Wednesday, February 10, 2021

दोहे (क्रोध)

दोहा छंद

मन वांछित जब हो नहीं, प्राणी होता क्रुद्ध।
बुद्धि काम करती नहीं, हो विवेक अवरुद्ध।।

नेत्र और मुख लाल हो, अस्फुट उच्च जुबान।
गात लगे जब काम्पने, क्रोध चढ़ा है जान।।

सदा क्रोध को जानिए, सब झंझट का मूल।
बात बढ़ाए चौगुनी, रह रह दे कर तूल।।

वशीभूत मत होइए, कभी क्रोध के आप।
काम बिगाड़े आपका, मन को दे संताप।।

वश में हो कर क्रोध के, रावण मारी लात।
मिला विभीषण शत्रु से, किया सर्व कुल घात।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-10-2016

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