Wednesday, February 10, 2021

ताटन्क छंद "भ्रष्टाचारी सेठों ने"

(मुक्तक शैली की रचना)

अर्थव्यवस्था चौपट कर दी, भ्रष्टाचारी सेठों ने।
छीन निवाला दीन दुखी का, बड़ी तौंद की सेठों ने।
केवल अपना ही घर भरते, घर खाली कर दूजों का।
राज तंत्र को बस में कर के, सत्ता भोगी सेठों ने।।

कच्चा पक्का खूब करे ये, लूट मचाई सेठों ने।
काली खूब कमाई करके, भरी तिजौरी सेठों ने।
भ्रष्ट आचरण के ये पोषक, शोषक जनता के ये हैं।
दो खाते रख करी बहुत है, कर की चोरी सेठों ने।।

देकर रिश्वत पाल रखे हैं, मंत्री संत्री सेठों ने।
काले धन से काली दुनिया, अलग बसाई सेठों ने।
ढोंग धर्म का भारी करते, काले पाप छिपाने में।
दान दक्षिणा सभी दिखावा, साख खरीदी सेठों ने।

लोगों की कुचली सांसों से, दौलत बाँटी सेठों ने।
सुख सुविधाएँ इस दुनिया की, सारी छाँटी सेठों ने।
दुखियों के दिन फिरने वाले, अंत सभी का होता है।
सारी साख गँवा दी है अब, शोषणकारी सेठों ने।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
16-11-2016

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