Friday, August 9, 2019

क्षणिका (मानवीय क्षमता)

हे मानवीय क्षमता
क्या छोटी पड़ गई धरा?
जो चढ़ बैठी हो,
अंतरिक्ष में
जहाँ से अपने बनाये
उपग्रही खिलौनों की आँख से
तुम देख,,,,
अट्टहास कर सको
बेरोजगारी और गरीबी का दानव
अपने पंजों में जकड़ता
सिसकता, कराहता मानव।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-02-18

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