Sunday, January 10, 2021

मनहरण घनाक्षरी "मौन त्याग दीजिये"

जुल्म का हो बोलबाला, मुख पे न जड़ें ताला,
बैठे बैठे चुपचाप, ग़म को न पीजिये।

होये जब अत्याचार, करें कभी ना स्वीकार,
पुरजोर प्रतिकार, जान लगा कीजिये।

देश का हो अपमान, टूटे जब स्वाभिमान,
कभी न तटस्थ रहें, मन ठान लीजिये।

हद होती सहने की, बात कहें कहने की,
सदियों पुराना अब, मौन त्याग दीजिये।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-06-17

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