Thursday, October 28, 2021

द्रुतविलम्बित छंद "गोपी विरह"

 द्रुतविलम्बित छंद 

"गोपी विरह"

मन बसी जब से छवि श्याम की।
रह गई नहिँ मैं कछु काम की।
लगत वेणु निरन्तर बाजती।
श्रवण में धुन ये बस गाजती।।

मदन मोहन मूरत साँवरी।
लख हुई जिसको अति बाँवरी।
हृदय व्याकुल हो कर रो रहा।
विरह और न जावत ये सहा।।

विकल हो तकती हर राह को।
समझते नहिँ क्यों तुम चाह को।
उड़ गया मन का सब चैन ही।
तृषित खूब भये दउ नैन ही।।

मन पुकार पुकार कहे यही।
तु करुणाकर जानत क्या सही।
दरश दे कर कान्ह उबार दे।
नयन-प्यास बुझा अब तार दे।।
===============

द्रुतविलम्बित छंद विधान -

"नभभरा" इन द्वादश वर्ण में।
'द्रुतविलम्बित' दे धुन कर्ण में।।

नभभरा = नगण, भगण, भगण और रगण। (12 वर्ण की वर्णिक छंद)
111  211  211  212

दो दो चरण समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
09-01-2019

Monday, October 25, 2021

ताँका विधा "हार या जीत"

 ताँका विधा (हार या जीत)

ताँका विधान - ताँका कविता कुल पाँच पंक्तियों की जापानी विधा की रचना है। इसमें प्रति पंक्ति निश्चित संख्या में वर्ण रहते हैं। प्रति पंक्ति निम्न क्रम में वर्ण रहते हैं।

प्रथम - 5 वर्ण
द्वितीय - 7 वर्ण
तृतीय - 5 वर्ण
चतुर्थ - 7 वर्ण
पंचम - 7 वर्ण

(वर्ण में लघु, दीर्घ और संयुक्ताक्षर सब मान्य हैं।)

हार या जीत
तटस्थ रह मीत
रात से भोर, 
नीरवता से शोर
आते जाते, क्यों भीत?
**

कुछ तू सुना
कुछ मैं सुनाता हूँ
मन की बात,
दोनों की अनकही
भावनाओं में बही।
**

छलनी मन
आँसुओं का भूचाल
पर रूमाल,
अपने की दिलासा
बंधाती नव-आशा।
**

हम थे आग
इश्क की शुरुआत
हुई इंतिहा,
खत्म हुये जज्बात
बची केवल राख।
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-06-20

Friday, October 22, 2021

ग़ज़ल (बोझ लगने लगी जवानी है)

 ग़ज़ल (बोझ लगने लगी जवानी है)

बह्र:- 2122  1212  22

एक मज़ाहिया मुसलसल

बोझ लगने लगी जवानी है,
व्याह करने की मन में ठानी है।

सेहरा बाँध जिस पे आ जाऊँ,
पास में बस वो घोड़ी कानी है।

देख के शक़्ल दूर सब भागें,
फिर भी दुल्हन कोई मनानी है।

कैसी भी छोकरी दिला दे रब,
कितनी ज़हमत अब_और_उठानी है।

एक बस्ती बसे मुहब्बत की,
दिल की दुनिया मेरी विरानी है।

मैं परस्तिश करूँगा उसकी सदा,
जो भी इस दिल की बनती रानी है।

उसके बिन ज़िंदगी में अब तो 'नमन',
सूनी सी रात की रवानी है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-06-18

Wednesday, October 20, 2021

संयुत छंद "फाग रस"

 संयुत छंद 

"फाग रस"

सब झूम लो रस राग में।
मिल मस्त हो कर फाग में।।
खुशियों भरा यह पर्व है।
इसपे हमें अति गर्व है।।

यह मास फागुन चाव का।
ऋतुराज के मधु भाव का।।
हर और दृश्य सुहावने।
सब कूँज वृक्ष लुभावने ।।

मन से मिटा हर क्लेश को।
उर में रखो मत द्वेष को।।
क्षण आज है न विलाप का।
यह पर्व मेल-मिलाप का।।

मन से जला मद-होलिका।
धर प्रेम की कर-तूलिका।।
हम मग्न हों रस रंग में।
सब झूम फाग उमंग में।।
=============

संयुत छंद विधान:-

"सजजाग" ये दश वर्ण दो।
तब छंद 'संयुत' स्वाद लो।।

"सजजाग" = सगण जगण जगण गुरु
112 121 121 2 = 10 वर्ण
चार चरण। दो दो समतुकांत
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
09-03-2017

Monday, October 18, 2021

गुर्वा (हवा)

गुर्वा विधा

"हवा"

पूरब में है लाली,
हवा चले मतवाली,
मौक्तिकमय हरियाली।
***

जल तरंग को हवा बजाये,
चिड़ियाँ गाएँ गीत,
प्रकृति दिखाये पग-पग प्रीत।
***

खिली हुई है अमराई,
सनन बहे पुरवाई,
स्वाद चखे नासा मीठा।
***
गुर्वा विधान जानने के लिए यहाँ क्लिक करें ---> गुर्वा विधान

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-07-20

Thursday, October 14, 2021

मत्तगयंद सवैया विधान –

 मत्तगयंद सवैया छंद

मत्तगयंद सवैया छंद 23 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है। अन्य सभी सवैया छंदों की तरह इसकी रचना भी चार चरण में होती है और सभी चारों चरण एक ही तुकांतता के होने आवश्यक हैं।

यह भगण (211) पर आश्रित है, जिसकी 7 आवृत्ति और अंत में दो गुरु वर्ण प्रति चरण में रहते हैं। इसकी संरचना 211× 7 + 22 है।

(211 211 211 211 211 211 211 22 )

सवैया छंद यति बंधनों में बंधे हुये नहीं होते हैं परंतु कोई चाहे तो लय की सुगमता के लिए इसके चरण में क्रमशः12 -11 वर्ण पर 2 यति खंड रख सकता है ।चूंकि यह एक वर्णिक छंद है अतः इसमें गुरु के स्थान पर दो लघु वर्ण का प्रयोग करना अमान्य है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
13-10-21

Wednesday, October 13, 2021

विमलजला छंद "राम शरण"

 विमलजला छंद 
"राम शरण"

जग पेट भरण में।
रत पाप करण में।।
जग में यदि अटका।
फिर तो नर भटका।।

मन ये विचलित है।
प्रभु-भक्ति रहित है।।
अति दीन दुखित है।।
हरि-नाम विहित है।।

तन पावन कर के।
मन शोधन कर के।।
लग राम चरण में।
गति ईश शरण में।।

कर निर्मल मति को।
भज ले रघुपति को।।
नित राम सुमरना।
भवसागर तरना।।
=============

विमलजला छंद विधान -

"सनलाग" वरण ला।
रचलें 'विमलजला'।।

"सनलाग" = सगण नगण लघु गुरु

112  111  12 = 8 वर्ण
चार चरण। दो दो समतुकांत
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
20-05-17

Friday, October 8, 2021

वरूथिनी छंद "प्रदीप हो"

 वरूथिनी छंद 

"प्रदीप हो"

प्रचंड रह, सदैव बह, कभी न तुम, अधीर हो।
महान बन, सदा वतन, सुरक्ष रख, सुवीर हो।।
प्रयत्न कर, बना अमर, अटूट रख, अखंडता।
कभी न डर, सदैव धर, रखो अतुल, प्रचंडता।।

निशा प्रबल, सभी विकल, मिटा तमस, प्रदीप हो।
दरिद्र जन , न वस्त्र तन, करो सुखद, समीप हो।।
सुकाज कर, गरीब पर, सदैव तुम, दया रखो।
मिटा विपद, उन्हें सुखद, बना सरस, सुधा चखो।।

हुँकार भर, दहाड़ कर, जवान तुम, बढ़े चलो।
त्यजो अलस, न हो विवस, मशाल बन, सदा जलो।।
अराति गर, उठाय सर, दबोच तुम, उसे वहीं।
धरो पकड़, रखो जकड़, उसे भगन, न दो कहीं।

प्रशस्त नभ, करो सुलभ, सभी डगर, बिना रुके।
रहो सघन, डिगा न मन, बढ़ो युवक, बिना झुके।।
हरेक थल, रहो अटल, विचार नित, नवीन हो।
बढ़ा वतन, छुवा गगन, सभी जगह, प्रवीन हो।।
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वरूथिनी छंद विधान -

"जनाभसन,जगा" वरण, सुछंद रच, प्रमोदिनी।
विराम सर,-त्रयी सजत,  व चार पर, 'वरूथिनी'।।

"जनाभसन,जगा" = जगण+नगण+भगण+सगण+नगण+जगण+गुरु
121  11,1  211  1,12  111,  121  2
सर,-त्रयी सजत = सर यानि बाण जो पाँच की संख्या का भी द्योतक है। सर-त्रयी यानि 5,5,5।

(१९ वर्ण, ४ चरण, क्रमश: ५,५,५,४ वर्ण पर यति, दो-दो चरण समतुकान्त)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
26-01-19

Monday, October 4, 2021

मुक्तक (कोरोना बीमारी - 2)

(1)

करें सामना कोरोना का, जरा न हमको रोना है,
बीमारी ये व्यापक भारी, चैन न मन का खोना है,
संयम तन मन का हम रख कर, दूर रहें अफवाहों से, 
दृढ़ संकल्प सभी का ये हो, रोग पूर्ण ये धोना है।

(ताटंक छंद आधारित)
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(2)

यही प्रश्न है अब तो आगे, भूख बड़ी या कोरोना,
करो पेट की चिंता पहले, छोड़ो सब रोना धोना,
संबंधो से धो हाथों को, शायद बच भी हम जाएँ,
मँहगाई बेरोजगार से, तय है सांसों का खोना।

(लावणी छंद आधारित)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
24-04-21

Saturday, October 2, 2021

ग़ज़ल (तूफाँ में चल सको तो)

बह्र:- 221  2121  1221  212

तूफाँ में चल सको तो मेरे साथ तुम चलो।
दुनिया उथल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

सत्ता के नाग फन को उठाए रहे हैं फिर।
इनको कुचल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

बदहाली, भूख में भी सियासत का दौर है।
ढर्रा बदल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

सब जी रहे हैं कल के सुनहरे से ख्वाब में।
गर ला वो कल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

ईमान सब का डिग रहा पैसे के वास्ते।
जो रह अटल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

नेतागिरी यहाँ चले भांडों से स्वांग में।
इससे निकल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

झूठे खिताब-ओ-नाम को पाने में सब लगे।
इन सब से टल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

सेवा करें जो देश की गल गल के बर्फ में।
गर उन सा गल सको तो मेरे साथ तुम चलो।

लफ़्फ़ाजी का ही मंचों पे अब तो बड़ा चलन।
इससे उबल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

निर्बल हैं वर्तमान के हालात में सभी।
यदि बन सबल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

इक क्रांति की लपट की प्रतीक्षा में जग 'नमन'।
दे वो अनल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
28-01-19

Wednesday, September 29, 2021

नाग छंद विधान

 नाग छंद विधान

(स्वनिर्मित नव छंद)

नाग छंद कुल चार पद का छंद है जिसके प्रत्येक पद में 29 मात्रा होती है। तुकांतता दो दो पद में है। हर पद में दो दो चरण हैं। इस प्रकार छंद में कुल 8 चरण हैं। इस छंद में चार बहु प्रचलित छंदों का समावेश है। अब हर चरण का विधान ठीक से देखें।

1 और 3 चरण = श्रृंगार छंद (16 मात्रा); मात्रा बाँट 3-2-8-3 (ताल)।

2 और 4 चरण = रोला छंद का सम चरण (13 मात्रा); मात्रा बाँट 3-2-8।

5 और 7 चरण = दोहा छंद का विषम चरण (13 मात्रा); मात्रा बाँट 8-2-1-2।

6 और 8 चरण = चौपाई छंद (16 मात्रा); ठीक चौपाई छंद वाला विधान।

छंद जिस पंचकल (3-2) से प्रारंभ होता है उसी पंचकल पर समाप्त होना चाहिए। कुण्डली मार के बैठना नाग की विशेषता है और यह छंद भी कुण्डलाकृति में है जो छंद के नाम की सार्थकता दिखाता है। छंद के चौथे चरण के अठकल की पांचवे चरण में आवृत्ति होती है। लय तथा गायन में यह बहुत ही मधुर छंद है।

स्वरचित उदाहरण-

नाग छंद "सार तत्व"

सुखों का है बस ये ही सार, प्रीत सब से रख नर ले।
जगत में रहना है दिन चार, राम-रस अनुभव कर ले।
अनुभव कर ले प्रीत यदि, प्राणी कर ले नाश दुखों का।
भव-सागर के बंध में, भर लेता भंडार सुखों का।।

द्रष्टव्य: छंद जिस पंचकल (सुखों का) से प्रारंभ हो रहा है उसी पर समाप्त हो रहा है। चौथे चरण के रोला के अठकल (अनुभव कर ले) की पुनरावृत्ति पंचम चरण के दोहा में हो रही है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-05-21

Monday, September 27, 2021

पंचिक "विविध-3"

 पंचिक

"विविध-3"

फलों की दुकान खोली नयी नयी सबरजीत,
गाने लगे लोग जल्द मधुर फलों के गीत।
पूछा मैंने, क्यों रे भाई,
फल तेरे ज्यों मिठाई,
झट बोला, 'सबर का फल मिले सदा स्वीट'।।
*****

दुखपुर में थी एक बाला खुशी नाम वाली,
आँसुओं से भरती थी जब कभी नेत्र-प्याली।
घरवाले घेर लेते,
उसको दिलासा देते,
'खुशी के हैं आँसू' बोल बोल बजा कर ताली।।
*****

मास भर पहले ही जो थे बने हुये दूल्हा,
फूंक मार मार बुझा रहे गैस का वे चूल्हा।
'अब तक तूने क्या भैंसे ही चराई',
सर पे सवार घरवाली गुर्राई,
उनके थे तब पाँव इनका सूजा कूल्हा।।
*****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-12-2020

Thursday, September 23, 2021

मंजुभाषिणी छंद "शहीद दिवस"

मंजुभाषिणी छंद 

"शहीद दिवस"

इस देश की भगत सिंह शान है।
सुखदेव राजगुरु आन बान है।।
हम आह आज बलिदान पे भरें।
उन वीर की चरण वन्दना करें।।

अति घोर कष्ट कटु जेल के सहे।
चढ़ फांस-तख्त पर भी हँसे रहे।।
निज प्राण देश-हित में जिन्हें दिये।
उनको लगा कर सदा रखें हिये।।

तिथि मार्च तेइस शहीद की मने।
उनके समान जन देश के बने।।
प्रण आज ये हृदय धार लें सभी।
नहिं देश का हनन गर्व हो कभी।।

हम पुष्प अर्पित समाधि पे करें।
इस देश की सब विपत्तियाँ हरें।।
यह भाव-अंजलि सही तभी हुये।
जब विश्व भी चरण देश के छुये।।

(23 मार्च शहीद दिवस पर श्रद्धान्जलि।)
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मंजुभाषिणी छंद विधान -

"सजसाजगा" रचत 'मंजुभाषिणी'।
यह छंद है अमिय-धार वर्षिणी।।

"सजसाजगा" = सगण जगण सगण जगण गुरु।

112 121 112 121+गुरु = कुल 13 वर्ण की वर्णिक छंद।
चार चरण, दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
23-03-17

Wednesday, September 22, 2021

मुक्तक "हालात"

हालात से अभी मैं हिला तक ज़रा नहीं,
पर जख्म इस जहाँ का दिया भी भरा नहीं,
अहले जहाँ ये जान ले लड़ता रहूँगा मैं,
सुन लो जमाने वालों अभी मैं मरा नहीं।

(221  2121 1221  212)
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सदियों से चली आई रफ़्तार न बदलेंगे,
सुख दुख से भरा जो भी संसार न बदलेंगे,
ज़ालिम ओ जमाना सुन, चाहे तो बदल जा तू,
हालात हों कैसे भी दस्तार न बदलेंगे।

(221  1222)*2
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
16-8-18

Monday, September 20, 2021

पावन छंद "सावन छटा"

 पावन छंद

"सावन छटा"

सावन जब उमड़े, धरणी हरित है।
वारिद बरसत है, उफने सरित है।।
चातक नभ तकते, खग आस युत हैं।
मेघ कृषक लख के, हरषे बहुत हैं।।

घोर सकल तन में, घबराहट रचा।
है विकल सजनिया, पिय की रट मचा।।
देख हृदय जलता, जुगनू चमकते।
तारक अब लगते, मुझको दहकते।।

बारिस जब तन पे, टपकै सिहरती।
अंबर लख छत पे, बस आह भरती।।
बाग लगत उजड़े, चुपचाप खग हैं।
आवन घर उन के, सुनसान मग हैं।।

क्यों उमड़ घुमड़ के, घन व्याकुल करो।
आ झटपट बरसो, विरहा सब हरो।।
हे प्रियतम लख लो, तन का लरजना।
आ कर तुम सुध लो, बन मेघ सजना।।
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पावन छंद विधान:-

"भानजुजस" वरणी, यति आठ सपते।
'पावन' यह मधुरा, सब छंद जपते।।

"भानजुजस" = भगण नगण जगण जगण सगण
यति आठ सपते = यति आठ और सात वर्ण पे।

211 111 121 121 112 = 15 वर्ण,यति 8,7
चार चरण दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
12-09-17