फागुन सुहावना।
मौसम लुभावना।
चंग बजती जहाँ।
रंग उड़ते वहाँ।
बालक गले लगे।
प्रीत रस हैं पगे।
नार नर दोउ ही।
नाँय कम कोउ ही।।
राग थिरकात है।
ताल ठुमकात है।
झूम सब नाचते।
मोद मन मानते।।
धर्म अरु जात को।
भूल सब बात को।
फाग रस झूमते।
एक सँग खेलते।।
===========
लक्षण छंद:-
"भाजग" रखें गुनी।
'छंद' रचते 'धुनी'।।
"भाजग" = भगण जगण गुरु
211 121 2 = 7 वर्ण।
चार चरण दो दो समतुकांत।
***************
बासुदेव अग्रवाल
तिनसुकिया
5-3-17
मौसम लुभावना।
चंग बजती जहाँ।
रंग उड़ते वहाँ।
बालक गले लगे।
प्रीत रस हैं पगे।
नार नर दोउ ही।
नाँय कम कोउ ही।।
राग थिरकात है।
ताल ठुमकात है।
झूम सब नाचते।
मोद मन मानते।।
धर्म अरु जात को।
भूल सब बात को।
फाग रस झूमते।
एक सँग खेलते।।
===========
लक्षण छंद:-
"भाजग" रखें गुनी।
'छंद' रचते 'धुनी'।।
"भाजग" = भगण जगण गुरु
211 121 2 = 7 वर्ण।
चार चरण दो दो समतुकांत।
***************
बासुदेव अग्रवाल
तिनसुकिया
5-3-17
No comments:
Post a Comment