बह्र:- (22 122 22)*2
भाषा बड़ी है प्यारी, जग में अनोखी हिन्दी,
चन्दा के जैसे सोहे, नभ में निराली हिन्दी।
इसके लहू में संस्कृत, थाती बड़ी है पावन,
ये सूर, तुलसी, मीरा, की है बसाई हिन्दी।
पहचान हमको देती, सबसे अलग ये जग में,
मीठी जगत में सबसे, रस की पिटारी हिन्दी।
हर श्वास में ये बसती, हर आह से ये निकले,
बन के लहू ये बहती, रग में ये प्यारी हिन्दी।
इस देश में है भाषा, मजहब अनेकों प्रचलित,
धुन एकता की डाले, सब में सुहानी हिन्दी।
हम नाज़ इस पे करते, सुख दुख इसी में बाँटें,
भारत का पूरे जग में, डंका बजाती हिन्दी।
शोभा हमारी इससे, करते 'नमन' हम इसको,
सबसे रहे ये ऊँची, मन में हमारी हिन्दी।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-09-2016
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