Thursday, February 4, 2021

ग़ज़ल (शुक सा महान)

बह्र:- 221  2121 1221 212

शुक सा महान कोई भी ज्ञानी नहीं मिला,
भगवत-कथा का ऐसा बखानी नहीं मिला।

गाथा अमर है कर्ण की सुन जिसको सब कहें,
उसके समान सृष्टि को दानी नहीं मिला।

संसार छान मारा है ऋषियों के जैसा अब,
बगुलों को छोड़ कोई भी ध्यानी नहीं मिला।

भगवान के मिले हैं अनुग्रह सभी जिसे,
संतुष्ट फिर भी हो जो वो प्रानी नहीं मिला।

मतलब के यार खूब मिले किंतु एक भी,
दुख दर्द बाँट ले जो वो जानी नहीं मिला।

जो दूसरे ही पल में मुकर जाते बात से,
चहरों पे ऐसों के कभी पानी नहीं मिला।

ले दे के ये 'नमन' की नयी पेश है ग़ज़ल,
ऊला नहीं मिला कभी सानी नहीं मिला।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-05-19

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