Monday, February 15, 2021

मुक्तक (घमण्ड, गुमान)

इतना भी ऊँची उड़ान में, खो कर ना इतराओ,
पाँव तले की ही जमीन का, पता तलक ना पाओ,
मत रौंदो छोटों को अपने, भारी भरकम तन से,
भारी जिनसे हो उनसे ही, हल्के ना हो जाओ।

(सार छंद)
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बिल्ले की शह से चूहा भी, शेर बना इतराता है,
लगे गन्दगी वह बिखेरने, फूल फुदकता जाता है,
खोया ही रहता गुमान में, वह नादान नहीं जाने,
हँसे जमाना उसकी मति पर, और तरस ही खाता है।

(ताटंक छंद)
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हवा बहुत ही भारी भारी, दम सा घुटता लगता है,
अहंकार की गर्म हवा में, तन मन जलता लगता है,
पंछी हम आज़ाद गगन के, अपनी दुनिया में चहकें,
रोज झपटते बाजों से अब, हृदय धड़कता लगता है।

(लावणी छंद)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-12-16

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