Sunday, November 22, 2020

गुर्वा (प्रकृति-1)

गिरि से निर्झर पिघला,
सर्प रहे उड़ इठला,
गरजें मेघ लरज थर थर।
***

मेघ घिरे नभ में हर ओर,
हरित धरा, नाचे मोर,
सावन शुष्क! दूर चितचोर।
***

भोर पहन मौक्तिक माला,
दुर्वा पर बैठी,
हाथ साफ रवि कर डाला।
***

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-06-20

No comments:

Post a Comment