Saturday, January 16, 2021

क्षणिका (कैनवस)

(1)

पेड़ की पत्तियों का
सौंदर्य,
तितलियों का रंग,
उड़ते विहगों की
नोकीली चोंच की कूँची;
मेरे प्रेम के
कैनवस पर
प्रियतम का चित्र
उकेर रही है,
न जाने
कब पूरा होगा।
**

क्षणिका (जिंदगी)
(2)

जिंदगी
चैत्र की बासन्ती-वास,
फिर ज्येष्ठ की
तपती दुपहरी,
उस पर फिर
सावन की फुहार,
तब कार्तिक की
शरद सुहानी
और अंत में
पौष सी ठंडी पड़
शाश्वत शांत
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
1-06-19

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