(चोका कविता)
जापानी विधा
5-7, 5-7, 5-7 -------- +7 वर्ण प्रति पंक्ति
अंधा विश्वास,
अंधी आस्था करती...
विवेक शून्य,
क्षणिक आवेश में
मानव भूले
क्या सही क्या गलत?
होकर पस्त,,,
यही तो है उन्माद।
मनुष्य नाचे
कठपुतली बन,
थमी है डोर
बाज़ीगर के हाथ,
जैसे वो चाहे
नचाए पुतलों को
ये खिलौनों से
मस्तिष्क से रहित
मचा तांडव
करें नग्न नर्तन
लूट हिंसा का
बन आतंकवादी
यही तो है उन्माद।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
08-09-17
तिनसुकिया
08-09-17
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