Friday, September 29, 2023

छंदा सागर (मात्रिक छंद छंदाएँ)

छंदा सागर 
                      पाठ - 18


छंदा सागर ग्रन्थ


"मात्रिक छंद छंदाएँ"


इस पाठ से हम हिंदी की छांदसिक छंदाओं के विस्तृत संसार में प्रविष्ट हो रहे हैं। संकेतक के पाठ में हमारा विभिन्न संकेतक से परिचय हुआ था, जिनमें से कई अब तक की छंदाओं में प्रयुक्त नहीं हुये थे, पर अब छांदसिक छंदाओं में उनका प्रयोग होगा। अब तक की छंदाओं में दो से अधिक लघु का एक साथ प्रयोग नहीं हुआ था और ऐसे दोनों लघु स्वतंत्र लघु माने जाते थे। परन्तु हिंदी छंदों में स्वतंत्र लघु की अवधारणा नहीं है। हिंदी छंदों में अक्सर दो से अधिक लघु एक साथ प्रयोग में आते हैं और वे स्वतंत्र लघु या शास्वत दीर्घ दोनों  ही रूप में प्रयुक्त हो सकते हैं।

हिंदी के मात्रिक छंदों में प्रति चरण मात्रा तो सुनिश्चित रहती है, परन्तु वर्णों की संख्या प्रतिबंधित नहीं है। इन छंदों में गुरु वर्ण को दो लघु में तोड़ा जा सकता है। परन्तु किसी गुच्छक में यदि दो लघु वर्ण साथ साथ आये हैं तो उन्हें गुरु नहीं कर सकते, उन्हें दो लघु के रूप में ही रखना होगा। हिंदी छंदों में स्वतंत्र लघु की अवधारणा नहीं है अतः दो लघु एक ही शब्द में हो या दो विभिन्न शब्दों में, कोई अंतर नहीं पड़ता। 

हिंदी छंदों में यति का बहुत महत्व है।  छंदाओं में यति या तो 'ण' या 'णा' संकेतक से दर्शायी जाती है अथवा संख्यावाचक संकेतक में अनुस्वार का प्रयोग करके जैसे दं बं आदि से। कई हिंदी छंदों में गुरु या गुरु वर्णों को दीर्घ रूप में रखा जाता है। इसके लिये छंदा के यदि अंतिम गुरु को दीर्घ रूप में रखना है तो हम छंदा के अंत में 'के' जोड़ देते हैं। दो दीर्घ के लिये 'दे' जोड़ा जाता है और तीन दीर्घ के लिये 'बे' जोड़ा जाता है। कुछेक छंदा में 'के' का प्रयोग छंदा के आदि या मध्य में भी हुआ है।

इन छंदाओं के अंत में ण या णा संकेतक का प्रयोग छंदा का मात्रिक स्वरूप दर्शाने के लिये होता है। परन्तु छंदा में यदि विषमकल द्योतक बु, पु, डु, वु का प्रयोग है तो ण णा संकेतक का लोप भी है क्योंकि ये विषमकल द्योतक संकेतक केवल मात्रिक स्वरूप में ही प्रयोग में आते हैं। छंदा में के, दे, बे तथा दौ और बौ संकेतक का प्रयोग होने से भी ण णा संकेतक का लोप है।

मात्रिक छंद प्रायः समकल आधारित रहते हैं। अतः इन छंदाओं में ईमग (2222) और मगण (222) तथा ईगागा (22) और गुरु (2) वर्ण की प्रधानता रहती है। इन छंदाओं पर काव्य सृजन कल विवेचना के पाठ में वर्णित नियमों के आधार पर होता है। गुरु छंदाओं की तरह ही इन छंदाओं के नामकरण में भी अठकल अर्थात ईमग गणक को प्राथमिकता दी गयी है। हिंदी छंदों में मात्रा पतन मान्य नहीं है। सभी छंदाओं में कोष्टक में छंद का नाम दिया गया है।

छंद में प्रयुक्त मात्रा संख्याओं के आधार पर प्रत्येक छंद की शास्त्रों में जाति निर्धारित की गयी है। इस पाठ में हिन्दी में प्रचलित मात्रिक छंदों की छंदाएँ जाति के आधार पर वर्गीकृत की गयी हैं। 32 मात्रा तक के छंद सामान्य जाति छंदों की श्रेणी में आते हैं तथा इससे अधिक मात्रा के छंद दण्डक मात्रिक छंदों की श्रेणी में आते हैं। यहाँ आधार कम से कम 7  मात्रा सुनिश्चित किया गया है। 7 से कम मात्रा के छंद विशेष महत्व नहीं रखते।

7. मात्रा (लौकिक जाति के छंद)

5 S = पूके (सुगति/शुभगति) = 7 मात्रा।
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8. मात्रा (वासव जाति के छंद)

22 121 = गीजण या 3 1121 बूसल  (छवि/मधुभार) = 8मात्रा।

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9. मात्रा (आँक जाति के छंद)

22221 = मींणा (निधि) = 9 मात्रा।
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5 SS =  पूदे (गंग) = 9 मात्रा।
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10. मात्रा (दैशिक जाति के छंद)

5, 5 = पूधा (एकावली) = 10 मात्रा।
(5*2 यह छंद पूदा रूप में भी प्रचलित है।)
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2211 121 = तंजण (दीप) = 10 मात्रा।
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11. मात्रा (रौद्र जाति के छंद)

8 1S = मीलिण या 6 1SS = मलदे (भव)
 = 11 मात्रा।
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2121 212 = रंरण = (शिव) = 11 मात्रा।
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22 3 121 = गीबुज  या  22211 21 = मोगुण (अहीर) = 11 मात्रा।
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12. मात्रा (आदित्य जाति के छंद)

9 12 =  वूली (नित छंद) = 12 मात्रा।
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1 22 22 21 = लागिदगुण (तांडव) = 12 मात्रा।
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2222 121 = मीजण (लीला) = 12 मात्रा।
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2 7 21 = गाडूगुण (तोमर) = 12 मात्रा।
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13. मात्रा (भागवत जाति के छंद)

2222, S1S = मिणकेलके/मिणराहू (चंडिका/धरणी) = 8+5 = 13 मात्रा
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2222 212  = मीरण (चंद्रमणि) = 8+5 = 13 मात्रा
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2222 3 2 =  मीबुग (प्रदोष) = 13 मात्रा। (इस छंद का दूसरा रूप 'बुगमी' = 3 2 2222 भी प्रचलन में है।)
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14. मात्रा (मानव जाति के छंद)

1222 1222 =  यीदण (विजात) = 7+7 = 14 मात्रा।
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2 5, 22 111 =  गापुणगीना (सरस छंद) = 7+7 = 14 मात्रा।
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S 1222 122 = केयीयण (मनोरम) = 14 मात्रा।
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2 7 212 = गाडूरण (गुरु तोमर) = 14 मात्रा।
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2 2222 SS = गमिदे (कुंभक) = 14 मात्रा।
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(22 21)*2 = गीगूधुण = (सुलक्षण) = 14 मात्रा।
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22*2 211S = गीदभके (हाकलि) = 14 मात्रा।
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22*2 2SS = गिदगादे (सखी) = 14 मात्रा।
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2222 222 = मीमण (मानव) = 14 मात्रा।
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2222 3 21 =  मीबूगू (कज्जल) = 14 मात्रा।
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2222 3 111 =  मीबूनण (मनमोहन) = 14 मात्रा।
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15. मात्रा (तैथिक जाति के छंद)

3 2 2222 S = बुगमीके (गोपी) = 15 मात्रा
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22 222 SS1 = गिमदेला (पुनीत) = 15 मात्रा।
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2222 2*2 21 = मीगदगुण (चौपई, जयकरी) = 15 मात्रा।
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2222, 22 1S = मिणगिलके (चौबोला ) = 15 मात्रा।
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2222 2 S1S = मिगकेलके (उज्ज्वला) = 15 मात्रा।
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2222 3 121 = मीबुज (गुपाल/भुजंगिनी) = 15 मात्रा।
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16. मात्रा (संस्कारी जाति के छंद)

11 2222 211 S = लूमीभाके (सिंह) = 16 मात्रा।
(द्विगुणित रूप में यह छंद 'कामकला' छंद कहलाता है। यथा 'लूमीभाकेधा' 16, 16 = 32 मात्रा)
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3 2 2222 21 = बुगमीगू (श्रृंगार) = 16 मात्रा।
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2 2222 222 = गामीमण (पदपादाकुलक) = 16 मात्रा।
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22*4 = गीचण (पादाकुलक) = 16 मात्रा।
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2 2222 2211 = गमितालण (अरिल्ल) = 16मात्रा।
(2222 21 1SS = मीगुलदे (अरिल्ल) इस छंद का यह विधान भी मिलता है।)
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2 2222 3 1S = गामीबुलके (सिंह विलोकित) = 16 मात्रा।
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2 2222 2 121 = गमिगाजण (पद्धरि) = 16 मात्रा।
(कहीं कहीं इसी छंद का अन्य नाम पज्झटिका भी मिलता है।)
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2222 22*2  = मीगीदण (चौपाई) = 16 मात्रा।
(चौपाई के अंत में चौकल रहना चाहिए। अनेक छंदाओं की प्रथम यति में चौपाई रहती है जहाँ यह मीदा रूप = 2222*2 में रहती है।
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2222 22211 = मीमोणा (डिल्ला) = 16 मात्रा।
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2222 S 22S = मीकेगीके (पज्झटिका/उपचित्रा) = 16 मात्रा।
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17. मात्रा (महासंस्कारी जाति के छंद)

5*2 3 SS  = पुदबूदे (बिमल) = 17 मात्रा।
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9, 31SS = वूणाबुलदे (राम) = 17 मात्रा।
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18. मात्रा (पौराणिक जाति के छंद)

9*2 = वूदा (राजीवगण) = 18 मात्रा।
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122*3 12 = यबलिण (शक्ति) = 18 मात्रा।
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2 2222*2 = गामीदण (कलहंस) = 18 मात्रा।
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2221, 1 2222 S = मंणालमिके (पुरारी) = 7+11 = 18 मात्रा।
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22222, 22121 = मेणातींणा (बंदन) = 10+8 = 18 मात्रा।
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19. मात्रा (महापौराणिक जाति के छंद)

3 2 22, 222 SS = बूगागिणमादे (दिंडी) = 19 मात्रा।
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122*3 121 = यबजण (सगुण) = 19 मात्रा
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1222*2 122 = यीदायण = (सुमेरु) = 19 मात्रा

(इस छंद के मध्य यति के रूप भी मिलते हैं जो:-
1222 122, 2122 = यीयणरीणा
122 212, 22122 = यारणतेणा हैं।)
अंत के 22 को SS में रखने से छंद कर्ण मधुर होता है।
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212 221, 2221 S = रातणमंके = (पियूषवर्ष) = 10+9 = 19 मात्रा।
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2122*2 212 = रीदारण = (आनन्दवर्धक) = 19 मात्रा।
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2122 212, 221 S = रीरणताके = (ग्रंथि) = 12+7 = 19 मात्रा।
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2 2222 22, 111S = गामीगिणनाके (नरहरि) = 14+5 = 19 मात्रा।
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2222*2 21 = मीदागुण (तमाल) = 19 मात्रा।
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20. मात्रा (महादैशिक जाति के छंद)

5, 5*3 =  पुणपूबा (कामिनीमोहन या मदनअवतार) = 5+15 =20 मात्रा।
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5*3 S1S = पुबकेलके (हेमंत) = 20 मात्रा।
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5, 5, 5 21S = पूदौपूगूके (अरुण) = 5+ 5+10 = 20 मात्रा।
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9 12, 22 121  = वूलिणगीजा (मंजुतिलका) = 12+8 = 20 मात्रा।
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1222*2 1221 = यिदयंणा = (शास्त्र) = 20 मात्रा
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2222*2 SS = मिददे (मालिक) = 20 मात्रा।
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2222 21, 3 2SS   = मीगुणबुगदे (सुमंत) = 11+9 = 20 मात्रा।
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2222 22, 3 1SS = मीगिणबुलदे (योग) = 12+8 = 20 मात्रा।
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2222 21, 3 2 22 = मीगुणबुगगी (हंसगति) = 11+9 = 20 मात्रा।
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21. मात्रा (त्रैलोक जाति के छंद)

7 121, 5 S1S = डूजणपूरा (चांद्रायण) = 11+10 = 21 मात्रा।

( एक छंद के चार पद में यदि 'केमणमोरा' रूप की प्लवंगम = S 222, 22211 S1S तथा चांद्रायण का मिश्रण हो तो उस मिश्रित छंद का नाम 'तिलोकी' है।)
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12 222*2 211S = लीमदभाके (संत) = 21 मात्रा।
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222, 2222 2221 = मणमीमंणा (भानु) = 6+15 = 21 मात्रा।
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2222*2 212 = मिदरण (प्लवंगम) = 21 मात्रा। (इस छंद का प्राचीन स्वरूप 'गामणमोकेलके' = S 222, 22211 S1 S माना गया है।)
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2222 21, 3 221 S = मीगुणबुतके (त्रिलोकी) = 11+10 = 21 मात्रा।
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22. मात्रा (महारौद्र जाति के छंद)

2 2222 3, 3 2*3 = गामीबुणबुगबा (राधिका) = 13 + 9 = 22 मात्रा।
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2211*2 2, 21122 = तंदागणभेणा (बिहारी) = 14+8 = 22 मात्रा।
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222 3*2, 22211 S = मबुदंंमोके (उड़ियाना) = 12+10 = 22 मात्रा।
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222 3*2, 222 SS = मबुदंमादे (कुंडल) = 12+10 = 22 मात्रा।
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2222, 2222, 211S = मीधभके (रास) = 8+8+6 = 22 मात्रा।
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2222 22, 2222 2 = मीगिणमीगण (सोमधर) = 12+10 = 22 मात्रा।
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2222 22, 2222 S = मीगिणमीके (सुखदा) = 12+10 = 22 मात्रा।
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2222 21, 3 2 222 = मीगुणबूगम (मंगलवत्थु) = 11+11 = 22 मात्रा।
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23. मात्रा (रौद्राक जाति के छंद)

2122*2, 2122 S = रीदणरीके = (रजनी) = 14 + 9 = 23 मात्रा।

2 22221, 2222 121 = गामींणामीजण (संपदा छंद) = 11+12 = 23 मात्रा।
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2 2222 12, 2 3 212 = गामीलिणगाबुर (अवतार) = 13+10= 23 मात्रा।
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2 22221 21, 22221 = गामींगुणमींणा (सुजान) = 14+9 = 23 मात्रा।
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S22, 222, 22221 S = केगिणमणमींके (हीर/हीरक) = 6+6+11 = 23 मात्रा।
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22222, 2222, 221 = मेणामिणतण (जग) = 10+8+5 = 23 मात्रा।
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22222, 2222, 1121 = मेणामिणसालण (दृढपद छंद) 10+8+5 = 23 मात्रा।
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212, 222, 222, 22S = रणमादौगीके (मोहन) = 5+6+6+6 = 23 मात्रा।
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2222*2, 22 21= मीदंगीगुण (निश्चल) = 16+7 = 23 मात्रा।
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2222 212, 2222 S = मीरणमीके (उपमान/दृढपद) = 13+10= 23 मात्रा।

"मीरणमादे" से यह छंद कर्णप्रिय लगता है।
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2222 221, 2222 S = मीतणमीके (मदनमोहन) = 13+10 = 23 मात्रा।
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24. मात्रा (अवतारी जाति के छंद)

7*2, 222 112 = डूदंमस  (लीला) = 14+10 = 24 मात्रा।
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121 222, 22222 121 = जामणमेजण (सुमित्र) = 10+14 = 24 मात्रा। (इसका 'रसाल' नाम भी मिलता है।)
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(3 22)*2, 3 2221 = बूगीधुणबूमल (रूपमाला/मदन) = 14+10 = 24 मात्रा। 
(इसका दूसरा बहु प्रचलित रूप) :-
2122*2, 212 221 =  रीदंरातण।
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221 2122, 221 2122 = तारीधण (दिगपाल/मृदु गति) = 12+12 = 24 मात्रा।
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(5 2)*2, 212 1121 = पुगधुणरासंणा (शोभन/सिंहिका) = 14+10 = 24 मात्रा।
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2112*2, 2112*2 = भीदधणा (सारस छंद) = 12+12 = 24 मात्रा।
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2222 21, 3 2 2222 = मीगुणबुगमी (रोला) = 11+13 = 24 मात्रा। 
(2222*3 = 'मीबण' यति 11, 12, 14, 16 पर ऐच्छिक। रोला छंद की इस रूप में भी कई कवि रचना करते हैं।)
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2222, 2222, 2222 = मीथण (मधुर ध्वनि) = 8+8+8 = 24 मात्रा।
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25. मात्रा ( महावतारी के छंद)

1 2122*2, 212 221 = लारीदंरातण (सुगीतिका) = 15+10 = 25 मात्रा।
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1222*2 12, 222S = यीदालिणमाके (मदनाग) = 17+8 = 25 मात्रा।
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2 2222, 2222, 2221 = गमिदौमंणा (नाग) = 10+8+7 = 25 मात्रा।
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2222 212, 2222 22 = मीरणमीगिण
(मुक्तामणि) = 13+12 = 25 मात्रा।

"मीरणमीदे" में यह छंद कर्णप्रिय है जो कुछ ग्रंथों में विधान के अंतर्गत है।
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2222*2, 22 S1S = मीदणगीरह (गगनांगना) = 16+9 = 25 मात्रा।
(रह का अर्थ रगण वर्णिक रूप में।)
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26. मात्रा (महाभागवत जाति के छंद)

2 2122, 2122, 212 221 = गरिदौरातण (कामरूप) = 9+7+10 = 26 मात्रा।
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2212, 2212, 2212, 221 = तिथतण = (झूलना) = 7 + 7 + 7 + 5 = 26 मात्रा।
(इस छंद को कई साहित्यकार "डूथातण = 7, 7, 7, 221" के रूप में भी सृजन करते हैं)
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2212*2, 2212 221 = तीदंतीतण (गीता) = 14+12 = 26 मात्रा।
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2222*2, 2222 S = मीदंमीके (विष्णुपद) = 16+10 = 26 मात्रा। 'के' संकेतक यह दर्शाता है कि छंदा के अंत में दीर्घ रखना है।
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2222*2, 7 21 = मीदंडूगू (शंकर) = 16+10 = 26 मात्रा।
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27. मात्रा (नाक्षत्रिक जाति के छंद)

1 2122*2, 2122 S1S = लारीदंरीकेलके (शुभगीता) = 15+12 = 27 मात्रा।
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2122*2, 2122 2121 = रीदंरीरंणा (शुद्ध गीता) = 14+13 = 27 मात्रा।
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2222*2, 2222 21 = मीदंमीगुण (सरसी) = 16+11 = 27 मात्रा।
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यह छंद द्वि पदी रूप में रची जाने पर 'हरिपद' छंद कहलाती है।

2222*2, 2222 21 = मीदंमिगुणी (हरिपद) = 16 + 11 = 27 मात्रा।
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28. मात्रा (यौगिक जाति के छंद)

1221 3 221, 2 222 11 SS =  यंबूतणगमलूदे (विद्या) = 14+14 = 28 मात्रा।
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2 2222 2*2, 2 2222 2*2 = गामीगदधण (आँसू) = 14+14 = 28 मात्रा।
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222, 2 2222*2 22 = मणगामिदगी (दीपा) = 6+22 = 28 मात्रा। पदांत में दो दीर्घ (SS) रखने से छंद रोचक होता है।
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2222*2, 2222 22 = मीदंमीगिण (सार) = 16+12 = 28 मात्रा। (इस छंदा को मीदंमीदे रखने से गेयता रोचक होती है।)
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2222*2, 222 SSS = मीदंमाबे (रजनीश) = 16+12 = 28 मात्रा।
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29. मात्रा (महायौगिक जाति के छंद)

2 2222, 2222, 2222 21 = गमिदौमीगुण = (मरहठा) = 10 + 8 + 11 = 29 मात्रा।
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2222 3, 3 2 3, 3 2 21S = मीबुणबुगबुणबुगगूके (मरहठा माधवी) = 11+8+10 = 29 मात्रा।
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2222 2221, 2222 22S = मीमंणामीगीके (धारा) = 15+14 = 29 मात्रा।
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2222*2, 2222 21 S = मीदंमीगूके (प्रदीप) = 16+13 = 29 मात्रा।

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30. मात्रा (महातैथिक जाति के छंद)

2 2222, 2222, 2222 SS = गमिदौमीदे = (चतुष्पदी) = 10+8+12 = 30 मात्रा।
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2 2222, 2222, 2222 2S = गमिदौमिगके = (चौपइया/चवपैया) = 10 + 8 + 12 = 30 मात्रा। '
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2 2222 21, 12221 122 SS = गामीगुणयींयादे (कर्ण) = 13+17 = 30 मात्रा।
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2222, 2222, 2222, 22S = मिथगीके (शोकहर) = 8+8+8+6 = 30 मात्रा। (चारों पद में समतुकांतता अनिवार्य)
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2222*2, 2222 222 = मीदंमीमण (लावणी) = 16+14 = 30 मात्रा।
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2222*2, 2222 2SS = मीदंमिगदे (कुकुभ) = 16+14 = 30 मात्रा।
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2222*2, 2222 SSS = मीदंमीबे (ताटंक) = 16+14 = 30 मात्रा।
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2222 222, 2 2222 22S = मीमणगमिगीके (रुचिरा) = 14+16 = 30 मात्रा।
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31. मात्रा (अश्वावतारी जाति के छंद)

2222*2, 2222 22 21 = मीदंमीगीगुण (आल्हा या वीर) = 16+15 = 31 मात्रा।
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32. मात्रा (लाक्षणिक जाति के छंद)

3 2 2222 21, 3 2 2222 21 = बुगमीगुध (महाश्रृंगार) = 16+16 = 32 मात्रा।।
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2 3 21, 2 3 21, 2 3 21, 2 3 21= गाबूगुथगाबूगू (पल्लवी) = 8+8+8+8 = 32 मात्रा।
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2 22*2, 22*2, 22*2, 22S = गागिदबौगीके = (त्रिभंगी) = 10+8+8+6 = 32 मात्रा।
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2 2222, 2222, 2222 22S = गमिदौमीगीके = (पद्मावती) = 10+8+14 = 32 मात्रा।
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2 2222, 2222, 2222 211S = गमिदौमिभके = (दंडकला) = 10+ 8+14 = 32 मात्रा। 
(यही छंद "गमिदौमोबे" रूप में 'दुर्मिल' के नाम से भी जाना जाता है।)
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2 222, 222, 2222, 2 2222 = गमदौमिणगामी = (खरारी) = 8+6+8+10 = 32 मात्रा।
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2 2222 222, 2 2222 22S  = गामीमणगमिगीके (राधेश्यामी या मत्त सवैया) = 16+16 = 32 मात्रा।
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2 2222 3 21, 2 2222 3 21 = गमिबूगुध (लीलावती) = 16+16 = 32 मात्रा।
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2222, 2222, 222, 2 2222 = मिधमणगामी 
(तंत्री) = 8+8+6+10 = 32 मात्रा।
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2222*2, 2222*2 = मीदाधण (32 मात्रिक) = 16+16 = 32 मात्रा।
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2222*2, 2222 22 S11 = मीदंमीगीकेलू (समान सवैया / सवाई छंद) = 16+16 = 32 मात्रा।
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2222 2221, 122 2222 SS = मीमंणायामीदे (कमंद) = 15+17 = 32 मात्रा।
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द्विपदी छंद:- (छंदा के अंत में जुड़ा णि या णी इन छंदाओं का मात्रिक स्वरूप तथा द्विपद रूप दर्शाता है।)

2222 22, 2221 = मीगिणमंणी (बरवै) = 12+7 = 19 मात्रा।
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2222 212, 2222 21 = मीरणमिगुणी (दोहा) = 13+11= 24 मात्रा।
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2222 21, 2222 212 = मीगुणमिरणी (सोरठा) = 11+13 = 24 मात्रा।
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2 2222 212, 2222 21 = गामीरणमिगुणी (दोही) = 15+11= 26 मात्रा।
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2222 212, 2222 212 = मीरधणी (उल्लाला) = 13+13 = 26 मात्रा।
2 2222 212, 2222 212 = गामीरणमिरणी (गुरु उल्लाला) = 15+13 = 28 मात्रा।
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2222 212, 2222 21 1211 = मीरणमीगूजंणी (चुलियाला) = 13 + 16 = 29 मात्रा।
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2222 212 = मीरण-त्रिपदा (जनक) = 13 मात्रा। यह तीन पदों की छंद है।
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दण्डक छंद:- 32 से अधिक मात्रा के छंद दण्डक छंद कहलाते हैं। यहाँ कुछ छंद विशेष की छंदाएँ दी जा रही हैं। दण्डक छंदों में प्रायः 3 अंतर्यति पायी जाती है और लगभग समस्त रचनाकारों ने इन तीन यतियों में समतुकांतता निभाई है। इसके अतिरिक्त दो दो पद में पदांत तुकांतता तो रहती ही है।

5*2, 5*2, 5*2, 21SS  = पूदथगूदे =  (झूलना-दंडक) = 10+10+10+7 = 37 मात्रा।
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5 3, 5*2 2, 5 3, 22 1SS = पूबुणपुदगणपूबुणगिलदे =  (करखा-दंडक) = 8+12+8+9 = 37 मात्रा।
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2 5*2, 5*2, 5*2, 5 3 = गापूबौपूबू = (दीपमाला) = 12+10+10+8 = 40 मात्रा।
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2 2222, 2222, 2222, 222, 222S = गमिबौमणमाके = (मदनहर) = 10 + 8 + 8 + 6 + 8= 40 मात्रा।
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5 212, 5 212, 5 212, 5 21 S = पूरथपूगूके = (विजया) = 10+10+10+10 = 40 मात्रा।
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5 221, 5 221, 5 221, 5 S 21 = पूतथपूकेगू = (शुभग) = 10+10+10+10 = 40 मात्रा।
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2 2222, 2 2222, 2 2222, 212 221 = गामिथरातण = (उद्धत) = 10+10+10+10 = 40 मात्रा।
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222*2, 222*2, 222*2, 222 SS = मदथमदे (चंचरीक) = 12 + 12 + 12 + 10 = 46 मात्रा। इसका हरिप्रिया नाम भी मिलता है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Sunday, September 24, 2023

राधेश्यामी छंद "वंचित"

 राधेश्यामी छंद / मत्त सवैया


ये दुनिया अजब निराली है, सब कुछ से बहुतेरे वंचित।
पूँजी अनेक पीढ़ी तक की, करके रखली कुछ ने संचित।।
जिस ओर देख लो क्रंदन है, सबका है अलग अलग रोना।
अधिकार कहीं मिल पाते नहिं, है कहीं भरोसे का खोना।।

पग पग पर वंचक बिखरे हैं, बचती न वंचना से जनता।
आशा जिन पर जब वे छलते, कुछ भी न उन्हें कहना बनता।।
जिनको भी सत्ता मिली हुई, मनमानी मद में वे करते।
स्वारथ के वशीभूत हो कर, सब हक वे जनता के हरते।।

पग पग पर अबलाएँ लुटती, बहुएँ घर में अब भी जलती।
जो दूध पिला बच्चे पालीं, वृद्धाश्रम में वे खुद पलती।।
मिलता न दूध नवजातों को, पोषण से दूध मुँहे वंचित।
व्यापार पढ़ाई आज बनी, बच्चे हैं शिक्षा से वंचित।।

मजबूर दिखें मजदूर कहीं, मजदूरी से वे हैं वंचित।
जो अन्न उगाएँ चीर धरा, वे अन्न कणों से हैं वंचित।।
शासन की मनमानी से है, जनता अधिकारों से वंचित।
अधिकारी की खुदगर्जी से, दफ्तर सब कामों से वंचित।।

हैं प्राण देश के गाँवों में, पर प्राण सड़क से ये वंचित।
जल तक भी शुद्ध नहीं मिलता, विद्युत से बहुतेरे वंचित।।
कम अस्पताल की संख्या है, सब दवा आज मँहगी भारी।
है आज चिकित्सा से वंचित, जो रोग ग्रसित जनता सारी।।

निज-धंधा करे चिकित्सक अब, हैं अस्पताल सूने रहते।
जज से वंचित न्यायालय हैं, फरियादी कष्ट किसे कहते।।
सब कुछ है आज देश में पर, जनता सुविधाओं से वंचित।
हों अधिकारों के लिए सजग, वंचित न रहे कोई किंचित।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-04-17

Monday, September 18, 2023

भव छंद "जागो भारत"

जागो देशवासी।
त्यागो अब उदासी।।
जाति वाद तोड़ दो।
क्षुद्र स्वार्थ छोड़ दो।।

देश पर गुमान हो।
इससे पहचान हो।।
भारती सदा बढे।
कीर्तिमान नव गढे।।

जागरुक सभी हुवें।
आसमान हम छुवें।।
संस्कृति का भान हो।
भू पे अभिमान हो।।

देश से दुराव की।
बातें अलगाव की।।
लोग यहाँ जो करें।
मुल्य कृत्य का भरें।।

सोयों को जगायें।
आतंकी मिटायें।।
लहु रिपुओं का पियें।
बलशाली बन जियें।।

देश भक्ति रीत हो।
जग भर में जीत हो।।
सुरपुर देश प्यारा।
'नमन' इसे हमारा।।
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भव छंद विधान -

भव छंद 11 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत गुरु वर्ण (S) से होना आवश्यक है । यह रौद्र जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। चरणांत के आधार पर इन 11 मात्राओं के दो विन्यास हैं। प्रथम 8 1 2(S) और दूसरा 6 1 22(SS)। 1 2 और 1 22 अंत के पश्चात बची हुई क्रमशः 8 और 6 मात्राओं के लिये कोई विशेष आग्रह नहीं है। परंतु जहाँ तक संभव हो सके इन्हें अठकल और छक्कल के अंतर्गत रखें।
अठकल (4 4 या 3 3 2)
छक्कल (2 2 2 या 3 3)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
27-05-22

Sunday, September 10, 2023

समस्त श्रेणियों की बहुप्रचलित छंदाएँ

छंदा सागर 

                      पाठ - 17

छंदा सागर ग्रन्थ

"समस्त श्रेणियों की बहुप्रचलित छंदाएँ"


हमने वृत्त छंदा, गुरु छंदा और आदि गण आधारित सात मिश्र छंदाओं के पाठों में अनेक छंदाओं का अवलोकन किया। इन्हीं पाठों से छाँट कर यहाँ कुछ बहुप्रचलित छंदाएँ दी जा रही हैं।

मगणाश्रित छंदाएँ:-

2222*3  222 = मीबम, मिबमण, मिबमव

22212 212 = मूरा, मूरण, मूरव
***

तगणाश्रित छंदाएँ:-

2212*2 = तीदा
2212*3 = तीबा
2212*4 = तीचा

221*2 2 = तादग, तदगण, तदगव

2211*3 2 = तंबग, तंबागण, तंबागव (रुबाइयों में प्रचलित)
2211*3 22 = तंबागी, तंबागिण, तंबागिव (बिहारी छंद)

22112 22 22112 22 = तूगीधू, तूगीधुण, तूगीधुव
22112 22 22112 2 = तूगीतुग, तूगीतूगण, तूगीतूगव
22112 2222 = तूमी, तूमिण, तूमिव

22121 22 22121 22 = तींगीधू, तींगीधुण, तींगीधुव
22121 22 22121 2 = तींगीतींगा, तींगीतींगण, तींगीतींगव
22121 211 22121 2 = तींभातींगा, तींभातींगण, तींभातींगव
22122 22 22122 22 = तेगीधू, तेगीधुण, तेगीधुव

22121 212 = तींरा, तींरण, तींरव

2212 22122 22 = तातेगी, तातेगिण, तातेगिव
***

रगणाश्रित छंदाएँ:-

212*3 = राबा, राबण, राबव
212*3 2 = राबग, रबगण, रबगव
212*4 = राचा, राचण, राचव

212*2 +2 21222 = रादगरे, रादगरेण, रादगरेव

212*2 2, 212*2 2 = रदगध, रादगधण, रादगधव

2121 212 2121 212 = रंराधू, रंराधुण, रंराधुव
2121*2 212 = रंदर, रंदारण, रंदारव
2121*3 212 = रंबर, रंबारण, रंबारव


2122*2 = रीदा, रीदण, रीदव
2122*2 212 = रीदर, रिदरण, रिदरव
2122*3 = रीबा, रीबण, रीबव
2122*3 2 = रीबग, रिबगण, रिबगव
2122*3 212 = रीबर, रिबरण, रिबरव
2122*4 = रीचा, रीचण, रीचव

2122 1122*2 22 = रीसिदगी, रीसिदगिण, रीसिदगिव

21221 212 22 = रींरागी, रींरागिण, रींरागिव
21221 122 22 = रींयागी, रींयागिण, रींयागिव

21212 22 21212 22 = रूगीधू, रूगीधुण, रूगीधुव

21222 21221 = रेरिल, रेरीलण, रेरीलव

2122*2 2 212 = रिदगर, रीदगरण, रीदगरव
***

यगणाश्रित छंदाएँ:-

122*3 = याबा, याबण, याबव
122*3 12 = यबली, यबलिण, यबलिव
122*4= याचा, याचण, याचव

1222*2 = यीदा, यीदण, यीदव
1222*2 21 = यिदगू, यिदगुण, यिदगुव
1222*2 122 = यीदय, यिदयण, यिदयव
1222*3 = यीबा, यीबण, यीबव
1222*4 = यीचा, यीचण, यीचव

12222 122 = येया, येयण, येयव

1222 122 = यीया, यीयण, यीयव
1222 122, 1222 122 = यीयध, यियधण, यियधव
***

जगणाश्रित छंदाएँ:-

12112*2 = जूदा, जूदण, जूदव

12122*4 = जेचा, जेचण, जेचव

1212*4 = जीचा, जीचण, जीचव

1212 222 1212 22 = जिमजीगी, जिमजीगिण, जिमजीगिव
12121 122 1212 22 = जींयाजीगी, जींयाजीगिण, जींयाजीगिव
12121 122 12121 122 = जींयाधू, जींयाधुण, जींयाधुव
***

सगणाश्रित छंदाएँ:-

11212*4 = सूचा, सूचण, सूचव

112121 22 112121 22 = सूंगीधू, सूंगीधुण, सूंगीधुव

****
****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Monday, September 4, 2023

सेदोका (कँवल खिलो)

कँवल खिलो
मानव हृदयों में
तुम छोड़ पंक को।
जिससे कभी
तुषार न चिपके
मद की मानव पे।
****

शांत सरिता
किनारों में सिमटी
सुशांत प्रवाहिता,
हो उच्छृंखल
तोड़े सकल बांध
ज्यों मतंग मदांध।
****

जीवन-मुट्ठी
रिसती उम्र-रेत
अनजान मानव,
सोचता रहा
रेत अभी है बाकी
पर वह जा चुकी।
****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-04-17

Sunday, August 27, 2023

गीत (आजादी आई है)

 (धुन - इक प्यार का नगमा है)

222*2

आजादी आई है
कितनी ये सुहानी है,
लहरा के तिरंगे को
नव आस जगानी है।

सन सैंतालिस प्यारी,
आजादी मिली न्यारी,
था जोश चढा नभ पर
सब और खुशी भारी;
सत्ता अंग्रेजी अब
हो गयी पुरानी है,
लहरा के तिरंगे को
नव आस जगानी है।

अब दूर हुआ सब गम,
हम हैं न किसी से कम,
भारत का मान बढ़ा
जनता को जगाएं हम;
दीवाली मना कर के
अंधियारी हटानी है,
लहरा के तिरंगे को
नव आस जगानी है।

शिक्षा को बढ़ाएंगे,
सोयों को जगाएंगे,
त्यज ऊँच नीच सारी
जन जन को हंसाएंगे;
जग के गुरु फिर से बनें
यह सोच बनानी है,
लहरा के तिरंगे को
नव आस जगानी है।

वीरों ने सीमा पर,
साहस को दिखला कर,
दुश्मन को भगा भगा
मारा पीटा जी भर
हम 'नमन' करें जिनकी
क्या गजब जवानी है
लहरा के तिरंगे को
नव आस जगानी है

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया 
12.08.23

Monday, August 21, 2023

छंदा सागर (सगणादि छंदाएँ)

                     पाठ - 16

छंदा सागर ग्रन्थ

"सगणादि छंदाएँ"

इस पाठ में हम उन छंदाओं का अध्ययन करेंगे जिनके प्रारंभ में सगण रहता है। इन छंदाओं का इसलिये सगणदि नाम दिया गया है क्योंकि छंदा के आदि में सगण गुच्छक रहते हैं। सगण गुच्छक निम्न हैं, जिनका इन छंदाओं में प्रयोग है।
112 = सगण
1121 = अंसल
1122 = ईसग
11221 = ईंसागल
11212 = ऊसालग
112121 = ऊंसालिल
11222 = एसागग
112221 = ऐंसागिल

सगणादि गुरु-लूकी छंदाएँ:- इन छंदाओं में गुरु वर्ण के मध्य ऊलल वर्ण (11) रहते हैं। वाचिक स्वरूप में ये दोनों लघु स्वतंत्र लघु होते हैं। मात्रिक और वर्णिक में लघु वर्ण सामान्य लघु ही रहते हैं।
****

11222 = सेका, सेकण, सेकव
112221 = सैंका, सैंकण, सैंकव
11222 2 = सेगा, सेगण, सेगव
11222 21 = सेगू, सेगुण, सेगुव
11222 22 = सेगी, सेगिण, सेगिव
11222 22 +1 = सेगिल, सेगीलण, सेगीलव
11222 222 = सेमा, सेमण, सेमव
11222 2221 = सेमल, सेमालण, सेमालव
11222 2222 = सेमी, सेमिण, सेमिव
11222 22221 = सेमिल, सेमीलण, सेमीलव

(इन छंदाओं में ईगागा वर्ण (22), मगण और ईमग गणक जुड़ा हुआ है। इनमें 22 को 112 रूप में लिया जा सकता है। मगण को 1122, 2112, 222 इन तीनों रूप में से किसी भी रूप में रखा जा सकता है। ईमग की 112 112, 11222, 21122, 22112, 2222 इन पांच संभावनाओं में से कोई भी प्रयोग में लायी जा सकती है। यह छूट लघु वृद्धि में भी है।)
****

112*2 2= सादग, सदगण, सदगव
112*2 21 = सदगू, सदगुण, सदगुव
112*2 2 112*2 2 = सादगधू, सादगधुण, सादगधुव
112*2 2, 112*2 2 +1 = सादगधल, सदगधलण, सदगधलव
112*2 21, 112*2 21 = सदगुध, सदगूधण, सदगूधव

112*2 22 = सदगी, सदगिण, सदगिव
112*2 22 +1 = सदगिल, सदगीलण, सदगीलव
112*2 22 112*2 22 = सदगीधू, सदगीधुण, सदगीधुव (धू संकेतक बिना यति के सदगी को दोहरा रहा है।)

112*2 222 =  सादम, सदमण, सदमव
112*2 2221 = सदमल, सादमलण, सादमलव
112*2 2222 =  सदमी, सदमिण, सदमिव
112*2 22221 = सदमिल, सदमीलण, सदमीलव
**

1122 112 = सीसा, सीसण, सीसव
1122 112 1122 112 = सिसधू, सिसधुण, सिसधुव (धू संकेतक बिना यति के सिस को दोहरा रहा है।)
1122 112, 1122 112 = सीसध, सिसधण, सिसधव
1122 1121, 1122 1121 = सीसंधा, सीसंधण, सीसंधव

1122*2 2 = सीदग, सिदगण, सिदगव
1122*2 21 = सिदगू, सिदगुण, सिदगुव
1122*2 22 = सिदगी, सिदगिण, सिदगिव
1122*2 22 +1 = सिदगिल, सिदगीलण, सिदगीलव
1122*2 222 = सीदम, सिदमण, सिदमव
1122*2 2221 = सिदमल, सीदमलण, सीदमलव
**

11222 112 = सेसा, सेसण, सेसव
11222 1121 = सेसल, सेसालण, सेसालव
11222 112, 11222 112 = सेसध, सेसाधण, सेसाधव
11222 1121, 11222 1121 = सेसंधा, सेसंधण, सेसंधव

11222 1122= सेसी, सेसिण, सेसिव
11222 11221 = सेसिल, सेसीलण, सेसीलव
11222 1122, 11222 1122 = सेसिध, सेसीधण, सेसीधव
11222 11221, 11222 11221 = सेसींधा, सेसींधण, सेसींधव
**

11222*2 2 = सेदग, सेदागण, सेगव
11222*2 21 = सेदागू, सेदागुण, सेदागुव
11222*2 22 = सेदागी, सेदागिण, सेदागिव
11222*2 22 +1 = सेदागिल, सेदागीलण, सेदागीलव
**

11222 2 112 = सेगस, सेगासण, सेगासव
11222 2 1121 = सेगासल, सेगसलण, सेगसलव
11222 2 112, 11222 2 112 = सेगासध, सेगसधण, सेगसधव
11222 2 1122 = सेगासी, सेगासिण, सेगासिव
(इन सब छंदाओं को 1122 22 112 = सीगिस रूप में भी लिया जा सकता है।)
****

112*3 2 = साबग, सबगण, सबगव (मेघवितान छंद)
112*3 21 = सबगू, सबगुण, सबगुव
112*3 22 = सबगी, सबगिण, सबगिव (गगन छंद)
112*3 22 +1 = सबगिल, सबगीलण, सबगीलव

112*2 2 112 = सदगस, सादगसण, सादगसव
112 1122*2 = सासिद ससिदण, ससिदव
112 1122*2 +1 = ससिदल, सासिदलण, सासिदलव

112*2 22 112 = सदगिस, सदगीसण, सदगीसव
112*2 22 1122 = सदगीसी, सदगीसिण, सदगीसिव

112 11222*2 = सासेदा, सासेदण, सासेदव
**

1122 112*2 = सीसद, सिसदण, सिसदव
1122 112*2 +1 = सिसदल, सीसदलण, सीसदलव
1122 112*2 2 = सिसदग, सीसदगण, सीसदगव
1122 112*2 21 = सीसदगू, सीसदगुण, सीसदगुव
1122 112*2 22 = सीसदगी, सीसदगिण, सीसदगिव
1122 112*2 22 +1 = सीसदगिल, सीसदगीलण, सीसदगीलव

1122*2 112 = सीदस, सिदसण, सिदसव (सायक छंद)
1122*3 2 = सीबग, सिबगण, सिबगव
1122*3 21 = सिबगू, सिबगुण, सिबगुव
1122*3 22 = सिबगी, सिबगिण, सिबगिव
1122*3 22 +1 = सिबगिल, सिबगीलण, सिबगीलव

1122*2 2 112 = सिदगस, सीदगसण, सीदगसव
1122*2 2 1122 = सीदगसी, सीदगसिण, सीदगसिव

1122 11222*2 = सीसेदा, सीसेदण, सीसेदव
****

11222 112*2 = सेसद, सेसादण, सेसादव
11222 112*2 +1 = सेसादल, सेसदलण, सेसदलव
11222 112*2 2 = सेसादग, सेसदगण, सेसदगव
11222 112*2 21 = सेसदगू, सेसदगुण, सेसदगुव
11222 112*2 22 = सेसदगी, सेसदगिण, सेसदगिव
11222 112*2 22 +1 = सेसदगिल, सेसदगीलण, सेसदगीलव

11222 1122 112 = सेसिस, सेसीसण , सेसीसव
11222 1122 1121 = सेसीसल, सेसिसलण, सेसिसलव
11222 1122*2 = सेसिद, सेसीदण , सेसीदव
11222 1122*2 +1 = सेसीदल, सेसिदलण, सेसिदलव

11222*2 112 = सेदस, सेदासण, सेदासव
11222*2 1121 = सेदासल, सेदसलण, सेदसलव
11222*2 1122 = सेदासी, सेदासिण, सेदासिव
11222*2 11221 = सेदासिल, सेदासीलण, सेदासीलव

11222*3 2 = सेबग, सेबागण, सेबागव
11222*3 22 = सेबागी, सेबागिण, सेबागिव
****

11222*2 2 112 = सेदागस, सेदगसण, सेदगसव

11222 2 1122 112 = सेगासिस, सेगासीसण, सेगासीसव
11222 2 11222 1122  = सेगासेसी, सेगासेसिण, सेगासेसिव
****

112*4 2 = साचग, सचगण, सचगव (तारिक छंद)
1122 112*3 2 = सिसबग, सीसबगण, सीसबगव

11222*2 1122*2 = सेदासिद, सेदासीदण, सेदासीदव
11222*2 1122*2 +1 = सेदासीदल, सेदासिदलण, सेदासिदलव
****
****

सगणावृत्त छंदाएँ :- इन छंदाओं में केवल सगणाश्रित गुच्छक ही रहते हैं जिनकी एक से चार गुच्छक तक की आवृत्तियाँ रहती हैं। गुच्छक के अंत में स्वतंत्र वर्ण जुड़ सकते हैं। द्विगुच्छकी छंदाओं के मध्य में भी स्वतंत्र वर्ण संयोजित हो सकते हैं। इस पाठ में आगे लघु वृद्धि की छंदाएँ नहीं दी जा रही हैं जो सभी में बन सकती हैं। अब आगे केवल वाचिक और मात्रिक छंदाएँ ही दी जायेंगी। इन्हें बनाने के लिये आधार गुच्छक के रूप में इस पाठ के प्रारंभ में बताये गये 8 गुच्छक में से कोई भी लिया जा सकता है।

"स = (112 आधार गुच्छक)":-

112*2 12 = सदली, सदलिण
112*3 12 = सबली, सबलिण
112*4 12 = सचली, सचलिण
112*2 12, 112*2 12 = सदलिध, सदलीधण

112 11221 2 = सासींगा, सासींगण
112 11221 22 = सासींगी, सासींगिण
112 11212 2 = सासुग, ससुगण
112 11212 22 = ससुगी, ससुगिण
112 112121 2 = सासूंगा, सासूंगण
112 112121 22 = सासूंगी, सासूंगिण
112 112221 2 = सासैंगा, सासैंगण
112 112221 22 = सासैंगी, सासैंगिण
(इन्हें त्रिगुच्छकी छंदा का रूप देने के लिये आधार सगण को आवृत्त किया जायेगा। इससे सदसींगा, सदसूंगी आदि छंदाएँ बनेंगी।)

112*2 +2 11212 = सादगसू, सादगसुण
112*2 +22 11212 = सदगीसू, सदगुसुण
112*2 +12 (सदलिस, सदलीसी, सासुद, सदलीसे)
****

"सी = (1122 आधार गुच्छक)":-

1122*2 12 = सिदली, सिदलिण
1122*3 12 = सिबली, सिबलिण
1122*2 12, 1122*2 12 = सिदलिध, सिदलीधण

1122 11212 = सीसू, सीसुण
1122*2 11212 = सिदसू, सिदसुण

1122 11221 22 = सीसींगी, सीसींगिण
1122 112221 2 = सीसैंगा, सीसैंगण
1122 112221 22 = सीसैंगी, सीसैंगिण
(आधार गुच्छक की आवृत्ति से सिदसींगी, सिदसैंगा आदि त्रिगुच्छकी छंदाएँ बनेंगी)

1122 112*2 12 = सीसदली, सीसदलिण
1122 11212*2 = सीसुद, सीसूदण

1122*2 +2 11212 = सीदगसू, सीदगसुण
****

"सीं = (11221 आधार गुच्छक)":-

11221 2 = सींगा, सींगण
11221 22 = सींगी, सींगिण, सींगिव (हंसमाला छंद)
11221 22, 11221 22 = सींगिध, सींगीधण

11221 2 112 = सींगस, सींगासण
11221 22 112 = सींगिस, सींगीसण
(इनके अंत में स के स्थान पर सी, सू, से गणक भी आ सकते हैं।)
****

"सू = (11212 आधार गुच्छक )":-

11212 2 = सूगा, सूगण
11212 22 = सूगी, सूगिण
11212 22, 11212 22 = सूगिध, सूगीधण

11212*2 2 = सूदग, सुदगण
11212*2 12 = सुदली, सुदलिण
11212*2 22 = सुदगी, सुदगिण
(ये छंदाएँ तीन की आवृत्ति में भी बनेंगी।)

11212 112 = सूसा, सूसण
11212 1122 = सूसी, सूसिण
11212 1122, 11212 1122 = सूसिध, सूसीधण
11212 1122, 11212 1121 = सूसिणसूसल, सूसिणसुसलण, सूसिणसुसलव (सिद्धिका छंद)
11212 112 22 = सुसगी, सुसगिण
11212*2 112 = सूदस, सुदसण
11212*2, 11212 1121 = सूदंसूसल, सूदंसुसलण, सूदंसुसलव (मणिमाल छंद)

11212 2 112 = सूगस, सुगसण
11212 22 112 = सूगिस, सूगीसिण
(इनके अंत में स के स्थान पर सी, सू, से गणक भी आ सकते हैं।)

11212 112*2 2 = सुसदग, सूसदगण
(ग के स्थान पर ल, ली या गी भी संयोजित हो सकता है।)
11212 1122*2 = सूसिद, सूसीदण

11212 112, 11212 112 +2 = सुसधग, सूसधगण
****

"सूं = (112121 आधार गुच्छक )":-

112121 2 = सूंगा, सूंगण
112121 22 = सूंगी, सूंगिण, सूंगिव (ईश/अनघ छंद)
112121 22, 112121 22 = सूंगिध, सूंगीधण

112121 2 112 = सूंगस, सूंगासण
112121 22 112 = सूंगिस, सूंगीसण
(इनके अंत में स के स्थान पर सी, सू, से गणक भी आ सकते हैं।)
****

"से = (11222 आधार गुच्छक )":-

11222*2 12 = सेदाली, सेदालिण

11222 11212 = सेसू, सेसुण
11222*2 11212 = सेदासू, सेदासुण

11222 112*2 12 = सेसदली, सेसदलिण
11222 11212*2 = सेसुद, सेसूदण
****

"सैं = (112221 आधार गुच्छक )":-

112221 2 = सैंगा, सैंगण
112221 22 = सैंगी, सैंगिण
112221 2, 112221 2 = सैंगध, सैंगाधण

112221 2 112 = सैंगस, सैंगासण
112221 22 112 = सैंगिस, सैंगीसण
(इनके अंत में स के स्थान पर सी, सू, से गणक भी आ सकते हैं।)
****
****

सगणाश्रित बहुगणी छंदाएँ:-

सामक छंदाएँ:- इन छंदाओं में सगण और मगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता है। 'म' से आरंभ होनेवाले किसी भी गुच्छक तथा 'ग' से आरंभ होनेवाले किसी भी वर्ण के गुरु को ओलल वर्ण में तोड़ा जा सकता है यदि उसके दोनों तरफ गुरु वर्ण रहे। यहाँ लघु वृद्धि की छंदाएँ नहीं दी जा रही जो सभी में बन सकती हैं।

11221 222 = सींमा, सींमण
11221 222, 11221 222 = सींमध, सींमाधण
11221 222 112 = सींमस, सींमासण

(इन छंदाओं में आधार गुच्छक के रूप में सू (11212), सूं (112121) तथा सैं (112221) आ सकता है। म के स्थान पर भी मी या मू आ सकता है। अंत के स के स्थान पर भी सी, सू या सागी आ सकता है। जैसे- सूमीसू)

112121 222 = सूंमा, सूंमण, सूंमव (विजात छंद)
****

सातक छंदाएँ:- इन छंदाओं में सगण और तगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता है।

11221 2212 = सींती, सींतिण

(यह छंदा आधार गुच्छक में परिवर्तन से सूती, सूंती, सेती और सैंती नाम से बन सकती है। अंत में भी ती के स्थान पर ता, तू या ते आ सकता है।)

11212 2212, 11212 2212 = सूतिध, सूतीधण
11212 2212, 2212 11212 = सूतिणतीसू, सूतिणतीसुण
11212 2212 11212 = सूतीसू, सूतीसुण
****

सारक छंदाएँ:- इन छंदाओं में सगण और रगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता  है।

11221 212 = सींरा, सींरण
11221 212, 11221 212 = सींरध, सींराधण
11221 212 112 = सींरस, सींरासण

(इन छंदाओं में आधार गुच्छक के रूप में सू (11212), सूं (112121), से (11222) तथा सैं (112221) आ सकता है। र के स्थान पर भी री, रू या रागी आ सकता है। अंत के स के स्थान पर भी सी, सू, सागी आ सकता है। जैसे- सूंरासू)

112121 212 = सूंरा, सूंरण, सूंरव (भुजंगसंगता छंद)
****
****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Saturday, August 12, 2023

सायली (कोरोना)

लाचारी
कोरोना महामारी
भर रही सिसकारी
दुनिया सारी
हाहाकारी
*****

भड़की
कोरोना कलंकी
चमगादड़ से फड़की
मासूमों की
सिसकी
*****

वायरस
चीनी राक्षस
सब तहस नहस
लोग बेबस
नीरस
*****

कोरोना
चीनी टोना
विश्व शांति खोना
रोना धोना
होना
*****

1-2-3-2-1 शब्द प्रति पंक्ति।
*****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-07-20

Monday, August 7, 2023

पद्धरि छंद "जीवन मंत्र"

पद्धरि छंद / पज्झटिका छंद


करके विचार कर ले उपाय।
प्राणी मत रह मन को भ्रमाय।।
जीवन का बस यह एक सार।
जीना केवल है दिवस चार।।

इस अवसर का कर सदुपयोग।
त्यज तन मन से सब तुच्छ भोग।।
सदकर्मों से हो कर विहीन।
मत कर लेना तू मन मलीन।।

अपना झूठा कर मत प्रचार।
बन दुखियों के प्रति तू उदार।।
रह आत्म प्रशंसा में न लीन।
जी सदविचार में बन प्रवीन।।

अपने जन के प्रति पाल मोह।
करना न कभी तू जाति-द्रोह।।
गहना उनका तू नित्य हाथ।
जो जन्म-बंध से साथ साथ।।

रख गर्व मनाना सकल पर्व।
रुचिकर हों अपनी रीति सर्व।।
निज परंपराएँ श्रेष्ठ जान।
ऊँची उनकी रख आन बान।।

तुझको स्वधर्म पर हो घमंड।
बन जा संस्कृति का मेरुदंड।।
ये उच्च भाव नित रख सँभाल।
हो 'नमन' प्रखर भारत विशाल।।
***********

पद्धरि छंद विधान -

पद्धरि छंद 16 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। यह संस्कारी जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 16 मात्राओं की मात्रा बाँट:- द्विकल + अठकल + द्विकल + 1S1 (जगण) है। द्विकल में 2 या 11 रख सकते हैं तथा अठकल में 4 4 या 3 3 2 रख सकते हैं। इस छंद का अंत जगण से होना अनिवार्य है।

पज्झटिका छंद विधान -

प्राकृत पैंगलम्, केशव दास की छंद माला इत्यादि ग्रंथों के अनुसार इस छंद को ही पज्झटिका छंद माना गया है। परंतु छंद प्रभाकर में भानुकवि ने पज्झटिका छंद को अलग छंद माना है। पज्झटिका छंद की मात्रा बाँट 8 S 4 S बताई गयी है। साथ ही इसके किसी भी चौकल में जगण का प्रयोग सर्वथा वर्जित है। पज्झटिका छंद की एक चतुष्पदी देखें:-

"भोले की महिमा है न्यारी।
औघड़ दानी हैं भय हारी।।
शंकर काशी के तुम नाथा।
छंद रचूँ अरु गाऊँ गाथा।।"
******************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
13-06-22

Wednesday, August 2, 2023

छंदा सागर (जगणादि छंदाएँ)

                      पाठ - 15

छंदा सागर ग्रन्थ


"जगणादि छंदाएँ"


इस पाठ में हम उन छंदाओं का अध्ययन करेंगे जिनके प्रारंभ में जगण रहता है। इन छंदाओं का इसलिये जगणदि नाम दिया गया है क्योंकि छंदा के आदि में जगण गुच्छक रहते हैं। जगण गुच्छक निम्न हैं जिनका इन छंदाओं में प्रयोग होगा।

121 = जगण 
1211 = अंजल
1212 = ईजग
12121 = ईंजागल
12112 = ऊजालग
121121 = ऊंजालिल
12122 = एजागग
121221 = ऐंजागिल
****

जगणावृत्त छंदाएँ :- इन छंदाओं में केवल जगणाश्रित गुच्छक ही रहते हैं जिनकी एक से चार गुच्छक तक की आवृत्तियाँ रहती हैं। गुच्छक के अंत में स्वतंत्र वर्ण जुड़ सकते हैं। द्विगुच्छकी छंदाओं के मध्य में भी स्वतंत्र वर्ण संयोजित हो सकते हैं। इस पाठ में आगे लघु वृद्धि की छंदाएँ नहीं दी जा रही हैं जो सभी में बन सकती हैं। अब आगे केवल वाचिक और मात्रिक छंदाएँ ही दी जायेंगी। इन्हें बनाने के लिये आधार गुच्छक के रूप में इस पाठ के प्रारंभ में बताये गये 8 गुच्छक में से कोई भी लिया जा सकता है।

"ज = (121 आधार गुच्छक)":-

121*2 = जादा, जादण, जादव (शुभमाल छंद)
121*4 = जाचा, जाचण, जाचव (मौक्तिकदाम छंद)
121*2 2 = जादग, जदगण
121*3 2 = जाबग, जबगण
121*4 2 = जाचग, जचगण
(इन छंदाओं में अंत में ग के स्थान पर ली या गी भी संयोजित हो सकता है। जैसे - जदली, जबगी आदि।)
121*2 22, 121*2 22 = जदगिध, जदगीधण

121 1212 22 = जजिगी, जजिगिण
121 12121 2 = जाजींगा, जाजींगण
121 12121 12 = जाजींली, जाजींलिण
121 12121 22 = जाजींगी, जाजींगिण
121 12112 2 = जाजुग, जजुगण, जजुगव (महर्षि छंद)
121 12112 22 = जजुगी, जजुगिण
121 12122 22 = जाजेगी, जाजेगिण
121 121221 2 = जाजैंगा, जाजैंगण
121 121221 12 = जाजैंली, जाजैंलिण
121 121221 22 = जाजैंगी, जाजैंगिण
(इन्हें त्रिगुच्छकी छंदा का रूप देने के लिये आधार जगण को आवृत्त किया जायेगा। इससे जदजींगा, जदजैंली आदि छंदाएँ बनेंगी।)

121*2 +2 (जदगज, जाजिद, जादगजू, जादगजे)
121*2 +21 (जदगुज, जदगूजी, जदगूजू, जदगूजे)
121*2 +12 (जदलिज, जदलीजी, जाजुद, जदलीजे)
121*2 +22 (जदगिज, जदगीजी, जदगीजू, जाजेद)
(वर्ण संयोजन के पश्चात क्रमशः 121, 1212, 12112, 12122 गुच्छक की वाचिक छंदाएँ दी गयी हैं।)
****

"जी = (1212 आधार गुच्छक)":-

1212 22 = जीगी, जीगिण
(यह छंदा 12122 2 से अलग है। इसमें रचनाकार चाहे तो 22 को 112 में भी ले सकता है।)

1212*2 2 = जीदग, जिदगण
1212*3 2 = जीबग, जिबगण
1212*4 2 = जीचग, जिचगण
(इन छंदाओं में अंत में ग के स्थान पर ली या गी भी संयोजित हो सकता है। जैसे - जिदली, जिबगी आदि।)
1212*3 12 = जिबली, जिबलिण, जिबलिव (आनन्द छंद)
1212*2 2, 1212*2 2 = जिदगध, जीदगधण

1212 121 = जीजा, जीजण
1212*2 121 = जीदज, जिदजण
1212*3 121 = जीबज, जिबजण
1212 12112 = जीजू, जीजुण
1212*2 12112 = जिदजू, जिदजुण

1212 12121 12 = जीजींली, जीजींलिण
1212 12121 22 = जीजींगी, जीजींगिण
1212 12122 22 = जीजेगी, जीजेगिण
1212 121221 2 = जीजैंगा, जीजैंगण
1212 121221 12 = जीजैंली, जीजैंलिण
1212 121221 22 = जीजैंगी, जीजैंगिण
(आधार गुच्छक की आवृत्ति से जिदजींगी, जिदजैंगा आदि त्रिगुच्छकी छंदाएँ बनेंगी)

1212 121*2 +2 = जिजदग, जीजदगण
(ग के स्थान पर ली या गी भी संयोजित हो सकता है।)
1212 12112*2 = जीजुद, जीजूदण

1212*2 +1 1212 = जीदलजी, जीदलजिण
1212*2 +2 1212 = जीदगजी, जीदगजिण
(इन छंदाओं में अंत में जी के स्थान पर जू, जे गणक भी आ सकते हैं।)
****

"जीं = (12121 आधार गुच्छक)":-

12121 2 = जींगा, जींगण
12121 12 = जींली, जींलिण
12121 22 = जींगी, जींगिण
12121 22, 12121 22 = जींगिध, जींगीधण

12121*2 2 = जींदग, जींदागण
12121*2 12 = जींदाली, जींदालिण
12121*2 22 = जींदागी, जींदागिण
(ये छंदाएँ तीन की आवृत्ति में भी बनेंगी।)

12121 1212 = जींजी, जींजिण
12121 1212, 12121 1212 = जींजिध, जींजीधण
12121*2 1212 = जींदाजी, जींदाजिण
12121 22 1212 = जींगीजी, जींगीजिण
12121 221 1212 = जिलगींजी, जिलगींजिण
(इनके अंत में जी के स्थान पर जू, जे गणक भी आ सकते हैं।)

12121 121*2 +2 = जींजादग, जींजदगण
(ग के स्थान पर ली या गी भी संयोजित हो सकता है।)

12121 1212*2 = जींजिद, जींजीदण
12121 12112*2 = जींजुद, जींजूदण

12121 121, 12121 121 +2 = जींजाधग, जींजधगण
****

"जू = (12112 आधार गुच्छक )":-

12112 2 = जूगा, जूगण
12112 22 = जूगी, जूगिण
12112 22, 12112 22 = जूगिध, जूगीधण

12112*2 2 = जूदग, जुदगण
12112*2 12 = जुदली, जुदलिण
12112*2 22 = जुदगी, जुदगिण
(ये छंदाएँ तीन की आवृत्ति में भी बनेंगी।)

12112 1212 = जूजी, जूजिण
12112 1212, 12112 1212 = जूजिध, जूजीधण
12112*2 1212 = जुदजी, जुदजिण
(अंत में जे गणक भी आ सकता है।)

12112 2 1212 = जुगजी, जुगजिण
12112 21 1212 = जूगूजी, जूगूजिण
12112 22 1212 = जूगीजी, जूगीजिण
12112 221 1212 = जूगींजी, जूगींजिण
(इनके अंत में जी के स्थान पर जू या जे गणक भी आ सकता है।)

12112 121*2 2 = जुजदग, जूजदगण
(ग के स्थान पर ली या गी भी संयोजित हो सकता है।)
12112 1212*2 = जूजिद, जूजीदण

12112 121, 12112 121 +2 = जुजधग, जूजधगण
****

"जे = (12122 आधार गुच्छक )":-

12122 2 = जेगा, जेगण
12122 22 = जेगी, जेगिण
12122 22 12122 2 = जेगीजेगा, जेगीजेगण
12122 2, 12122 2 = जेगध, जेगाधण

12122*2 2 = जेदग, जेदागण
12122*2 12 = जेदाली, जेदालिण
12122*2 22 = जेदागी, जेदागिण
(ये छंदाएँ तीन की आवृत्ति में भी बनेंगी।)

12122 1212 = जेजी, जेजिण
12122 1212, 12122 1212 = जेजिध, जेजीधण
12122*2 1212 = जेदाजी, जेदाजिण
(इनके अंत में जी के स्थान पर जू गणक भी आ सकता है।)

12122 2 1212 = जेगाजी, जेगाजिण
12122 21 1212 = जेगूजी, जेगूजिण
12122 22 1212 = जेगीजी, जेगीजिण
12122 221 1212 = जेगींजी, जेगींजिण
(इनके अंत में जी के स्थान पर जू या जे गणक भी आ सकता है।)

12122 121*2 2 = जेजादग, जेजदगण
(ग के स्थान पर ली या गी भी संयोजित हो सकता है।)
12122 1212*2 = जेजिद, जेजीदण

12122 121, 12122 121 +2 = जेजाधग, जेजधगण
*****

"जैं = (121221 आधार गुच्छक )":-

121221 2 = जैंगा, जैंगण
121221 12 = जैंली, जैंलिण
121221 22 = जैंगी, जैंगिण
121221 2, 121221 2 = जैंगध, जैंगाधण

121221*2 2 = जैंदग, जैंदागण
121221*2 12 = जैंदाली, जैंदालिण
121221*2 22 = जैंदागी, जैंदागिण
(ये छंदाएँ तीन की आवृत्ति में भी बनेंगी।)

121221 1212 = जैंजी, जैंजिण
121221 1212, 121221 1212 = जैंजिध, जैंजीधण
121221*2 1212 = जैंदाजी, जैंदाजिण
121221 2 1212 = जैंगाजी, जैंगाजिण
121221 21 1212 = जैंगूजी, जैंगूजिण
121221 22 1212 = जैंगीजी, जैंगीजिण
121221 221 1212 = जेलगींजी, जेलगींजिण
(इनके अंत में जी के स्थान पर जू या जे गणक भी आ सकता है।)

121221 12122 = जैंजे, जैंजेण, जैंजेव (उपेन्द्रवज्रा छंद)
121221 12121 2 = जेलजींगा, जेलजींगण, जेलजींगव (वंशस्थ छंद)

121221 121*2 2 = जैंजादग, जैंजदगण
(ग के स्थान पर ली या गी भी संयोजित हो सकता है।)
121221 1212*2 = जैंजिद, जैंजीदण

121221 121, 121221 121 +2 = जैंजाधग, जैंजधगण
****
****

जगणाश्रित बहुगणी छंदाएँ:-

जामक छंदाएँ:- इन छंदाओं में जगण और मगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता  है। मगण के किसी भी गव वर्ण को ओलल वर्ण में तोड़ा जा सकता है यदि उसके दोनों तरफ गुरु वर्ण रहे। यहाँ लघु वृद्धि की छंदाएँ नहीं दी जा रही जो सभी में बन सकती हैं।

12121 222 = जींमा, जींमण
12121 222, 12121 222 = जींमध, जींमाधण

(इन छंदाओं में आधार गुच्छक के रूप में जू (12112), जूं (121121), जे (12122) या जैं (121221) आ सकता है। म के स्थान पर भी मी या मू आ सकता है। जैसे- जूंमू)

12121 222 1212 = जींमाजी, जींमाजिण
(इस छंदा में आधार गुच्छक जू, जूं, जे, जैं तथा म के स्थान पर मी आ सकता है। अंतिम गुच्छक जू, जे रख सकते हैं। जैसे- जूमीजे)

12122*2  2222 =  जेदामी, जेदामिण, जेदामिव
****

जातक छंदाएँ:- इन छंदाओं में जगण और तगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता है।

12121 2212 = जींती, जींतिण
12121 2212, 12121 2212 = जींतिध, जींतीधण

(इन में आधार गुच्छक के रूप में जू (12112), जूं (121121), जे (12122) या जैं (121221) आ सकता है। अंत में भी ती के स्थान पर तू या ते आ सकता है। जैसे- जूतुध)

12121 22122 1212 = जींतेजी, जींतेजिण
(इस छंदा में आधार गुच्छक जू, जूं, जे, जैं तथा अंतिम गुच्छक जू, जे रख सकते हैं। जैसे- जैंतेजी)

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जारक छंदाएँ:- इन छंदाओं में जगण और रगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता  है।

12112 212 = जूरा, जूरण
12112 212, 12112 212 = जूरध, जुरधण
(इस छंदा में आधार गुच्छक जे तथा अंतिम गुच्छक री या रागी रख सकते हैं। जैसे- जेरागी)

12112 2122 1212 = जूरीजी, जूरीजिण
12122 2122 12122 = जेरीजे, जेरीजेण

12112 2122 = जूरी, जूरिण, जूरिव (भुआल छंद)
****

जायक छंदाएँ:- इन छंदाओं में जगण और यगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता  है।

12121 122 = जींया, जींयण
12121 122, 12121 122 = जींयध, जींयाधण
12121 122 1212 = जींयाजी, जींयाजिण

(इन में आधार गुच्छक के रूप में जूं (121121) या जैं (121221) आ सकता है। य के स्थान पर यी तथा अंत में जी के स्थान पर जू या जे आ सकता है। जैसे- जूंयी, जैंयाजे।)

12121 122 1212 22 = जींयाजीगी, जींयाजीगिण
****

जाभक छंदाएँ:- इन छंदाओं में जगण और भगण आधारित गुच्छक का प्रयोग रहता  है।

12112 2112 = जूभी, जूभिण
12112 2112, 12112 2112 = जूभिध, जूभीधण
(इस छंदा में आधार गुच्छक जे तथा अंतिम गुच्छक भे रख सकते हैं। जैसे- जेभे)

12112 2112 1212 = जूभीजी, जूभीजिण
12122 2112 1212 = जेभीजी, जेभीजिण
(इनमें अंत में जू या जे गणक भी रख सकते हैं।)

12122*2 2112 = जेदाभी, जेदाभिण
12122*2 21122 = जेदाभे, जेदाभेण
****
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Saturday, July 29, 2023

मुक्तक (बढ़ती आबादी)

बढ़ती जाये ज्यों आबादी, घटते कारोबार हैं,
तुष्टिकरण के आज सामने, सरकारें लाचार हैं,
पास नहीं इक रोजगार है, बच्चों की पर फौज सी,
आज़ादी के सात दशक यूँ, कर दीन्हे बेकार हैं।

खुद की देन आपकी बच्चे, मिलते ये न प्रसाद में,
घर में पहले रोजगार हो, बच्चे फिर हों बाद में,
बात न ये तबके तबके की, सारे जिम्मेदार हैं,
तय कर दे कानून देश का, बच्चे किस तादाद में।  

(प्रदीप छंद आधारित)                    

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-11-2016

Friday, July 21, 2023

हाइकु (संस्कृति)

हाइकु विधा:- 5 - 7 - 5 वर्ण प्रति पंक्ति।

राम किसमें
तर्क, इतिहास में?
आस, श्वांस में।
**

राम बसे हैं
अपने ही अंदर
ढूंढें बाहर?
**

जो सनातन
सत्य, स्थिर, चेतन
वो भगवन।
**

तत्व दर्शन
जो होता लघुतम
वो ही सर्वोच्च।
**

चेहरा लख
इंसान की कीमत
होती परख।
**

गुरु की वाणी
बन्द द्वार की चाबी
झट से खोले।
**

माला राम की
जपें सब नाम की
भारी काम की।
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-08-16

Friday, July 14, 2023

छंदा सागर (भगणादि छंदाएँ)

                      पाठ - 14

छंदा सागर ग्रन्थ

"भगणादि छंदाएँ"

इस पाठ में हम उन छंदाओं का अध्ययन करेंगे जिनके प्रारंभ में भगण रहता है। इन छंदाओं का इसलिये भगणादि नाम दिया गया है क्योंकि छंदा के आदि में भगण है। इन छंदाओं में प्रयुक्त होनेवाले भगण गुच्छक निम्न हैं।
211 = भगण 
2112 = ईभग
21121 = ईंभागल
21122 = एभागग
211221 = ऐंभागिल

भगणादि गुरु-लूकी छंदाएँ:- इन छंदाओं में गुरु वर्ण के मध्य ऊलल वर्ण (11) रहते हैं। वाचिक स्वरूप में ये दोनों लघु स्वतंत्र लघु होते हैं। मात्रिक और वर्णिक में लघु वर्ण सामान्य लघु ही रहते हैं।
****

21122 2 = भेगा, भेगण, भेगव
21122 21 = भेगू, भेगुण, भेगुव
21122 22 = भेगी, भेगिण, भेगिव
21122 22 +1 = भेगिल, भेगीलण, भेगीलव

21122 22 21122 2 = भेगीभेगा, भेगीभेगण, भेगीभेगव
21122 22 21122 22 = भेगीधू, भेगीधुण, भेगीधुव
21122 22, 21122 22 = भेगिध, भेगीधण, भेगीधव
21122 22, 21122 22 +1 = भेगीधल, भेगिधलण, भेगिधलव

21122 222 = भेमा, भेमण, भेमव
21122 2221 = भेमल, भेमालण, भेमालव
21122 2222 = भेमी, भेमिण, भेमिव
21122 22221 = भेमिल, भेमीलण, भेमीलव
****

211*2 2 = भादग, भदगण, भदगव
211*2 21 = भदगू, भदगुण, भदगुव
211*2 2 211*2 2 = भदगध, भादगधण, भादगधव
211*2 21, 211*2 21 = भदगुध, भदगूधण, भदगूधव
211*2 22 = भदगी, भदगिण, भदगिव (चित्रपदा छंद)
211*2 22 211*2 22 = भदगीधू, भदगीधुण, भदगीधुव
211*2 222 = भादम, भदमण, भदमव
211*2 2221 = भदमल, भादमलण, भादमलव
211*2 2222 = भदमी, भदमिण, भदमिव
211*2 22221 = भदमिल, भदमीलण, भदमीलव
**

2112*2 2 = भीदग, भिदगण, भिदगव
2112*2 21 = भिदगू, भिदगुण, भिदगुव
2112*2 2, 2112*2 2  = भिदगध, भीदगधण, भीदगधव
2112*2 21, 2112*2 21  = भिदगुध, भिदगूधण, भिदगूधव

2112*2 22 = भिदगी, भिदगिण, भिदगिव
2112*2 22 +1 = भिदगिल, भिदगीलण, भिदगीलव
2112*2 222 = भीदम, भिदमण, भिदमव
2112*2 2221 = भिदमल, भीदमलण, भीदमलव
**

21122 2112 = भेभी, भेभिण, भेभिव (मणिमध्य छंद)
21122 21121 = भेभिल, भेभीलण, भेभीलव

21122*2 2 = भेदग, भेदागण, भेदागव
21122*2 21 = भेदागू, भेदागुण, भेदागुव
21122*2 22 = भेदागी, भेदागिण, भेदागिव
21122*2 22 +1 = भेदागिल, भेदागीलण, भेदागीलव
**

21122 22 2112 = भेगीभी, भेगीभिण, भेगीभिव
21122 22 21122 = भेगीभे, भेगीभेण, भेगीभेव
****

211*3 2= भाबग, भबगण, भबगव (सारवती छंद)
211*3 21 = भबगू, भबगुण, भबगुव
211*3 22 = भबगी, भबगिण, भबगिव (दोधक छंद)
211*3 222 = भाबम, भबमण, भबमव
211*3 2221 = भबमल, भाबमलण, भाबमलव
**

211 2112*2 = भाभिद, भभिदण, भभिदव
211 2112*2 +1 = भभिदल, भाभिदलण, भाभिदलव
211*2 22 2112 = भदगीभी, भदगीभिण, भदगीभिव
211*2 22 21121 = भदगीभिल, भदगीभीलण, भदगीभीलव
211 21122*2 = भाभेदा, भाभेदण, भाभेदव
211 21122*2 +1 = भाभेदल, भाभेदालण, भाभेदालव
****

2112 211*2 2 = भिभदग, भीभदगण, भीभदगव
2112*3 2 = भीबग, भिबगण, भिबगव
2112*3 21 = भिबगू, भिबगुण, भिबगुव
2112*3 22 = भिबगी, भिबगिण, भिबगिव
2112*3 22 +1 = भिबगिल, भिबगीलण, भिबगीलव
2112 21122*2  = भीभेदा, भीभेदण, भीभेदव
****

21122 211*2 2 = भेभादग, भेभदगण, भेभदगव
21122 211*2 21 = भेभदगू, भेभदगुण, भेभदगुव
21122 211*2 22 = भेभदगी, भेभदगिण, भेभदगिव
21122 2112*2 = भेभिद, भेभीदण, भेभिदगव
21122 2112*2 2 = भेभीदग, भेभिदगण, भेभिदगव
**

21122*2 2112= भेदाभी, भेदाभिण, भेदाभिव
21122*2 21121 = भेदाभिल, भेदाभीलण, भेदाभीलव
**

21122*3 2 = भेबग, भेबागण, भेबागव
21122*3 21 = भेबागू, भेबागुण, भेबागुव
21122*3 22= भेबागी, भेबागिण, भेबागिव
21122*3 22 +1 = भेबागिल, भेबागीलण, भेबागीलव
21122*2, 21122 222= भेदंभेमा, भेदंभेमण, भेदंभेमव
****
****

भगणावृत्त छंदाएँ :- इन छंदाओं में केवल भगणाश्रित गुच्छक ही रहते हैं जिनकी एक से चार गुच्छक तक की आवृत्तियाँ रहती हैं। गुच्छक के अंत में स्वतंत्र वर्ण जुड़ सकते हैं। द्विगुच्छकी छंदाओं के मध्य में भी स्वतंत्र वर्ण संयोजित हो सकते हैं। इस पाठ में आगे लघु वृद्धि की छंदाएँ नहीं दी जा रही हैं जो सभी में बन सकती हैं। अब आगे केवल वाचिक और मात्रिक छंदाएँ ही दी जायेंगी। इन्हें बनाने के लिये आधार गुच्छक के रूप में इस पाठ के प्रारंभ में बताये गये 5 गुच्छक में से कोई भी लिया जा सकता है।

"भ = (211 आधार गुच्छक)":-

211 21121 2 = भाभींगा, भाभींगण
211 21121 22 = भाभींगी, भाभींगिण
211 211221 2 = भाभैंगा, भाभैंगण
211 211221 22 = भाभैंगी, भाभैंगिण
(इन्हें त्रिगुच्छकी छंदा का रूप देने के लिये आधार भगण को आवृत्त किया जायेगा। इससे भदभींगा, भदभैंगी आदि छंदाएँ बनेंगी।)

211*2 +21 2112 = भदगूभी, भदगूभिण
211*2 +21 21122 = भदगूभे, भदगूभेण
211*3 +21 2112 = भबगूभी, भबगूभिण

211 21121*2 2 = भाभींदग, भाभींदागण
****

"भी = (2112 आधार गुच्छक)":-

2112*2 +12 = भिदली, भीदलिण
2112*3 +12 = भिबली, भीबलिण
2112*2 +12, 2112*2 +12 = भिदलिध, भीदलीधण

2112 211221 +2 = भीभैंगा, भीभैंगण
2112 211221 +22 = भीभैंगी, भीभैंगिण
2112*2 211221 +2 = भिदभैंगा, भिदभैंगण

2112*2 +1 2112 = भीदलभी, भीदलभिण
2112*2 +1 21122 = भीदलभे, भीदलभेण
2112*2 +21 2112 = भिदगूभी, भिदगूभिण

2112 21121*2 2 = भीभींदग, भीभींदागण
****

"भीं = (21121 आधार गुच्छक)":-

21121 2 = भींगा, भींगण
21121 22 = भींगी, भींगिण
21121 22 21121 2 = भींगीभींगा, भींगीभींगण
21121 22, 21121 22 = भींगिध, भींगीधण

21121*2 2 = भींदग, भींदागण
21121*2 12 = भींदाली, भींदालिण
21121*2 22 = भींदागी, भींदागिण
21121*3 2 = भींबग, भींबागण

21121 2112 = भींभी, भींभिण
21121*2 2112 = भींदाभी, भींदाभिण
21121*3 2112 = भींबाभी, भींबाभिण
21121 2112, 21121 2112 = भींभिध, भींभीधण
21121 2 2112 = भींगाभी, भींगाभिण
21121 21 2112 = भींगूभी, भींगूभिण
21121 22 2112 = भींगीभी, भींगीभिण
21121 221 2112 = भिलगींभी, भिलगींभिण
(इन छंदाओं के अंत में भी के स्थान पर भे का प्रयोग भी किया जा सकता है। जैसे- भींभेधा)

21121 2112*2 = भींभिद, भींभीदण
21121 2112*2 2 = भींभीदग, भींभिदगण
21121 2112, 21121 2112 +2 = भींभीधग, भींभिधगण
****

"भे = (21122 आधार गुच्छक)":-

21122*2 12 = भेदाली, भेदालिण
21122*3 12 = भेबाली, भेबालिण

21122 21 2112 = भेगूभी, भेगूभिण
21122 21 21122 = भेगूभे, भेगूभेण
****

"भैं = (211221 आधार गुच्छक)":-

211221 2 = भैंगा, भैंगण
211221 22 = भैंगी, भैंगिण
211221 22, 211221 22 = भैंगिध, भैंगीधण

211221*2 2 = भैंदग, भैंदागण
211221*2 12 = भैंदाली, भैंदालिण
211221*2 22 = भैंदागी, भैंदागिण
(ये तीन की आवृत्ति में भी बनेंगी)

211221 2112 = भैंभी, भैंभिण
211221*2 2112 = भैंदाभी, भैंदाभिण
211221 2112, 211221 2112 = भैंभिध, भैंभीधण
211221 2 2112 = भैंगाभी, भैंगाभिण
211221 21 2112 = भैंगूभी, भैंगूभिण
211221 22 2112 = भैंगीभी, भैंगीभिण
211221 121 2112 = भेललींभी, भेललींभिण
211221 221 2112 = भेलगींभी, भेलगींभिण
(इन छंदाओं के अंत में भ के स्थान पर भे का प्रयोग भी किया जा सकता है। जैसे- भैंभे, भैंगूभे)

211221 2112*2 = भैंभिद, भैंभीदण
211221 2112*2 2 = भैंभीदग, भैंभिदगण
211221 2112, 211221 2112 +2 = भैंभीधग, भैंभिधगण
****
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भगणाश्रित बहुगणी छंदाएँ:-

भामक छंदाएँ:- इन छंदाओं में भगण और मगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता है। यहाँ लघु वृद्धि की छंदाएँ नहीं दी जा रही जो सभी में बन सकती हैं।

21121 222 = भींमा, भींमण
21121 222, 21121 222 = भींमध, भींमाधण
21121 222 2112 = भींमाभी, भींमाभिण

(इन छंदाओं में आधार गुच्छक के रूप में भैं (211221) आ सकता है। म के स्थान पर मी या मू आ सकता है। अंत के भी के स्थान पर भे आ सकता है। जैसे- भींमी, भैंमूभी)

211*2 +21 222 = भदगुम, भदगूमण भदगूमव (रोचक छंद)
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भातक छंदाएँ:- इन छंदाओं में भगण और तगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता है।

21121 2212 = भींती, भींतिण
21121 2212, 21121 2212 = भींतिध, भींतीधण
21121 221 2112 = भींताभी, भींताभिण

(इन छंदाओं में आधार गुच्छक के रूप में भे (21122) या भैं (211221) आ सकता है। ती के स्थान पर ते आ सकता है। अंत के भी के स्थान पर भे आ सकता है। जैसे- भेते, भैंतीभी)
****

भारक छंदाएँ:- इन छंदाओं में भगण और रगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता है।

21121 212 = भींरा, भींरण
21121 212, 21121 212 =भींरध, भींराधण
21121 212 2112 = भींराभी, भींराभिण

(इन छंदाओं में आधार गुच्छक के रूप में भे (21122) या भैं (211221) आ सकता है। र के स्थान पर री या रू आ सकता है। अंत के भी के स्थान पर भे आ सकता है। जैसे- भेरू, भैंरीभी)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Sunday, July 9, 2023

नित छंद "ज्ञानवापी"

ज्ञानवापी सच यही।
ये न मस्जिद थी रही।।
महादेव बसे जहाँ।
क्यों न फिर मंदिर वहाँ।।

आततायी क्रूर वे।
राज्य मद में चूर वे।।
मुगल शासक जब हुये।
नष्ट मंदिर तब हुये।।

काशी की यही कथा।
नन्दीनाथ की व्यथा।।
दहकाती ज्वाल लगे।
मन में आक्रोश जगे।।

फव्वारा कहें जिसे।
शंभु हम मानें इसे।।
लिंग का प्राकट्य है।
विश्व सम्मुख तथ्य है।।

भग्न मूर्ति मिलीं वहाँ।
कमल, स्वस्तिक भी यहाँ।।
चिन्ह जो सब प्राप्त ये।
क्या नहीं पर्याप्त ये।।

तथ्य सारे जाँचिए।
न्याय हमको दीजिए।।
भव्य मंदिर अब बने।
'नमन' जन जन में ठने।।
***********

नित छंद विधान -

नित छंद 12 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। यह आदित्य जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 12 मात्राओं की मात्रा बाँट - 9 + 1 2 है।
नवकल की निम्न संभावनाएँ हैं -
12222 (2222 को अठकल मान सकते हैं।)
21222 (222 को छक्कल मान सकते हैं।)
22122
22212 (222 को छक्कल मान सकते हैं।)
22221 (2222 को अठकल मान सकते हैं।)
(इन सब में 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है।)

अंत के लघु गुरु (12) को नगण (111) के रूप में भी लिया जा सकता है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
29-05-22

Sunday, July 2, 2023

सेदोका (प्रीत)

(5 7 7 5 7 7 वर्ण प्रति पंक्ति।)

सेदोका कविता - 1

चन्द्र चकोरी
तेरे नेह की रश्मि
जब भी आ के गिरी
मन में उठा
उतङ्ग ज्वार भाटा
तुम्हारी और खिंचा।
*****

सेदोका कविता - 2

प्रीत का चाँद
आकर्षित करता
मन का ज्वार-भाटा,
प्रेम-सागर
मिलने को आतुर
चन्द्र-प्रिया चातुर।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-02-19