सारे सगे,
बाहरी की हैसियत क्या हम पे जो शासन करें,
लोग वे अपने ही जिन से हम रहे जाते ठगे।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
03-01-22

Wednesday, January 26, 2022

गीतिका छंद “26 जनवरी”


 गीतिका छंद

“26 जनवरी”

ग़ज़ल (वाचिक स्वरूप)

जनवरी के मास की छब्बीस तारिख आज है,
आज दिन भारत बना गणतन्त्र सबको नाज़ है।

ईशवीं उन्नीस सौ पच्चास की थी शुभ घड़ी,
तब से गूँजी देश में गणतन्त्र की आवाज़ है।

आज के दिन देश का लागू हुआ था संविधान,
है टिका जनतन्त्र इस पे ये हमारी लाज है।

सब रहें आज़ाद हो रोजी कमाएँ खुल यहाँ,
एक हक़ सब का यहाँ जो एकता का राज़ है।

राजपथ पर आज दिन जब फ़ौज़ की देखें झलक,
छातियाँ दुश्मन की दहले उसकी ऐसी गाज़ है।

संविधान_इस देश की अस्मत, सुरक्षा का कवच,
सब सुरक्षित देश में सर पे ये जब तक ताज है।

मान दें सम्मान दें गणतन्त्र को नित कर ‘नमन’,
ये रहे हरदम सुरक्षित ये सभी का काज है।

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गीतिका छंद विधान – (वाचिक स्वरूप) <– लिंक

गीतिका छंद 26 मात्रा प्रति पद का सम पद मात्रिक छंद है जो 14 – 12 मात्रा के दो यति खंडों में विभक्त रहता है। छंद चार चार पदों के खंड में रचा जाता है। छंद में 2-2 अथवा चारों पदों में समतुकांतता रखी जाती है।

संरचना के आधार पर गीतिका छंद निश्चित वर्ण विन्यास पर आधारित मापनी युक्त छंद है। जिसकी मापनी 2122*3 + 212 है। इसमें गुरु (2) को दो लघु (11) में तोड़ा जा सकता है जो सदैव एक ही शब्द में साथ साथ रहने चाहिए।

ग़ज़ल और गीतिकाओं में यह छंद वाचिक स्वरूप में अधिक प्रसिद्ध है जिसमें उच्चारण के आधार पर काफी लोच संभव है। वाचिक स्वरूप में यति के भी कोई रूढ नियम नहीं है और उच्चारण अनुसार गुरु वर्ण को लघु मानने की भी छूट है।

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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

Thursday, January 20, 2022

मुक्तक "याद"

मुक्तक

हमें वे याद आते भी नहीं है,
कभी हमको सुहाये भी नहीं है,
मगर समझायें नादाँ दिल को कैसे,
कि पूरे इस से जाते भी नहीं है।

(1222  1222  122)
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ये तन्हाई सताती है नहीं बर्दास्त अब होती,
बसी यादें जो दिल में है नहीं बर्खास्त अब होती,
सनम तुझ को मनाते हम गए हैं ऊब जीवन से,
मिटा दो दूरियाँ दिल से नहीं दर्खास्त अब होती।

(1222*4)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
02-07-19

Wednesday, January 12, 2022

रास छंद "कृष्णावतार"

हाथों में थी, मात पिता के, सांकलियाँ।
घोर घटा में, कड़क रहीं थी, दामिनियाँ।
हाथ हाथ को, भी नहिं सूझे, तम गहरा।
दरवाजों पर, लटके ताले, था पहरा।।

यमुना मैया, भी ऐसे में, उफन पड़ी।
विपदाओं की, एक साथ में, घोर घड़ी।
मास भाद्रपद, कृष्ण पक्ष की, तिथि अठिया।
कारा-गृह में, जन्म लिया था, मझ रतिया।।

घोर परीक्षा, पहले लेते, साँवरिया।
जग को करते, एक बार तो, बावरिया।
सीख छिपी है, हर विपदा में, धीर रहो।
दर्शन चाहो, प्रभु के तो हँस, कष्ट सहो।।

अर्जुन से बन, जीवन रथ का, स्वाद चखो।
कृष्ण सारथी, रथ हाँकेंगे, ठान रखो।
श्याम बिहारी, जब आते हैं, सब सुख हैं।
कृष्ण नाम से, सारे मिटते, भव-दुख हैं।।
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रास छंद विधान -

रास छंद 22 मात्राओं का सम पद मात्रिक छंद है जिसमें 8, 8, 6 मात्राओं पर यति होती है। पदान्त 112 से होना आवश्यक है। चार पदों का एक छंद होता है जिसमें 2-2 पद सम तुकांत होने चाहिये। मात्रा बाँट प्रथम और द्वितीय यति में एक अठकल या 2 चौकल की है। अंतिम यति में 2 - 1 - 1 - 2(ऽ) की है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
24-08-2016

Saturday, January 8, 2022

ग़ज़ल (राह-ए-उल्फ़त में डट गये होते)

बह्र:- 2122  1212  22

राह-ए-उल्फ़त में डट गये होते,
खुद ब खुद ख़ार हट गये होते।

ज़ीस्त से भागते न मुँह को चुरा,
सब नतीज़े उलट गये होते।

प्यार की इक नज़र ही काफी थी,
पास हम उनके झट गये होते।

इश्क़ में खुश नसीब होते हम,
सारे पासे पलट गये होते।

सब्र का बाँध तोड़ देते गर,
अब्र अश्कों के फट गये होते,

बेहया ज़िंदगी न है 'मंज़ूर',
शर्म से हम तो कट गये होते।

साथ अपनों का गर हमें मिलता,
दर्द-ओ-ग़म कुछ तो घट गये होते।

दूर क्यों उनसे हो गये थे 'नमन',
उनके दर से लिपट गये होते।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
17-09-19

Wednesday, January 5, 2022

पुटभेद छंद "बसंत छटा"

छा गये ऋतुराज बसंत बड़े मन-भावने।
दृश्य आज लगे अति मोहक नैन सुहावने।
आम्र-कुंज हरे चित, बौर लदी हर डाल है।
कोयली मधु राग सुने मन होत रसाल है।।

रक्त-पुष्प लदी टहनी सब आज पलास की।
सूचना जिमि देवत आवन की मधुमास की।।
चाव से परिपूर्ण छटा मनमोहक फाग की।
चंग थाप कहीं पर, गूँज कहीं रस राग की।।

ठंड से भरपूर अभी तक मोहक रात है।
शीत से सित ये पुरवा सिहरावत गात है।।
प्रेम-चाह जगा कर व्याकुल ये उसको करे।
दूर प्रीतम से रह आह भयावह जो भरे।।

काम के सर से लगते सब घायल आज हैं।
देखिये जिस और वहाँ पर ये मधु साज हैं।।
की प्रदान नवीन उमंग तरंग बसंत ने।
दे दिये नव भाव उछाव सभी ऋतु-कंत ने।।
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पुटभेद छंद विधान-

"राससाससुलाग" सुछंद रचें अति पावनी।
वर्ण सप्त दशी 'पुटभेद' बड़ी मन भावनी।।

"राससाससुलाग" = रगण सगण सगण सगण सगण लघु गुरु।

(212  112  112   112  112  1 2)
17 वर्ण प्रति चरण,
4 चरण,2-2 चरण समतुकान्त।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
25-01-19

Saturday, January 1, 2022

आंग्ल नव-वर्ष दोहे

दोहा छंद


प्रथम जनवरी क्या लगी, काम दिये सब छोड़।
शुभ सन्देशों की मची, चिपकाने की होड़।।

पराधीनता की हमें, जिनने दी कटु पाश।
उनके इस नव वर्ष में, हम ढूँढें नव आश।।

सात दशक से ले रहे, आज़ादी में साँस।
पर अब भी हम जी रहे, डाल गुलामी फाँस।।

व्याह पराया हो रहा, मची यहाँ पर धूम।
अब्दुल्ला इस देश का, नाच रहा है झूम।।

अपनों को दुत्कारते, दूजों से रख चाह।
सदियों से हम भोगते, आये इसका दाह।।

सत्य सनातन छोड़ कर, पशुता से क्यों प्रीत।
'बासुदेव' मन है व्यथित, लख यह उलटी रीत।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
01-01-2019

Tuesday, December 28, 2021

रूपमाला छंद "राम महिमा"

रूपमाला छंद / मदन छंद

राम की महिमा निराली, राख मन में ठान।
अन्य रस का स्वाद फीका, भक्ति रस की खान।
जागती यदि भक्ति मन में, कृपा बरसी जान।
नाम साँचो राम को है, लो हृदय में मान।।

राम को भज मन निरन्तर, भक्ति मन में राख।
इष्ट पे रख पूर्ण आश्रय, मत बढ़ाओ शाख।
शांत करके मन-भ्रमर को, एक का कर जाप।
राम-रस को घोल मन में, दूर हो सब ताप।।

नाम प्रभु का दिव्य औषधि, नित करो उपभोग।
दाह तन मन की हरे ये, काटती भव-रोग।।
सेतु सम है राम का जप, जग समुद्र विशाल।
आसरा इसका मिले तो, पार हो तत्काल।।

रत्न सा जो है प्रकाशित, राम का वो नाम।
जीभ पे इसको धरो अरु, देख इसका काम।।
ज्योति इसकी जगमगा दे, हृदय का हर छोर।
रात जो बाहर भयानक, करे उसकी भोर।।

गीध, शबरी और बाली, तार दीन्हे आप।
आप सुनते टेर उनकी, जो करें नित जाप।।
राम का जप नाम हर क्षण, पवनसुत हनुमान।
सकल जग के पूज्य हो कर, बने महिमावान।।

राम को जो छोड़ थामे, दूसरों का हाथ।
अंत आयेगा निकट जब, कौन देगा साथ।
नाम पे मन रख भरोसा, सब बनेंगे काज।
राम से बढ़कर जगत में, कौन दूजो आज।।
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रूपमाला छंद / मदन छंद विधान -

रूपमाला छंद जो कि मदन छंद के नाम से भी जाना जाता है, 24 मात्रा प्रति पद का सम-पद मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक पद में 14 और 10 के विश्राम से 24 मात्राएँ और पदान्त गुरु-लघु से होता है। यह चार पदों का छंद है, जिसमें दो-दो पदों पर तुकान्तता होती है। 

इसकी मात्रा बाँट 3 सतकल और अंत ताल यानी गुरु लघु से होती है। इस छंद में सतकल की मात्रा बाँट 3 2 2 है जिसमें द्विकल के दोनों रूप (2, 11) और त्रिकल के तीनों रूप (2 1, 1 2, 111) मान्य है। अतः निम्न बाँट तय होती है:
3 2 2  3 2 2 = 14 मात्रा और

3 2 2  2 1 = 10 मात्रा

इस छंद को 2122  2122, 2122  21 के बंधन में बाँधना उचित नहीं। प्रसाद जी का कामायनी के वासना सर्ग का उदाहरण देखें।

स्पर्श करने लगी लज्जा, ललित कर्ण कपोल,
खिला पुलक कदंब सा था, भरा गदगद बोल।
किन्तु बोली क्या समर्पण, आज का हे देव!
बनेगा-चिर बंध नारी, हृदय हेतु सदैव।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
29-08-2016

Saturday, December 25, 2021

हाइकु (नारी)

नारी की पीड़ा
दहेज रूपी कीड़ा
कौन ले बीड़ा?
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दहेज तुला
एक पल्ले समाज
दूजे अबला।
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पंचाली नार
पुरुष धर्मराज
चढ़ाते दाव।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-07-19

Sunday, December 12, 2021

शक्ति छंद "फकीरी"

शक्ति छंद 

फकीरी हमारे हृदय में खिली।
बड़ी मस्त मौला तबीयत मिली।।
कहाँ हम पड़ें और किस हाल में।
किसे फ़िक्र हम मुक्त हर चाल में।।

वृषभ से पड़ें हम रहें हर कहीं।
जहाँ मन, बसेरा जमा लें वहीं।।
बना हाथ तकिया टिका माथ लें।
उड़ानें भरें नींद को साथ लें।।

मिले जो उसीमें गुजारा करें।
मिले कुछ न भी तो न आहें भरें।।
कमंडल लिये हाथ में हम चलें।
इसी के सहारे सदा हम पलें।

जगत से न संबंध कुछ भी रखें।
स्वयं में रमे स्वाद सारे चखें।।
सुधा सम समझ के गरल सब पिएँ।
रखें आस भगवान की बस जिएँ।।
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शक्ति छंद विधान -

यह (122 122 122 12) मापनी पर आधारित मात्रिक छंद है। चूंकि यह एक मात्रिक छंद है अतः गुरु (2) वर्ण को दो लघु (11) में तोड़ने की छूट है। दो दो चरण समतुकांत होने चाहिए।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
12-02-19

Friday, December 10, 2021

ग़ज़ल (पास बैठे तो हैं पर आँख)

बह्र: 2122 1122 1122  22

पास बैठे तो हैं पर आँख उठाते भी नहीं,
मुझसे क्या उन को शिकायत है बताते भी नहीं।

झूठे वादों से रिझा मुँह को छुपाते भी नहीं,
ढीट नेता ये बड़े भाग के जाते भी नहीं।

ख्वाब झूठे जो दिखा वोट बटोरे हम से,
ऐसे मक्कार कभी दिल में समाते भी नहीं।

रंग गिरगिट से बदलते हैं जो मतलब के लिए,
लोग जो दिल से खरे उनको वो भाते भी नहीं।

ज़ख्म गहरे जो मिले ज़ीस्त से, रह रह रिसते,
दर्द सहते हैं तो क्या! अश्क़ बहाते भी नहीं।

सामने रहके भी महबूब सितमगर मेरे,
पास आये न सही पास बुलाते भी नहीं।

एक चहरे पे चढ़ा लेते जो दूजा चहरा,
भेष रहबर का 'नमन' राह दिखाते भी नहीं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
24-08-18

Tuesday, December 7, 2021

पुण्डरीक छंद "राम-वंदन"

मेरे तो हैं बस राम एक स्वामी।
अंतर्यामी करतार पूर्णकामी।।
भक्तों के वत्सल राम चन्द्र न्यारे।
दासों के हैं प्रभु एक ही सहारे।।

माया से आप अतीत शोक हारी।
हाथों में दिव्य प्रचंड चाप धारी।
संधानो तो खलु घोर दैत्य मारो।
बाढ़े भू पे जब पाप आप तारो।।

पित्राज्ञा से वनवास में सिधाये।
सीता सौमित्र तुम्हार संग आये।।
किष्किन्धा में हनु सा सुवीर पाई।
लंका पे सागर बाँध की चढ़ाई।।

संहारे रावण को कुटुंब साथा।
गाऊँ सारी महिमा नवाय माथा।।
मेरे को तो प्रभु राम नित्य प्यारे।
वे ऐसे जो भव-भार से उबारे।।

सीता संगे रघुनाथ जी बिराजे।
तीनों भाई, हनुमान साथ साजे।।
शोभा कैसे दरबार की बताऊँ।
या के आगे सुर-लोक तुच्छ पाऊँ।।

ये ही शोभा मन को सदा लुभाये।
ये सारे ही नित 'बासुदेव' ध्याये।।
वो अज्ञानी चरणों पड़ा भिखारी।
आशा ले के बस भक्ति की तिहारी।।
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पुण्डरीक छंद विधान -

"माभाराया" गण से मिले दुलारी।
ये प्यारी छंदस 'पुण्डरीक' न्यारी।।

"माभाराया" = मगण भगण रगण यगण

(222  211  212 122)
12 वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छंद। 4 चरण, 2-2 चरण समतुकान्त।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
25-01-19

Saturday, December 4, 2021

ग़ज़ल (मौत का कुछ तो इंतज़ाम करें)

बह्र:- 2122  1212  22

मौत का कुछ तो इंतज़ाम करें,
नेकियाँ थोड़ी अपने नाम करें।

कुछ सलीका दिखा मिलें पहले,
बात लोगों से फिर तमाम करें।

सर पे औलाद को न इतना चढ़ा,
खाना पीना तलक हराम करें।

दिल में सच्ची रखें मुहब्बत जो,
महफिलों में न इश्क़ आम करें।

वक़्त फिर लौट के न आये कभी,
चाहे जितना भी ताम झाम करें।

या खुदा सरफिरों से तू ही बचा,
रोज हड़तालें, चक्का जाम करें।

पाँच वर्षों तलक तो सुध ली नहीं,
कैसे अब उनको हम सलाम करें।

खा गये देश लूट नेताजी,
आप अब और कोई काम करें।

आज तक जो न कर सका था 'नमन',
काम वो उसके ये कलाम करें।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-11-2018