मधुवन महकत, शुक पिक चहकत,
जन-मन हरषत, मधु रस बरसे।
कलि कलि सुरभित, गलि गलि मुखरित,
उपवन पुलकित, कण-कण सरसे।
तृषित हृदय यह, प्रभु-छवि बिन दह,
दरश-तड़प सह, निशि दिन तरसे।
यमुन-पुलिन पर, चित रख नटवर,
'नमन' नवत-सर, ब्रज-रज परसे।।
*****
जनहरण विधान:- (कुल वर्ण संख्या = 31 । इसमें चरण के प्रथम 30 वर्ण लघु रहते हैं तथा केवल चरणान्त दीर्घ रहता है। 16, 15 पर यति अनिवार्य। 8,8,8,7 के क्रम में लिखें तो और अच्छा।)
*****
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-06-20
No comments:
Post a Comment