Sunday, June 21, 2020

हाइकु (उलझी डोर)

उलझी डोर
यदि हाथ न छोर-
व्यर्थ है जोर।
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लय से युक्ता
रस भाव सज्जिता-
वाणी कविता।
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लुटा दे जान
सबका रख मान-
वो ही महान
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समय खोटा
रिश्ते नातों का टोटा-
पैसा ही मोटा
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शहरीपन
गायब उपवन-
ऊँचे भवन।
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दीपक काया
सारी माटी की माया-
आलोक छाया।
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हिन्दी की दुर्वा
अंग्रेजी जूते तले-
कुचली जाये।
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शिखर चढ़ा
धन बल से बढ़ा
पतित नर।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-06-19

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