बार लंका वासी घाळै।
देखो आज अभागण लंका, बजरंगी बाळै।।
जात वानरा की पण स्याणा, राम-दूत बण आया,
आदर स्यूँ माता सँभलाद्यो, हाथ जोड़ समझाया,
आ बात वभीषण जी बोल्या, लात बापड़ा खाया,
बैरा भाठां आगै जोर न, कोई रो चाळै।
बार लंका वासी घाळै।
देखो आज अभागण लंका, बजरंगी बाळै।।
अक्षय बाग उजाड़ एकला, राम-शक्ति दिखलाई,
पण राजाजी आग पूँछ में, फिर भी क्यों लगवाई,
सिर में बड़ बेमाता काँई, थी करली अधिकाई,
बुद्धि-भ्रष्ट ही इसी मुसीबत, घर बैठ्याँ पाळै।
बार लंका वासी घाळै।
देखो आज अभागण लंका, बजरंगी बाळै।।
खरदूषण बाली जिण मार्या, किया वानरा भैळा,
लंकापति ऐसे समर्थ स्यूँ, क्यों कीन्ह्या मन मैला,
गाल बजावणिया रावणजी, और सभासद गैला,
ऐसो राज प्रजा ने हरदम, आफत में डाळै।
बार लंका वासी घाळै।
देखो आज अभागण लंका, बजरंगी बाळै।।
सब से प्यारी म्हाँकी लंका, तीन लोक स्यूँ न्यारी,
छोटो चाहे बड़ो न कोई, थो अट्ठै दुखियारी,
वीराँ री या नगरी आँख्याँ, आगै बळरी सारी,
चुड़्याँ पैर्याँ बैठ्या सगळा, यो दुख जी साळै।
बार लंका वासी घाळै।
देखो आज अभागण लंका, बजरंगी बाळै।।
इंद्रजीत तू बण्यो नाम को, वरुण-अस्त्र कद ल्यासी,
कुम्भकरण जी भी सुत्या कुण, लपटां फूँक बुझ्यासी,
अहिरावण नारांतक थारो, जोर काम कद आसी,
रैग्या वीर नहीं लंका में, जो विपदा टाळै।
बार लंका वासी घाळै।
देखो आज अभागण लंका, बजरंगी बाळै।।
सुनो भगत जी थारै प्रभु रो, रैग्यो अब तो सारो,
राम लखण नै सागै ल्याओ, माता नै उद्धारो,
'बासुदेव' लंकावासी नै, ई विपदा स्यूँ तारो,
राम-कृपा बिन नहीं जगत में, पत्तो ही हाळै।
बार लंका वासी घाळै।
देखो आज अभागण लंका, बजरंगी बाळै।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-10-2018
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