Monday, January 4, 2021

ग़ज़ल (गिर्दाब में सफ़ीना है पतवार भी नहीं)

बह्र:- 221  2121  1221  212 

गिर्दाब में सफ़ीना है पतवार भी नहीं,
चारों तरफ अँधेरा, मददगार भी नहीं।

इंकार गर नहीं है तो इक़रार भी नहीं,
नफ़रत भले न दिल में हो पर प्यार भी नहीं।

फ़ितरत हमारे देश के नेताओं की यही,
जितना दिखाते उतने मददगार भी नहीं।

रिश्तों से कट के दुनिया बसाओ तो सोच लो,
परिवार गर नहीं है तो घरबार भी नहीं।

इतने भी दूर हों न किसी से, ये ग़म रहे,
बाक़ी यहाँ पे सुल्ह के आसार भी नहीं।

बेज़ार अब न हों तो करें और क्या बता,
मुड़ के उन्होंने देखा था इक बार भी नहीं।

सुहबत का जिसकी रहता था कायल सदा 'नमन',
साबित हुआ वो इतना समझदार भी नहीं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-10-19

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