Saturday, October 10, 2020

सारवती छंद "विरह वेदना"

वो मनभावन प्रीत लगा।

छोड़ चला मन भाव जगा।।

आवन की सजना धुन में।

धीर रखी अबलौं मन में।।


खावन दौड़त रात महा।

आग जले नहिं जाय सहा।।

पावन सावन बीत रहा।

अंतस हे सखि जाय दहा।।


मोर चकोर मचावत है।

शोर अकारण खावत है।।

बाग-छटा नहिं भावत है।

जी अब और जलावत है।।


ये बरखा भड़कावत है।

जो विरहाग्नि बढ़ावत है।।

गीत नहीं मन गावत है।

सावन भी न सुहावत है।।

===================

लक्षण छंद:-


"भाभभगा" जब वर्ण सजे।

'सारवती' तब छंद लजे।।


"भाभभगा"  =  भगण भगण भगण + गुरु

211 211 211 2,

चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत

**********************


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

तिनसुकिया

21/9/2020

कुंडल छंद "ताँडव नृत्य"

नर्तत त्रिपुरारि नाथ, रौद्र रूप धारे।

डगमग कैलाश आज, काँप रहे सारे।।

बाघम्बर को लपेट, प्रलय-नेत्र खोले।

डमरू का कर निनाद, शिव शंकर डोले।।


लपटों सी लपक रहीं, ज्वाल सम जटाएँ।

वक्र व्याल कंठ हार, जीभ लपलपाएँ।।

ठाडे हैं हाथ जोड़, कार्तिकेय नंदी।

काँपे गौरा गणेश, गण सब ज्यों बंदी।।


दिग्गज चिघ्घाड़ रहें, सागर उफनाये।

नदियाँ सब मंद पड़ीं, पर्वत थर्राये।।

चंद्र भानु क्षीण हुये, प्रखर प्रभा छोड़े।

उच्छृंखल प्रकृति हुई, मर्यादा तोड़े।।


सुर मुनि सब हाथ जोड़, शीश को झुकाएँ।

शिव शिव वे बोल रहें, मधुर स्तोत्र गाएँ।।

इन सब से हो उदास, नाचत हैं भोले।

वर्णन यह 'नमन' करे, हृदय चक्षु खोले।।


***********************

कुंडल छंद *विधान*


22 मात्रा का सम मात्रिक छंद। 12,10 यति। अंत में दो गुरु आवश्यक; यति से पहले त्रिकल आवश्यक।मात्रा बाँट :- 6+3+3, 6+SS

चार चरण, दो दो चरण समतुकांत या चारों चरण समतुकांत।

====================


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

तिनसुकिया

27-08-20

मानव छंद "नारी की व्यथा"

मानव छंद / सखी छंद / हाकलि छंद

आडंबर में नित्य घिरा।
नारी का सम्मान गिरा।।
सत्ता के बुलडोजर से।
उन्मादी के लश्कर से।।

रही सदा निज में घुटती।
युग युग से आयी लुटती।।
सत्ता के हाथों नारी।
झूल रही बन बेचारी।।

मौन भीष्म भी रखे जहाँ।
अंधा है धृतराष्ट्र वहाँ।।
उच्छृंखल हो राज-पुरुष।
करते सारे पाप कलुष।।

अधिकारी सारे शोषक।
अपराधों के वे पोषक।।
लूट खसोट मची भारी।
दिखे व्यवस्था ही हारी।।

रोग नशे का फैल गया।
लुप्त हुई है हया दया।।
अपराधों की बाढ जहाँ।
ऐसे में फिर चैन कहाँ।।

बने हुये हैं जो रक्षक।
वे ही आज बड़े भक्षक।।
हर नारी की घोर व्यथा।
पंचाली की करुण कथा।।
=============

मानव छंद विधान -

मानव छंद 14 मात्रिक चार चरणों का सम मात्रिक छंद है। तुक दो दो चरण की मिलाई जाती है। 14 मात्रा की बाँट 12 2 है। 12 मात्रा में तीन चौकल हो सकते हैं, एक अठकल एक चौकल हो सकता है या एक चौकल एक अठकल हो सकता है।

मानव छंद में ही किंचित परिवर्तन से मानव जाति के दो और छंद हैं।

(1) हाकलि छंद विधान – हाकलि छंद मानव जाति का 14 मात्रिक छंद है। इसमें दो चौकल भगण और दीर्घांत रहता है। इसका मात्रा विन्यास 4*2 211S है। हाकलि छंद का मेरा एक मुक्तक देखें:-

“सदियों तक यह अश्रु बहा,
रघुवर का वनवास सहा,
मंदिर की अब नींव पड़ी,
सारा भारत झूम रहा।”

(2) सखी छंद विधान – सखी छंद मानव जाति का 14 मात्रिक छंद है। यह दो चौकल द्विकल और अंत में दो दीर्घ वर्ण से बनता है। इसका मात्रा विन्यास 4*2 2SS है। सखी छंद का मेरा एक मुक्तक देखें:-

“सावन की हरियाली है,
शोभा अति मतवाली है,
भ्रमरों की गूंजन छायी,
चहुँ दिशि में खुशियाली है।”
*****************

बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया
26.09.20

Monday, October 5, 2020

ग़ज़ल (परंपराएं निभा रहे हैं)

 बह्र:- 12122*2

परंपराएं निभा रहे हैं।
खुशी से जीवन बिता रहे हैं।

रिवाज, उत्सव हमारे न्यारे,
उमंग से वे मना रहे हैं।

अनेक रंगों के पुष्प से खिल,
वतन का उपवन सजा रहे हैं।

हृदय में सौहार्द्र रख के सबसे,
हो मग्न कोयल से गा रहे हैं।

बताते औकात उन को अपनी,
हमें जो आँखें दिखा रहे हैं।

जो देख हमको जलें, उन्हें तो,
जला के छाई बना रहे हैं।

जो खा के लातों को समझे बातें,
तो कस के उन को जमा रहे हैं।

जगत को संदेश शान्ति का हम,
सदा से देते ही आ रहे हैं।

'नमन' हमारा स्वभाव ऐसा,
गले से रिपु भी लगा रहे हैं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
06-09-20

ग़ज़ल (रोग या कोई बला है)

बह्र:- 2122*2

रोग या कोई बला है,
जिस में नर से नर जुदा है।

हाय कोरोना की ऐसी,
बंद नर घर में पड़ा है।

दाव पर नारी की लज्जा,
तंत्र का चौसर बिछा है।

हो नशे में चूर अभिनय,
रंग नव दिखला रहा है।

खुद ही अपनी खोदने में,
आदमी जड़ को लगा है।

आज मतलब के हैं रिश्ते,
कौन किसका अब सगा है।

लेखनी मुखरित 'नमन' कर,
हाल बदतर देश का है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
01-09-20

Saturday, October 3, 2020

हरिणी छंद "राधेकृष्णा नाम-रस"

मन नित भजो, राधेकृष्णा, यही बस सार है।

इन रस भरे, नामों का तो, महत्त्व अपार है।।

चिर युगल ये, जोड़ी न्यारी, त्रिलोक लुभावनी।

भगत जन के, प्राणों में ये, सुधा बरसावनी।।

जहँ जहँ रहे, राधा प्यारी, वहीं घनश्याम हैं।

परम द्युति के, श्रेयस्कारी, सभी परिणाम हैं।।

बहुत महिमा, नामों की है, इसे सब जान लें।

सब हृदय से, संतों का ये, कहा सच मान लें।।


अति व्यथित हो, झेलूँ पीड़ा, गिरा भव-कूप में।

मन विकल है, डूबूँ कैसे, रमा हरि रूप में।।

भुवन भर में, गाथा गाऊँ, सदा प्रभु नाम की।

मन-नयन से, लीला झाँकी, लखूँ ब्रज-धाम की।।


मन महँ रहे, श्यामा माधो, यही अरदास है।

जिस निलय में, दोनों सोहे, वहीं पर रास है।।

युगल छवि की, आभा में ही, लगा मन ये रहे।

'नमन' कवि की, ये आकांक्षा, इसी रस में बहे।।

=============

लक्षण छंद: (हरिणी छंद)


मधुर 'हरिणी', राचें बैठा, "नसामरसालगे"।

प्रथम यति है, छै वर्णों पे, चतुष् फिर सप्त पे।


"नसामरसालगे" = नगण, सगण, मगण, रगण, सगण, लघु और गुरु।

111  112,  222  2,12  112  12

चार चरण, दो दो समतुकांत।

****************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

तिनसुकिया

03-10-20

Friday, September 25, 2020

विविध मुक्तक -3

हाल अब कैसा हुआ बतलाएँ क्या,
इस फटी तक़दीर का दिखलाएँ क्या,
तोड़ के रख दी कमर मँहगाई ने,
क्या खिलाएँ और खुद हम खाएँ क्या।

2122*2  212
********

हाउडी मोदी की तरंग में:-

विश्व मोदी को कह हाउडी पूछता,
और इमरान बन राउडी डोलता,
तय है पी ओ के का मिलना कश्मीर में,
शोर ये जग में हो लाउडी गूँजता।

212*4
********

आज का सूरज बड़ा है,
हो प्रखर नभ में अड़ा है,
पर बहुत ही क्षीण मानव,
कूप में तम के पड़ा है।

2122*2
*******

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
06-10-19

पुछल्लेदार मुक्तक "खुदगर्ज़ी नेता"

सत्ता जिनको मिल जाती है मद में वे इतराते हैं,
गिरगिट जैसे रंग बदलकर बेगाने बन जाते हैं,
खुद को देखें या फिर दल को या केवल ही अपनों को,
अनदेखी जनता की कर वे तोड़ें उनके सपनों को।

समझें जनता को वे ना भोली,
झूठे वादों की देवें ना गोली,
ये किसी की न है हमजोली,
'बासु' नेताओं आँखें खोलो,
नब्ज़ जनता की पहले टटोलो।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-04-18


Sunday, September 20, 2020

गुर्वा (पीड़ा)

अत्याचार देख भागें,

शांति शांति चिल्लाते,

छद्म छोड़ अब तो जागें।

***


पीड़ा सारी कहता,

नीर नयन से बहता,

अंधी दुनिया हँसती।

***


बाढ कहीं तो सूखा है,

सिसक रहे वन उजड़े,

मनुज लोभ का भूखा है,

***


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

तिनसुकिया

28-04-20

Wednesday, September 16, 2020

ग्रंथि छंद (गीतिका, देश का ऊँचा सदा, परचम रखें)

2122 212, 2212

देश का ऊँचा सदा, परचम रखें,
विश्व भर में देश-छवि, रवि सम रखें।

मातृ-भू सर्वोच्च है, ये भाव रख,
देश-हित में प्राण दें, दमखम रखें।

विश्व-गुरु भारत रहा, बन कर कभी,
देश फिर जग-गुरु बने, उप-क्रम रखें।

देश का गौरव सदा, अक्षुण्ण रख,
भारती के मान को, चम-चम रखें।

आँख हम पर उठ सके, रिपु की नहीं,
आत्मगौरव और बल, विक्रम रखें।

सर उठा कर हम जियें, हो कर निडर,
मूल से रिपु-नाश का, उद्यम रखें।

रोटियाँ सब को मिलेंं, छत भी मिले,
दीन जन की पीड़ लख, दृग नम रखें।

हम गरीबी को हटा, संपन्न हों,
भाव ये सारे 'नमन', उत्तम रखें।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
09-08-20

Wednesday, September 9, 2020

दोहे (श्राद्ध-पक्ष)

दोहा छंद

श्राद्ध पक्ष में दें सभी, पुरखों को सम्मान।
वंदन पितरों का करें, उनका धर हम ध्यान।।

रीत सनातन श्राद्ध है, इस पर हो अभिमान।
श्रद्धा पूरित भाव रख, मानें सभी विधान।।

द्विज भोजन बलिवैश्व से, करें पितर संतुष्ट।
उनके आशीर्वाद से, होते हैं हम पुष्ट।।

पितर लोक में जो बसे, कर असीम उपकार।
बन कृतज्ञ उनका सदा, प्रकट करें आभार।।

मिलता हमें सदा रहे, पितरों का वरदान।
भरें रहे भंडार सब, हों हम आयुष्मान।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
01-09-20

मधुमती छंद

मधुवन महके।
शुक पिक चहके।।
जन-मन सरसे।
मधु रस बरसे।।

ब्रज-रज उजली।
कलि कलि मचली।।
गलि गलि सुर है।
गिरधर उर है।।

नयन सजल हैं।
वयन विकल हैं।।
हृदय उमड़ता।
मति मँह जड़ता।।

अति अघकर मैं।
तव पग पर मैं।।
प्रभु पसरत हूँ।
'नमन' करत हूँ।
===========

लक्षण छंद:-

"ननग" गणन की।
मधुर 'मधुमती'।।

"ननग" :- 111 111 2 (नगण नगण गुरु)
चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत
*************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
29-08-20

Saturday, September 5, 2020

ग़ज़ल (जगमगाते दियों से मही खिल उठी)

बह्र:- 212*4

जगमगाते दियों से मही खिल उठी,
शह्र हो गाँव हो हर गली खिल उठी।

लायी खुशियाँ ये दीपावली झोली भर,
आज चेह्रों पे सब के हँसी खिल उठी।

आप देखो जिधर नव उमंगें उधर,
हर महल खिल उठा झोंपड़ी खिल उठी।

सुर्खियाँ सब के गालों पे ऐसी लगे,
कुमकुमे हँस दिये रोशनी खिल उठी।

आज छोटे बड़े के मिटे भेद सब,
सबके मन में खुशी की कली खिल उठी।

नन्हे नन्हे से हाथों में भी हर तरफ,
रोशनी से भरी फुलझड़ी खिल उठी।

दीप उत्सव पे ग़ज़लों की रौनक 'नमन'
ब्लॉग में दीप की ज्योत सी खिल उठी।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
08-10-2017

ग़ज़ल (नहीं जो चाहते रिश्ते)

बह्र:- 1222 1222 1222 1222

नहीं जो चाहते रिश्ते अदावत और हो जाती,
न होते अम्न के कायल सियासत और हो जाती,

दिखाकर बुज़दिली हरदम चुभाता पीठ में खंजर,
अगर तू बाज़ आ जाता मोहब्बत और हो जाती।

घिनौनी हरक़तें करना तेरी तो है सदा आदत,
बदल जाती अगर आदत तो फ़ितरत और हो जाती।

जो दहशतगर्द हैं पाले यहाँ दहशत वो फैलाते, 
इन्हें बस में जो तू रखता शराफ़त और हो जाती।

नहीं कश्मीर तेरा था नहीं होगा कभी आगे,
न जाते पास 'हाकिम' के शिकायत और हो जाती।

नहीं औकात कुछ तेरी दिखाता आँख फिर भी तू,
पड़ा जो सामने होता ज़लालत और हो जाती।

मसीहा कुछ बड़े आका नचाते तुझको बन रहबर,
मिलाता हाथ हमसे तो ये शुहरत और हो जाती।

नहीं पाली कभी हमने तमन्ना जंग की दिल में,
अगर तुझ सा मिले दुश्मन तो हसरत और हो जाती।

तमन्ना तू ने पैदा की कि दो दो हाथ हो जाये,
दिखे हालात जब ऐसे तो हिम्मत और हो जाती।

दिलों में खाइयाँ गहरी वजूदों की ओ मजहब की,
इन्हें भरता अगर तू मिल हक़ीक़त और हो जाती।

बढ़ाने देश का गौरव 'नमन', सजदा करें सब मिल,
खुदा की इस वतन पर ये इनायत और हो जाती।

(फ़ितरत=स्वभाव, रहबर=पथ प्रदर्शक, अदावत=लड़ाई, ज़लालत=तिरस्कार या अपमान)

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-09-2016

ग़ज़ल (इरादे इधर हैं उबलते हुए)

बह्र: 122 122 122 12

इरादे इधर हैं उबलते हुए,
उधर सारे दुश्मन दहलते हुए।

नये जोश में हम उछलते हुए,
चलेंगे ज़माना बदलते हुए।

हुआ पांच सदियों का वनवास ख़त्म,
विरोधी दिखे हाथ मलते हुए।

अगर देख सकते जरा देख लो,
हमारे भी अरमाँ मचलते हुए।

रहे जो सिखाते सदाकत हमें,
मिले वो जबाँ से फिसलते हुए।

न इतना झुको देख पाओ नहीं,
रकीबों के पर सब निकलते हुए।

बढेंगे 'नमन' सुन लें गद्दार सब,
तुम्हें पाँव से हम कुचलते हुए।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-08-20