Saturday, June 5, 2021

ग़ज़ल (दर्द दे वो चले पर दवा कौन दे)

बह्र:- 212*4

दर्द दे वो चले पर दवा कौन दे,
साँस थमने लगी अब दुआ कौन दे।

चाहतें दफ़्न सब हो के दिल में रहीं,
जब जफ़ा ही लिखी तो वफ़ा कौन दे।

उनकी यादों में उजड़ा है ये आशियाँ,
इसको फिर से बसा घर बना कौन दे।

ख़ार उन्माद नफ़रत के पनपे यहाँ,
गुल महब्बत के इसमें खिला कौन दे।

देश फिर ये बँटे ख्वाब देखे कई,
जड़ से इन जाहिलों को मिटा कौन दे।

ज़िंदगी से हो मायूस तन्हा बहुत,
हाथको थाम कर आसरा कौन दे।

मौत आती नहीं, जी भी सकते नहीं,
ऐ 'नमन' अब सुहानी कज़ा कौन दे।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
09-09-2016

2 comments:

  1. बेहतरीन अशआर हैं सभी ...
    सुंदर ग़ज़ल ...

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    1. आदरणीय आपका आत्मिक आभार।

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