बह्र:- 2222 2222 2222 222
गदहे को भी बाप बनाऊँ कैसी ये मज़बूरी है,
कुत्ते सा बन पूँछ हिलाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
एक गाम जो रखें न सीधा चलना मुझे सिखायें वे,
उनकी सुन सुन कदम बढ़ाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
झूठ कपट की नई बस्तियाँ चमक दमक से भरी हुईं,
अपना घर में वहाँ बसाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
सबसे पहले ऑफिस आऊँ और अंत में घर जाऊँ,
मगर बॉस को रिझा न पाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
ऊँचे घर में तोरण मारा पहले सोच नहीं पाया,
अब नित उनके नाज़ उठाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
सास ससुर से माथा फोड़ूं साली सलहज एक नहीं,
मैं ऐसे ससुराल में जाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
डायटिंग घर में कर कर के पीठ पेट मिल एक हुये,
पर दावत में ठूँस के खाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
कारोबार किया चौपट है चंदे के इस धंधे ने,
हर नेता से आँख चुराऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
पहुँच बना कर लगी नौकरी तनख्वाह में अब सेंध लगी,
ऊपर सबका भाग भिजाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
झूठी वाह का दौर सुखन में 'नमन' आज ऐसा आया,
नौसिखियों को मीर बताऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-04-18
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