Monday, February 15, 2021

विविध मुक्तक -6

अर्थ जीवन का है बढना ये नदी समझा रही,
खिल सदा हँसते ही रहना ये कली समझा रही,
हों कभी पथ से न विचलित झेलना कुछ भी पड़े,
भार हर सह धीर रखना ये मही समझा रही।

(2122*3 212)

1-09-20
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हबीब जो थे हमारे रकीब अब वे हुए,
हमारे जितने भी दुश्मन करीब उन के हुए,
हक़ीम बन वे दिखाएँ हमारे जख्मों के,
हमारे वास्ते सारे सलीब जैसे हुए।

(1212  1122  1212  22)
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चाहे नहीं तू खेद जताने के लिये आ,
पर घर से निकल हाथ हिलाने के लिये आ,
मैं खुद की ही ढ़ो लाश रहा जा तेरे घर से,
जीते का ही मातम तो मनाने के लिये आ।

(221 1221 1221 122)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
8-09-20

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