Saturday, May 27, 2023

तांडव छंद "जागरण"

विपद में सारा देश।
चतुर्दिक कटु परिवेश।।
समझ लो भू की पीर।
उठो अब जागो वीर।।

सभी की अपनी राग।
लगी विघटन की आग।।
युवक अब तुम लो जाग।
उदासी का कर त्याग।।

बजें अलगावी ढोल।
लजाते देश कुबोल।।
भयंकर फैला स्वार्थ।
उठो जन-जन बन पार्थ।।

बनो प्रलयंकर रुद्र।
उफनते उग्र समुद्र।।
मचादो तांडव घोर।
मिटा खलुओं का जोर।।

त्यजो तंद्रा प्राचीन।
नहीं हो मन से हीन।।
दिखादो युवकों आज।
टिकी है तुम पर लाज।।

हुये थे हम आजाद।
कुटिल बँटवारा लाद।।
न हो फिर वैसा बोध।
'नमन' सबसे अनुरोध।।
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तांडव छंद विधान -

तांडव छंद 12 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। यह आदित्य जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 12 मात्राओं की मात्रा बाँट - 1 22 22  21(ताल) है। इस छंद के प्रारंभ में भी लघु वर्ण है तथा अंत में भी लघु वर्ण है। प्रारंभिक लघु के पश्चात दो चौकल ओर फिर गुरु लघु वर्ण हैं।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
29-05-22

Thursday, May 18, 2023

पिरामिड (रे, चन्दा)


रे
चन्दा
निर्मोही,
करता क्यों
आंख मिचौली।
छिप जा अब तो,
किन्ही खूब ठिठौली।।1।।

जो
बात
कह न
सकते हैं,
हम तुमसे।
सोच उसे फिर
ये नैना क्यों बरसे।।2।।

गा
मन
मल्हार,
मिलन की
रुत है आई।
मोहे ऋतुराज,
मन्द है पुरवाई।।3।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-04-18

Tuesday, May 9, 2023

छंदा सागर (तगणादि छंदाएँ)

                      पाठ - 11

छंदा सागर ग्रन्थ

"तगणादि छंदाएँ"


तगणादि छंदाएँ:- तगणादि छंदाओं का प्रथम गुच्छक तगणाश्रित गुच्छक रहता है जो निम्न गुच्छक में से कोई भी हो सकता है।

221 = तगण
2211 = अंतल
2212 = ईतग
22121 = ईंतागल
22112 = ऊतालग
221121 = ऊंतालिल
22122 = एतागग
221221 = ऐंतागिल

तगणादि गुरु-लूकी छंदाएँ:- इन छंदाओं में गुरु वर्ण के मध्य ऊलल वर्ण (11) रहते हैं। वाचिक स्वरूप में ये दोनों लघु स्वतंत्र लघु होते हैं। मात्रिक और वर्णिक में लघु वर्ण सामान्य लघु ही रहते हैं।
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22112 2 = तूगा, तूगण, तूगव (तनुमध्या छंद)
22112 2, 22112 2  = तूगध, तूगाधण, तूगाधव
(22112 2)*2 = तुगधू, तूगाधुण, तूगाधुव
(इस छंदा के मध्य में आये गुरु वर्ण को ऊलल वर्ण में तोड़ा जा सकता है।)
22112 21 = तूगू, तूगुण, तूगुव

22112 22 = तूगी, तूगिण, तूगिव (भक्ति छंद)
22112 22 +1 = तूगिल, तूगीलण, तूगीलव
22112 22, 22112 22 = तूगिध, तूगीधण, तूगीधव
(22112 22)*2 = तूगीधू, तूगीधुण, तूगीधुव
22112 22 +1, 22112 22 +1 = तूगीलध, तूगिलधण, तुगिलधव
22112 22 22112 2 = तूगीतुग, तूगीतूगण, तूगीतूगव

22112 222 = तूमा, तूमण, तूमव
22112 2221 = तूमल, तूमालण, तूमालव
22112 2222 = तूमी, तूमिण, तूमिव
22112 22221 = तूमिल, तूमीलण, तूमीलव
****

22112 112 = तूसा, तूसण, तूसव
22112 1121 = तूसल, तूसालण, तूसालव
22112 112, 22112 112 = तूसध, तूसाधण, तूसाधव

22112 1122 = तूसी, तूसिण, तूसिव
22112 11221 = तूसिल, तूसीलण, तूसीलव
22112 1122, 22112 1122 = तूसिध, तूसीधण, तूसीधव
22112 1122, 22112 11221 = तूसीधल, तूसिधलण, तूसिधलव
22112 11221, 22112 11221 = तूसींधा, तूसींधण, तूसींधव

22112 11222 = तूसे, तूसेण, तूसेव
22112 112221 = तूसेल, तूसेलण, तूसेलव
**

2211*2 2 = तंदग, तंदागण, तंदागव
2211*2 21 = तंदागू, तंदागुण, तंदागुव
2211*2 22 = तंदागी, तंदागिण, तंदागिव
2211*2 221 = तंदत, तंदातण, तंदातव
2211*2 22, 2211*2 22 = तंदागिध, तंदागीधण, तंदागीधव
2211*2 22, 2211*2 22 +1 = तंदागीधल, तंदागिधलण, तंदागिधलव
2211*2 222 = तंदम, तंदामण, तंदामव
2211*2 2221 = तंदामल, तंदमलण, तंदमलव
2211*2 2222 = तंदामी (रुबाइयों की छंदा), तंदामिण, तंदामिव
**

22112*2 2 = तूदग, तूदागण, तूदागव
22112*2 21 = तुदगू, तूदागुण, तूदागुव
22112*2 22 = तुदगी, तूदागिण, तूदागिव
22112*2 22 +1 = तूदागिल, तुदगीलण, तुदगीलव
22112*2 222 = तूदम, तूदामण, तूदामव
22112*2 2221 = तूदामल, तूदमलण, तूदमलव
**

22112 22 22112 = तूगीतू (रुबाई), तूगीतुण, तूगीतुव 
22112 22 221121 = तूगीतुल, तूगीतूलण, तूगीतूलव
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22112 112*2 = तूसद, तूसादण, तूसादव (मोटनक छंद)
22112 112*2 1 = तूसादल, तूसदलण, तूसदलव
22112 112*2 2 = तूसादग, तूसदगण, तूसदगव
22112 112*2 21 = तूसदगू, तूसदगुण, तूसदगुव
22112 112*2 22 = तूसदगी, तूसदगिण, तूसदगिव
22112 112*2 22 +1 = तूसदगिल, तूसदगीलण, तूसदगीलव

22112 11 22112 = तूलूतू, तूलूतुण, तूलूतुव
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2211 22112 112 = तंतुस, तंतूसण, तंतूसव
2211 22112 1122 = तंतूसी, तंतूसिण, तंतूसिव

2211*3 2 = तंबग (रुबाई), तंबागण, तंबागव
2211*3 21 = तंबागू, तंबागुण, तंबागुव
2211*3 22 = तंबागी, तंबागिण, तंबागिव
2211*3 221= तंबत, तंबातण, तंबातव
2211*3 222 = तंबम, तंबामण, तंबामव
2211*3 2221 = तंबामल, तंबमलण, तंबमलव
**

2211 22112*2 = तंतुद, तंतूदण, तंतूदव

22112*3 2 = तूबग, तूबागण, तूबागव
22112*3 21 = तुबगू, तूबागुण, तूबागुव
22112*3 22 = तुबगी, तूबागिण, तूबागिव
22112*3 22 +1 = तूबागिल, तुबगीलण, तुबगीलव
22112*3 222 = तूबम, तूबामण, तूबामव
(यति के साथ:- तूदंतुम, तूदंतूमण, तूदंतूमव)
22112*3 2221 = तूबामल, तूबमलण, तूबमलव
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तगणावृत्त छंदाएँ :- इन छंदाओं में केवल तगणाश्रित गुच्छक ही रहते हैं जिनकी एक से चार गुच्छक तक की आवृत्तियाँ रहती हैं। गुच्छक के अंत में स्वतंत्र वर्ण जुड़ सकते हैं। द्विगुच्छकी छंदाओं के मध्य में भी स्वतंत्र वर्ण संयोजित हो सकते हैं। इस पाठ में आगे लघु वृद्धि की छंदाएँ नहीं दी जा रही हैं जो सभी में बन सकती हैं। अब आगे केवल वाचिक और मात्रिक छंदाएँ ही दी जायेंगी। मात्रिक छंदा के अंत के ण के स्थान पर व के प्रयोग से आसानी से वर्णिक छंदा बनायी जा सकती है। इन्हें बनाने के लिये आधार गुच्छक के रूप में इस पाठ के प्रारंभ में बताये गये 8 गुच्छक में से कोई भी लिया जा सकता है।

"त = (221 आधार गुच्छक)":-

221*2 = तादा, तादण, तादव (मंथन/ज्योति छंद)
221*2 2 = तादग, तदगण
221*3 2 = ताबग, तबगण
221*4 2 = ताचग, तचगण
(इन छंदाओं में अंत में ग के स्थान पर ली या गी भी संयोजित हो सकता है। जैसे - तदली, तबगी आदि।)
221*3 22 = तबगी, तबगिण, तबगिव (विध्वंकमाला/लयग्राही छंद)
221*2 2, 221*2 2 = तदगध, तादगधण

221*2 +1 (तदलत, तादलती, तादलतू, तादलते)
221*2 +2 (तदगत, तातिद, तादगतू, तादगते)
221*2 +21 (तदगुत, तदगूती, तदगूतू, तदगूते)
221*2 +12 (तदलित, तदलीती, तातुद, तदलीते)
221*2 +22 (तदगित, तदगीती, तदगीतू, तातेद)
(वर्ण संयोजन के पश्चात क्रमशः 221, 2212, 22112, 22122 गुच्छक की वाचिक छंदाएँ दी गयी हैं।)
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"तं = (2211 आधार गुच्छक)":-

2211 2212 = तंती, तंतिण
2211 22122 = तंते, तंतेण
2211 2212, 2211 2212 = तंतिध, तंतीधण
2211*2 2212 = तंदाती, तंदातिण
2211*3 2212 = तंबाती, तंबातिण

2211 221*2 +2 = तंतादग, तंतदगण
(ग के स्थान पर ली या गी भी संयोजित हो सकता है।)
2211 2212*2 = तंतिद, तंतीदण
2211 2212*2 +2 = तंतीदग, तंतिदगण
2211 22122*2 = तंतेदा, तंतेदण

2211*2 +2 (तंदागत, तंदगती, तंतुद, तंदगते)
2211*2 +21 (तंदागुत, तंदागूती, तंदागूतू, तंदागूते)
(वर्ण संयोजन के पश्चात क्रमशः 221, 2212, 22112, 22122 गुच्छक की वाचिक छंदाएँ दी गयी हैं।)
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"ती = (2212 आधार गुच्छक)":-

2212 22 = तीगी, तीगिण
(यह छंदा 22122 2 से अलग है। इसमें रचनाकार चाहे तो 22 को 112 में भी ले सकता है।)

2212*2 2 = तीदग, तीदागण
2212*2 12 = तिदली, तीदालिण
2212*2 22 = तिदगी, तीदागिण
(ये छंदाएँ तीन और चार की आवृत्ति में भी बनेंगी। जैसे - तिबली, तीचग आदि।)
2212*2 2, 2212*2 2 = तीदागध, तीदगधण

2212 221 = तीता, तीतण
2212*2 221 = तीदत, तीदातण
2212*3 221 = तीबत, तीबातण, तीबातव (गीता छंद)
2212 22112 = तीतू, तीतुण
2212 22112, 2212 22112 = तीतुध, तीतूधण
2212 11 2212 = तीलूती, तीलूतिण
2212*2 22112 = तिदतू, तीदातुण

2212 221*2 +2 = तीतादग, तीतदगण
(ग के स्थान पर ली या गी भी संयोजित हो सकता है।)
2212 22112*2 = तीतुद, तीतूदण

2212*2 +1 2212 = तीदलती, तीदलतिण
2212*2 +2 2212 = तीदगती, तीदगतिण
(इन छंदाओं में अंत में ती के स्थान पर तू, ते गणक भी आ सकते हैं।)
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"तीं = (22121 आधार गुच्छक)":-

22121 2 = तींगा, तींगण
22121 12 = तींली, तींलिण
22121 22 = तींगी, तींगिण
22121 2, 22121 2 = तींगध, तींगाधण
22121 22 22121 22 = तींगीधू, तींगीधुण
22121 22, 22121 22 = तींगिध, तींगीधण, तींगीधव (दिगपाल छंद)

22121*2 = तींदा, तींदण
22121*2 2 = तींदग, तींदागण
22121*2 12 = तींदाली, तींदालिण
22121*2 22 = तींदागी, तींदागिण
(ये छंदाएँ तीन की आवृत्ति में भी बनेगी।)

22121 2212 = तींती, तींतिण
22121 2212, 22121 2212 = तींतिध, तींतीधण
22121*2 2212 = तींदाती, तींदातिण
22121 2 2212 = तींगाती, तींगातिण
22121 21 2212 = तींगूती, तींगूतिण
22121 12 2212 = तींलीती, तींलीतिण
22121 22 2212 = तींगीती, तींगीतिण
(इनके अंत में ती के स्थान पर तू, ते गणक भी आ सकते हैं।)

22121 221*2 +2 = तींतादग, तींतदगण
(ग के स्थान पर ली या गी भी संयोजित हो सकता है।)
22121 22112*2 = तींतुद, तींतूदण

22121 221, 22121 221 +2 = तींताधग, तींतधगण
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"तू = (22112 आधार गुच्छक )":-

22112 2212 = तूती, तूतिण
22112 2212, 22112 2212 = तूतिध, तूतीधण
22112*2 2212 = तुदती, तूदातिण
22112 11 2212 = तूलूती, तूलूतिण
22112 2 2212 = तुगती, तूगातिण
22112 22 2212 = तूलीती, तूलीतिण
(इनके अंत में ती के स्थान पर ते गणक भी आ सकता है।)

22112 221*2 2 = तूतादग, तूतदगण
(ग के स्थान पर ली या गी भी संयोजित हो सकता है।)
22112 2212*2 = तूतिद, तूतीदण

22112 221, 22112 221 +2 = तूताधग, तूतधगण
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"तूं = (221121 आधार गुच्छक)": 

221121 2 = तूंगा, तूंगण
221121 22,    = तूंगी, तूंगिण
221121 22, 221121 22 = तूंगिध, तूंगीधण

221121*2 2 = तूंदग, तूंदागण
221121*2 22 = तूंदागी, तूंदागिण
(ये छंदाएँ तीन की आवृत्ति में भी बनेगी।)

221121 2212 = तूंती, तूंतिण
221121 2212, 221121 2212 = तूंतिध, तूंतीधण
221121*2 2212 = तूंदाती, तूंदातिण
221121 2 2212 = तूंगाती, तूंगातिण
221121 12 2212 = तूंलीती, तूंलीतिण
221121 22 2212 = तूंगीती, तूंगीतिण
(इनके अंत में ती के स्थान पर तू, ते गणक भी आ सकते हैं।)

221121 221*2 2 = तूंतादग, तूंतदगण
(ग के स्थान पर ली या गी भी संयोजित हो सकता है।)
221121 2212*2 = तूंतिद, तूंतीदण
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"ते = (22122 आधार गुच्छक)":-

22122 2 = तेगा, तेगण
22122 22 = तेगी, तेगिण
22122 22, 22122 22 = तेगिध, तेगीधण
22122 22 22122 2 = तेगीतेगा, तेगीतेगण

22122*2 2 = तेदग, तेदागण
22122*2 22 = तेदागी, तेदागिण
(ये छंदाएँ तीन की आवृत्ति में भी बनेगी।)

22122 2212 = तेती, तेतिण
22122 2212, 22122 2212 = तेतिध, तेतीधण
22122*2 2212 = तेदाती, तेदातिण
22122 2 2212 = तेगाती, तेगातिण
22122 22 2212 = तेगीती, तेगीतिण
(इनके अंत में ती के स्थान पर तू गणक भी आ सकता है।)

22122 221*2 2 = तेतादग, तेतदगण
(ग के स्थान पर ली या गी भी संयोजित हो सकता है।)
22122 2212*2 = तेतिद, तेतीदण
22122 22112*2 = तेतुद, तेतूदण

22122 221, 22122 221 +2 = तेताधग, तेतधगण
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तगणाश्रित बहुगणी छंदाएँ:- हमने तगणक छंदाओं की संभावनाओं का विस्तृत अध्ययन किया। अब हम तगण गुच्छकों के साथ अन्य गणों के गुच्छकों के मेल से बनी छंदाओं का अवलोकन करेंगे। आधार गुच्छक पूर्णतया बनने के पश्चात ही अन्य गण का गुच्छक जुड़ सकता है। जैसे 2212 222 = तीमा छंदा न बनकर 22122 22 = तेगी छंदा बनेगी। परंतु गुच्छक की आवृत्ति की प्राथमिकता है।

तामक छंदाएँ:- इन छंदाओं में तगण के साथ मगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता है। मगण के किसी भी गुरु वर्ण को ऊलल वर्ण में तोड़ा जा सकता है यदि उसके दोनों तरफ गुरु वर्ण रहे।
यहाँ लघु वृद्धि की छंदाएँ नहीं दी जा रही हैं जो सभी में बन सकती हैं।

221*2 222 = तादम, तदमण
2212*2 222 = तीदम, तिदमण
(अंत में मी, मू गुच्छक भी आ सकते हैं।)

22121 222 = तींमा, तींमण
22121 222, 22121 222 = तींमध, तींमाधण
22121 222  2212 = तींमाती, तींमातिण

(इन छंदाओं में आधार गुच्छक के रूप में तूं (221121), ते (22122) आ सकता है। म के स्थान पर मी आ सकता है। अंत के ती के स्थान पर भी तू या ते आ सकता है।)
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तारक छंदाएँ:- इन छंदाओं में तगण और रगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता है।

221*2 212 = तादर, तदरण
2211*2 212 = तंदर, तंदारण
(अंत में री, रू, रे गुच्छक आ सकते हैं।)

22121 212 = तींरा, तींरण
(यह छंदा आधार गुच्छक में परिवर्तन से तूंरा और तैंरा नाम से बन सकती है। अंत में भी र के स्थान पर री आ सकता है।)
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तायक छंदाएँ:- इन छंदाओं में तगण और यगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता है।

221*2 122 = तादय, तदयण
2212*2 122 = तीदय, तिदयण
(अंत में यी गुच्छक भी आ सकता है। जैसे- तदयी)
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ताजक छंदाएँ:- इन छंदाओं में तगण और जगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता है।

221*2 1212 = तदजी, तदजिण
221*2 12122 = तदजे, तदजेणा, तदजेवा (इंद्रवज्रा छंद)
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तासक छंदाएँ:- इन छंदाओं में तगण और सगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता है। इन छंदाओं में  2212 के साथ 11212 का मेल है। 11212 के 11 को 2 का ही रूप मानने से यह मेल एक रूप से 2212 की आवृत्ति है। इसलिये इन छंदाओं में इन्हें आवृत्ति के रूप में ही लिया गया है।

2212*2 112 = तीदस, तिदसण
(अंत में सी, सू गुच्छक आ सकते हैं। जैसे तिदसी, तिदसू)

2212 11212 = तीसू , तीसुण, तीसुव
2212 11212, 2212 11212 = तीसुध, तीसूधण, तीसूधव
2212 112121, 2212 112121 = तीसूंधा, तीसूंधण, तीसूंधव

2212 11212 2 = तीसुग, तीसूगण, तीसूग
2212 11212 22 = तीसूगी, तीसूगिण, तीसूगिव

2212 11212 2212 = तीसूती, तीसूतिण, तीसूतिव
2212 11212*2 = तीसुद, तीसूदण, तीसूदव
2212 11212*2 2212 = तीसुदती, तीसुदतिण, तीसुदतिव

22112 11212 = तूसू, तूसुण, तूसुव (उपस्थिता छंद)
22112 11212, 22112 11212 = तूसुध, तूसूधण, तूसूधव
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Friday, May 5, 2023

तमाल छंद "ग्रीष्म ताण्डव"

दिखा रही है ग्रीष्म पूर्ण बल आज,
ठहर गये हैं भू तल के सब काज।
प्रखर उष्णता का कर कुटिल प्रसार,
वसुधा को झुलसाती लू की धार।।

तप्त तपन की ताप राशि दुस्वार,
प्रलय स्वप्न को करती ज्यों साकार।
अट्टहास में रुदन समेटे घोर,
ग्रीष्म बहाये पिघला लावा जोर।।

नहीं छुपाने का तन को है ठौर,
घोर व्यथा का आया भू पर दौर।
शुष्क हुये सब नदी सरोवर कूप,
नर, पशु, पक्षी, तरु का बिगड़ा रूप।।

दुष्कर अब तो सहना सलिल अभाव,
रहा मौत दे अब यह भीषण दाव।
झुलसाया जन जन को यह संताप,
कब जायेगा छोड़ प्रलय की छाप।।
***.  ***

तमाल छंद विधान - तमाल छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति चरण 19 मात्रा रहती हैं। दो-दो या चारों चरण समतुकांत होते हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
चौपाई + गुरु लघु (16+3 =19मात्रा)
चरण के अंत में गुरु लघु अर्थात (21) होना अनिवार्य है। चौपाई छंद का विधान अनुपालनिय होगा, जो कि निम्न है-

चौपाई छंद चौकल और अठकल के मेल से बनती है। चार चौकल, दो अठकल या एक अठकल और दो चौकल किसी भी क्रम में हो सकते हैं। समस्त संभावनाएँ निम्न हैं।
4-4-4-4, 8-8, 4-4-8, 4-8-4, 8-4-4

चौपाई छंद में कल निर्वहन केवल चतुष्कल और अठकल से होता है। अतः एकल या त्रिकल का प्रयोग करें तो उसके तुरन्त बाद विषम कल शब्द रख समकल बना लें। जैसे 3+3 या 3+1 इत्यादि।

चौकल = 4 – चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-05-22

Wednesday, April 26, 2023

ग़ज़ल (मानवी जीवन महासंग्राम है)

बह्र:- 2122  2122  212

मानवी जीवन महासंग्राम है,
प्रेम से रहना यहाँ विश्राम है।

पेट की ख़ातिर है इतनी भागदौड़,
ज़िंदगी में अब कहाँ आराम है।

जोर मँहगाई का ही चारों तरफ,
हर जगह नव छू रही आयाम है।

स्वार्थ नेताओं में बढ़ता जा रहा,
देश जिसका भोगता परिणाम है।

हाल क्या बदइंतजामी का कहें,
रोज हड़तालें औ' चक्का जाम है।

क़त्ल, हिंसा और लुटती अस्मिता,
हर कहीं अब तो मचा कुहराम है।

मन की दो बातें 'नमन' किससे करें,
पूछिये जिससे भी उस को काम है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-12-17

Wednesday, April 19, 2023

छंदा सागर (मगणादि छंदाएँ)

                    पाठ - 10


छंदा सागर ग्रन्थ

"मगणादि छंदाएँ"


मगणादि छंदाएँ:- पिछले नवम पाठ में हमें मिश्र छंदाओं के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी मिली। मिश्र छंदाओं की इस कड़ी का प्रथम पाठ मगणादि छंदाओं पर है। कोई भी गुच्छक किसी न किसी गण पर तो आधारित रहेगा ही और मगणादि छंदाओं का प्रथम गुच्छक मगण पर आधारित होता है, इसीलिए इनका नाम मगणादि छंदाएँ दिया गया है। कुल गुच्छक 72 हैं और 8 गणों में प्रत्येक गण के 9 गुच्छक होते हैं। मगणादि छंदाओं का प्रथम गुच्छक इन 9 गुच्छक में से कोई भी एक हो सकता है। मगण गुच्छक निम्न हैं।
222 = मगण
2221 = अंमल
2222 = ईमग
22221 = ईंमागल
22212 = ऊमालग
222121 = ऊंमालिल
22222 = एमागग
222221 = ऐंमागिल
22211 = ओमालल

(छंदाओं के वाचिक स्वरूप में इन सभी गुच्छक के ऐसे गुरु वर्ण को ऊलल वर्ण (11) में तोड़ने की छूट रहती है जिसके दोनों तरफ गुरु वर्ण हों।)

मगणादि गुरु-लूकी छंदाएँ:- गुरु लूकी छंदाओं में केवल गुरु वर्ण और ऊलल (11) वर्ण रहते हैं। मगणादि छंदाओं के संसार में हम इन्ही गुरु लूकी छंदाओं से प्रविष्ट होने जा रहे हैं। मिश्र छंदाओं में भी क्रमशः वाचिक, मात्रिक और वर्णिक स्वरूप की छंदाएँ दी जायेंगी। छंदाओं की लघु वृद्धि की छंदाएँ भी दी जायेंगी। गुरु लूकी छंदाओं में 11 को 2 का ही एक रूप माना जाता है। इसलिए इन गुरुलूकी छंदाओं में ऊलल वर्ण को कहीं भी तोड़ा नहीं गया है। जैसे 22221 12 से 2222 112 को प्राथमिकता दी गयी है। साथ ही गुरु छंदाओं की तरह गणक अठकल आधारित रखे गये हैं।)
****

22211 2 = मोगा, मोगण, मोगव
22211 21 = मोगू, मोगुण, मोगुव
22211 22 = मोगी, मोगिण, मोगिव (मदलेखा छंद)
22211 22 +1 = मोगिल, मोगीलण, मोगीलव
22211 22,  22211 22 = मोगिध, मोगीधण, मोगीधव (अलोला छंद)
22211 22 22211 2 = मोगीमोगा, मोगीमोगण, मोगीमोगव
22211 222 = मोमा, मोमण, मोमव
22211 2221 = मोमल, मोमालण, मोमालव
22211 222,  22211 222 = मोमध, मोमाधण, मोमाधव
22211 222, 22211 2221 = मोमाधल, मोमधलण, मोमधलव
22211 2222 = मोमी, मोमिण, मोमिव
22211 22221 = मोमिल, मोमीलण, मोमीलव
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2222 112 = मीसा, मीसण, मीसव
2222 1121 = मीसल, मीसालण, मीसालव
2222 1122 = मीसी, मीसिण, मीसिव
2222 11221 = मीसिल, मीसीलण, मीसीलव
2222 1122, 2222 1122  = मीसिध, मीसीधण, मीसीधव
2222 11221, 2222 11221  = मीसींधा, मीसींधण, मीसींधव
2222 11 222 = मीलुम, मीलूमण, मीलूमव
2222 11 2221 = मीलूमल, मीलुमलण, मीलुमलव
**

2222 2112 = मीभी, मीभिण, मीभिव
2222 21121 = मीभिल, मीभीलण, मीभीलव (वर्ष छंद)
2222 21122 = मीभे, मीभेण, मीभेव
2222 211221 = मीभेल, मीभेलण, मीभेलव
2222 21122, 2222 21122 = मीभेधा, मीभेधण, मीभेधव
****

222 112*2 = मासद, मसदण, मसदव (रत्नकरा/ रलका छंद)
222 112*2 +1 = मसदल, मासदलण, मासदलव
222 112*2 2 = मसदग, मासदगण, मासदगव
222 112*2 21 = मासदगू, मासदगुण, मासदगुव
222 112*2 2, 222 112*2 2 = मासदगध, मसदगधण, मसदगधव
**

2222 112*2 = मीसद, मीसादण, मीसादव
2222 112*2 +1 = मीसादल, मीसदलण, मीसदलव
2222 112*2 2 = मीसादग, मीसदगण, मीसदगव
2222 112*2 21 = मीसदगू, मीसदगुण, मीसदगुव
**

2222 211*2 2 = मीभादग, मीभदगण, मीभदगव
2222 211*2 22 = मीभदगी, मीभदगिण, मीभदगिव
**

222 1122 112 = मासिस, मासीसण, मासीसव
222 1122 1121 = मासीसल, मासिसलण, मासिसलव
222 1122*2 = मासिद, मासीदण, मासीदव
**

2222 1122 112 = मीसिस, मीसीसण, मीसीसव
2222 1122*2 = मीसिद, मीसीदण, मीसीदव
2222 1122*2 +1 = मीसीदल, मीसिदलण, मीसिदलव

2222 2112*2 2 = मीभीदग, मीभिदगण, मीभिदगव (मत्तमयूर छंद)
****

22211*2 2 = मोदग, मोदागण, मोदागव
22211*2 21 = मोदागू, मोदागुण, मोदागुव
22211*2 22 = मोदागी, मोदागिण, मोदागिव
22211*2 22 +1 = मोदागिल, मोदागीलण, मोदागीलव
22211*2 222 = मोदम, मोदामण, मोदामव
22211*2 2221 = मोदामल, मोदमलण, मोदमलव
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222 112*3 = मासब, मसबण, मसबव
222 112*3 +1 = मसबल, मासबलण, मासबलव
222 112*3 2 = मसबग, मासबगण, मासबगव
222 1122*3 = मासिब, मासीबण, मासीबव
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2222 1122*2 112 = मीसीदस, मीसिदसण, मीसिदसव
2222 1122*3 = मीसिब, मीसीबण, मीसीबव
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22211*3 2 = मोबग, मोबागण, मोबागव
22211*3 21 = मोबागू, मोबागुण, मोबागुव
22211*3 22 = मोबागी, मोबागिण, मोबागिव
22211*3 22 +1 = मोबागिल, मोबागीलण, मोबागीलव
22211*3 222 = मोबम, मोबामण, मोबामव
22211*3 2221 = मोबामल, मोबमलण, मोबमलव
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मगणावृत्त छंदाएँ :- इन छंदाओं में केवल मगणाश्रित गुच्छक ही रहते हैं जिनकी एक से चार गुच्छक तक की आवृत्तियाँ रहती हैं। गुच्छक के अंत में स्वतंत्र वर्ण जुड़ सकते हैं। द्विगुच्छकी छंदाओं के मध्य में भी स्वतंत्र वर्ण संयोजित हो सकते हैं। जिन छंदाओं में केवल गुरु वर्ण युक्त मगण गुच्छक का प्रयोग है वे गुरु छंदाओं तथा गुरु लूकी छंदाओं में आ चुकी हैं। अतः यहाँ मगणावृत्त छंदाएँ बनाने के लिये हम आधार गुच्छक के रूप में मगणाश्रित ऐसे गुच्छक लेंगे जिनमें लघु वर्ण जुड़ा हुआ हो। ऐसे गुच्छक निम्न 5 गुच्छक हैं जिनका इन छंदाओं में प्रयोग है। इस पाठ में आगे लघु वृद्धि की छंदाएँ नहीं दी जा रही हैं जो सभी में बन सकती हैं।

2221 - मं
22221 - मीं
22212 - मू
222121 - मूं
222221 - मैं
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"मं = (2221 आधार गुच्छक)":-

2221 222 = मंमा, मंमण, मंमव
2221*2 = मंदा, मंदण, मंदव
2221 222, 2221 222 = मंमध, मंमाधण, मंमाधव

2221*2 2 = मंदग, मंदागण, मंदागव
2221*3 2 = मंबग, मंबागण, मंबागव
2221*4 2 = मंचग, मंचागण, मंचागव
2221*2 2, 2221*2 2 = मंदागध, मंदगधण, मंदगधव
(इन छंदाओं में अंत में ग के स्थान पर ली या गी भी संयोजित हो सकता है। जैसे - मंदाली, मंबागी, मंदागिध आदि।)

2221*2 222 = मंदम, मंदामण, मंदामव
2221*3 222 = मंबम, मंबामण, मंबामव
(इन छंदाओं के अंत में म के स्थान पर मी या मे का प्रयोग भी किया जा सकता है।)

2221*2 +1 (मंदालम, मंदलमी, मंदलमू, मंदलमे)
2221*2 +2 (मंदागम, मंदगमी, मंदगमू, मंदगमे)
2221*2 +12 (मंदालिम, मंदालीमी, मंदालीमू, मंदालीमे)
2221*2 +21 (मंदागुम, मंदागूमी, मंदागूमू, मंदागूमे)
(वर्ण संयोजन के पश्चात क्रमशः 222, 2222, 22212, 22222 गुच्छक की वाचिक छंदाएँ दी गयी हैं।)
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"मीं = (22221 आधार गुच्छक)":-

22221 2 = मींगा, मींगण, मींगव
22221 22 = मींगी, मींगिण, मींगिव
22221 22, 22221 22 = मींगिध, मींगीधण, मींगीधव
22221 21 22221 2 = मींगूमींगा, मींगूमींगण, मींगूमींगव

22221*2 = मींदा, मींदण, मींदव
22221*2 2 = मींदग, मींदागण, मींदागव
22221*2 22 = मींदागी, मींदागिण, मींदागिव

22221 222 = मींमा, मींमण, मींमव
22221 222, 22221 222 = मींमध, मींमाधण, मींमाधव
22221 21 222 = मींगुम, मींगूमण, मींगूमव
22221*2 222 = मींदम, मींदामण, मींदामव
(इनके अंत में म के स्थान पर मी, मू, मे गणक भी आ सकते हैं।)

22221 2221 222 = मिलमंमा, मिलमंमण, मिलमंमव

22221 2221, 22221 2221 +2 = मिलमंधग, मिलमंधागण, मिलमंधागव
****

"मू = (22212 आधार गुच्छक)":- (आगे वर्णिक छंदाएँ नहीं दी जा रही हैं जो ण के स्थान पर व के प्रयोग से आसानी से बन सकती हैं।)

22212 2 = मूगा, मूगण
22212 2, 22212 2 = मूगध, मूगाधण
22212 21 22212 12 = मूगूमूली

22212*2 2 = मूदग, मूदागण
22212*2 12 = मुदली, मूदालिण
22212*3 2 = मूबग, मूबागण
22212*3 12 = मुबली, मूबालिण

22212 21 222 = मूगुम, मूगूमण
22212 11 222 = मूलुम, मूलूमण
22212*2 222 = मूदम, मूदामण
(इनके अंत में म के स्थान पर मी, मू, मे गणक भी आ सकते हैं।)

22212 2221, 22212 2221 +2 = मूमंधग, मूमंधागण
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"मूं = (222121 आधार गुच्छक)":-

222121 2 = मूंगा, मूंगण
222121 12 = मूंली, मूंलिण
222121 22 = मूंगी, मूंगिण
222121 12, 222121 12 = मूंलिध, मूंलीधण
222121 2, 222121 2 = मूंगध, मूंगाधण
222121 21 222121 2 = मूंगूमूंगा

222121*2 2 = मूंदग, मूंदागण
222121*2 12 = मूंदाली, मूंदालिण
222121*2 22 = मूंदागी, मूंदागिण

222121 222 = मूंमा, मूंमण
222121 222, 222121 222 = मूंमध, मूंमाधण
222121 21 222 = मूंगुम, मूंगूमण
222121*2 222 = मूंदम, मूंदामण
(इनके अंत में म के स्थान पर मी, मू, मे गणक भी आ सकते हैं।)

222121 2221, 222121 2221 +2 = मुलमंधग, मुलमंधागण
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"मैं = (222221 आधार गुच्छक)":-

222221 2 = मैंगा, मैंगण
222221 22 = मैंगी, मैंगिण
222221 22, 222221 22 = मैंगिध, मैंगीधण, मैंगीधव
222221 22, 222221 2 = मैंगिणमैंगा, मैंगिणमैंगण
222221 21 222221 2 = मैंगूमैंगा, मैंगूमैंगण

222221*2 2 = मैंदग, मैंदागण
222221*2 22 = मैंदागी, मैंदागिण

222221 222 = मैंमा, मैंमण
222221 222, 222221 222 = मैंमध, मैंमाधण
222221 21 222 = मैंगुम, मैंगूमण
222221*2 222 = मैंदम, मैंदामण
(इनके अंत में म के स्थान पर मी, मू, मे गणक भी आ सकते हैं।)

222221 2221, 222221 2221 +2 = मेलमंधग, मेलमंधागण
****
****

मगणाश्रित बहुगणी छंदाएँ:- मगणक छंदाओं में केवल मगण गुच्छक का प्रयोग होता है जबकि इन छंदाओं में मगण के अतिरिक्त अन्य गण के गुच्छक का समावेश रहेगा। इन छंदाओं की मगणक छंदाओं जितनी व्यापक संभावना नहीं है।

मातक छंदाएँ:- इन छंदाओं में मगण के साथ तगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता है।

2221*2 221 = मंदत, मंदातण, मंदातव
2221*3 221 = मंबत, मंबातण, मंबातव
22211 221 = मोता, मोतण, मोतव
(इन तीन छंदाओं के अंत में त के स्थान पर ती (2212) या ते (22122) जोड़ सकते हैं।)

22221 221 222 = मींतम, मींतामण, मींतामव
(इस में आधार मूं, मैं या मो रखा जा सकता है। अंत में भी मी या मू रख सकते हैं।)
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मारक छंदाएँ:- इन छंदाओं में मगण के साथ रगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता है।

2221*2 212 = मंदर, मंदारण, मंदारव
2221*3 212 = मंबर, मंबारण, मंबारव
22221 212 = मींरा, मींरण, मींरव
22212 212 = मूरा, मूरण, मूरव
222121 212 = मूंरा, मूंरण, मूंरव
222221 212 = मैंरा, मैंरण, मैंरव
22211 212 = मोरा, मोरण, मोरव

(इन सब में अंत के र के स्थान पर री या रू आ सकता है। इन्हें द्वि गुणित रूप दे कर भी कई छंदाएँ बन सकती हैं जैसे- मींरध, मुरधू, मोरिध आदि। )

22221 2121 222 = मिलरंमा, मिलरंमण

(इस में आधार मू, मूं, मैं या मो रखा जा सकता है। अंत में भी मी या मू रख सकते हैं। )

22211 21212 = मोरू, मोरुण, मोरुव (शुद्ध विराट छंद)
2222 212*2 2 = मीरादग, मीरदगण, मीरदगव (शालिनी छंद)

2221 212*2 = मंरद, मंरादण
(आधार गणक मीं, मूं, मैं या मो भी रख सकते हैं। अंत में ग, गू, ली भी जोड़ सकते हैं। जैसे मंरादग, मंरदली)
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मायक छंदाएँ:- इन छंदाओं में मगण के साथ यगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता है।

2221*2 122 = मंदय, मंदायण, मंदायव
2221*3 122 = मंबय, मंबायण, मंबायव
(अंत में  यू भी रखा जा सकता है।)

22221 12212 = मींयू, मींयुण
22221 12212, 22221 12212 = मींयुध, मींयूधण
(इन में आधार गुच्छक के रूप में मूं (222121) या मैं (222221) आ सकता है।)

22221 1221 222 = मिलयंमा, मिलयंमण
(इस में आधार मूं या मैं रख सकते हैं। अंत में भी मी या मू रख सकते हैं। जैसे- मेलयंमू)

2221 122*2 = मंयद, मंयादण
(आधार गणक मीं, मूं, मैं भी रख सकते हैं।)
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माभक छंदाएँ:- इन छंदाओं में मगण के साथ भगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता है।

2221*2 2112 = मंदाभी, मंदाभिण
2221*3 2112 = मंबाभी, मंबाभिण
(अंत में  भे भी रखा जा सकता है।)

22221 2112 = मींभी, मींभिण
(इन में आधार गुच्छक के रूप में मूं (222121) या मैं (222221) आ सकता है।)

22221 211 222 = मींभम, मींभामण
(इस में आधार मूं या मैं रख सकते हैं। अंत में भी मी या मू रख सकते हैं। जैसे- मैंभामू)

2221 211*2 2 = मंभादग, मंभदगण
(आधार गणक मीं, मूं, मैं भी रख सकते हैं। अंत में गी भी जोड़ सकते हैं।)
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माजक छंदाएँ:- इन छंदाओं में मगण के साथ जगण आधारित गुच्छक का प्रयोग होता है।

2221*2 1212 = मंदाजी, मंदाजिण
2221*3 1212 = मंबाजी, मंबाजिण
(अंत में  जू, जे भी रखा जा सकता है।)

22221 1212 = मींजी, मींजिण
22221 12121 22 = मिलजींगी, मिलजींगिण, मिलजींगिव (पुंडरीक छंद)

(इसी प्रकार मूं और मैं आधार लेकर भी ये छंदाएँ बनायी जा सकती हैं)

2221 121*2 2 = मंजादग, मंजदगण
(आधार गणक मीं, मूं, मैं भी रख सकते हैं। अंत में गी भी जोड़ सकते हैं।)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Thursday, April 13, 2023

मनहरण घनाक्षरी "शादी के लड्डू"

काम सा अनंग हो या, शिव सा मलंग बाबा,
व्याह के तो लडूवन, सब को ही भात है।

जैसे बड़ा पूत होवे, मात कल्पना में खोवे,
सोच उसके व्याह की, मन पुलकात है।

घोड़ी चढ़ने का चाव, दूल्हा बनने का भाव,
किसका हृदय भला, नहीं तरसात है।

शादी के जो लड्डू खाये, फिर पाछे पछताये,
नहीं जो अभागा खाये, वो भी पछतात है।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
16-09-17

Friday, April 7, 2023

छवि छंद "बिछोह व मिलन"

छवि छंद / मधुभार छंद

प्रिय का न संग।
बेढंग अंग।।
शशि युक्त रात।
जले पर गात।।

रहता उदास।
मिटी सब आस।।
हूँ अति अधीर।
लिये दृग नीर।।

है व्यथित देह।
दे डंक गेह।।
झेल अलगाव।
लगे भव दाव।।

मिला मनमीत।
बजे मधु गीत।।
उद्दीप्त भाव।
हृदय अति चाव।।

है मिलन चाह।
गयी मिट आह।।
प्राप्त नव राह।
शांत सब दाह।।

छायी उमंग।
मन में तरंग।।
फैला उजास।
है मीत पास।।
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छवि छंद / मधुभार छंद विधान -

छवि छंद जो कि मधुभार छंद के नाम से भी जाना जाता है, 8 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत जगण (121) से होना आवश्यक है। यह वासव जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 8 मात्राओं का विन्यास चौकल + जगण (121) है। इसे त्रिकल + 1121 या पंचकल + ताल (21) के रूप में भी रच सकते हैं।

इकी निम्न संभावनाएँ हो सकती हैं।
22 121
21 या 12 + 1121
1211 21
2111 21
221 21
(2 को 11 में तोड़ सकते हैं, पर अंत सदैव जगण (1S1) से होना चाहिए।)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
23-05-22

Monday, April 3, 2023

छंदा सागर (मिश्र छंदाऐँ)


                        पाठ - 09

छंदा सागर ग्रन्थ

"मिश्र छंदाऐँ"


सप्तम पाठ में हमने एक ही गुच्छक की विभिन्न आवृत्तियों पर आधारित वृत्त छंदाओं का विस्तृत अध्ययन किया। अष्टम पाठ में हमारा परिचय गुरु छंदाओं से हुआ जिनमें केवल गुरु वर्ण रहते हैं। अब इस नवम पाठ से हम मिश्र छंदाओं के विस्तृत संसार में प्रविष्ट हो रहे हैं। मिश्र छंदाओं की संरचना विभिन्न प्रकार से होती है। छंदा में एक ही गण पर आधारित विभिन्न गुच्छक रह सकते हैं, उन गुच्छकों में वर्णों का स्वतंत्र संयोजन हो सकता है या छंदा में एक से अधिक गण का प्रयोग हो सकता है। 

ये मिश्र छंदाएँ उसमें प्रयुक्त प्रथम गण के आधार पर वर्गीकृत की गयी हैं। कुल आठ गण हैं। इनमें नगण (111) आधारित गुच्छक का प्रयोग केवल वर्णिक स्वरूप की छंदाओं में ही होता है जिनका अवलोकन हम वर्णिक छंदाओं के पाठ में करेंगे। मिश्र छंदाओं की श्रंखला में हम बाकी बचे सात गण के आधार पर बनी छंदाओं का अध्ययन करेंगे। प्रत्येक पाठ में छंदाओं का वर्गीकरण छंदा के स्वरूप के आधार पर किया गया है।

छंदा की मापनी में जहाँ भी 11 लिखा जाता है या छंदा के नाम में 'लु' संकेतक का प्रयोग होता है तो वह सदैव ऊलल वर्ण ही होता है। वाचिक स्वरूप में इसे शास्वत दीर्घ के रूप में नहीं ले सकते क्योंकि शास्वत दीर्घ गुरु वर्ण का ही दूसरा रूप है। जबकि मात्रिक और वर्णिक स्वरूप में इन्हें शास्वत दीर्घ के रूप में एक शब्द में भी रखा जा सकता है। केवल गुरु वर्ण पर आधरित गुरु छंदाओं का काव्य में अलग ही महत्व है। इन छंदाओं में म और ग इन दो ही वर्ण के संकेतक का प्रयोग होता है। (केवल लघु वृद्धि छंदाओं के अंत में ल वर्ण का प्रयोग मान्य है।) गुरु छंदाओं के वाचिक स्वरूप में गुरु वर्ण को ऊलल वर्ण में तोड़ा जा सकता है। 

मिश्र छंदाओं के वाचिक और मात्रिक स्वरूप में भी जहाँ केवल गुरु वर्ण युक्त वर्ण या गुच्छक हों तो वाचिक स्वरूप में उसके ऐसे किसी भी गुरु को ऊलल (11) के रूप में लिया जा सकता है जिसके दोनों तरफ गुरु वर्ण रहे। ऐसे वर्ण गुरु (2) और ईगागा (22) हैं। गुच्छक में मगण आधारित 9 के 9 गुच्छक में यह छूट है। जैसे तींमा छंदा में मकार युक्त गुच्छक है। छंदा का स्वरूप देखने से यह पता चलता है कि केवल मगण का मध्य गुरु ऐसा है जिसके दोनों तरफ गुरु वर्ण हैं। रचना कार यदि चाहे तो उसे ऊलल के रूप में तोड़ सकता है। इसी प्रकार तूमा छंदा के मगण के आदि या मध्य के किसी भी गुरु को ऊलल में तोड़ सकते हैं। 

गुरु छंदाओं में तो गुरु वर्ण को ऊलल वर्ण में तोड़ने की छूट रहती है परंतु ऐसे अनेक बहुप्रचलित छंद हैं जिन में केवल गुरु वर्ण (2) और उनके मध्य में ऊलल (11) वर्ण का समावेश विधान के अंतर्गत आता है।  हम इन मिश्र छंदाओं के पाठों में ऐसी छंदाओं को अलग से वर्गीकृत करेंगे। इन्हें हम गुरु-लूकी छंदाएँ कहेंगे। गुरु लूकी छंदाएँ आधार गण मगण, तगण, भगण और सगण रहने से ही बन सकती हैं। इन चारों गणों की छंदाओं में सर्वप्रथम गुरु लूकी छंदाएँ ही दी गयी हैं।

इसके पश्चात गणावृत्त छंदाएँ दी गयी हैं। इन छंदाओं में केवल आधार गण पर आधारित गुच्छक ही रहते हैं। किसी भी गण के 9 गुच्छक होते हैं। इन गणावृत्त छंदाओं में एक से चार तक गुच्छक रहते हैं। केवल एक गुच्छक की छंदाओं में एक गुच्छक और अंत में स्वतंत्र वर्ण संयोजन रहता है। द्विगुच्छकी छंदाओं में एक ही गुच्छक की दो आवृत्ति हो सकती है या दो विभिन्न गुच्छक हो सकते हैं। इनमें अंत में, मध्य में या अंत और मध्य दोनों स्थान पर वर्ण संयोजन हो सकता है। त्रिगुच्छकी छंदाओं में एक ही गुच्छक की तीन आवृत्ति हो सकती है। एक गुच्छक की दो आवृत्ति और अन्य गुच्छक रह सकता है या तीनों अलग गुच्छक हो सकते हैं। चतुष गुच्छकी छंदाओं में आवृत्तियों की प्रमुखता रहती है।

वर्ण संयोजन:- मिश्र छंदाओं में वर्ण संयोजन का अत्यंत महत्व है। कुल वर्ण 6 हैं। गण में इन वर्णों के संयोजन से गणक बनते हैं। वृत्त छंदाओं में हम गण और विविध गणक की आवृत्ति की छंदाओं का अध्ययन कर चुके हैं। एक ही गण आधारित गुच्छक की आवृत्ति से भी छंदाओं में विशेष लय बनती है क्योंकि आधार गण की समानता रहती है। 6 वर्ण तथा जगण और तगण को युज्य के रूप में जोड़ने से हमें प्रत्येक गण से 8 गणक प्राप्त होते हैं। यहाँ मिश्र छंदाओं में हम ऐसी छंदाएँ सम्मिलित नहीं करेंगे जिनमें दो से अधिक लघु एक साथ हो या अंत में ऊलल वर्ण (11) पड़े।

अंत में बहुगणी छंदाएँ दी गयी हैं। जिन छंदाओं में एक से अधिक गणों के गुच्छकों का समावेश है, वे बहुगणी छंदाओं की श्रेणी में आती है।

छंदाओं का नामकरण:- छंदा में वर्ण की संख्या के अनुसार नामकरण की निम्न प्रकार से परंपराएँ निभाई जाती है -
4 वर्ण - गणक संकेत और 'क', जैसे यीका, रीकण।
5 वर्ण - गणक संकेत और 'क', जैसे तैका, सूकव। 
6 वर्ण - 5+1 गणक और वर्ण। जैसे 22121 2 = तींगा, तींगण। यदि संभव हो तो गणक संकेत और 'क', जैसे सूंका, रैंका।
7 वर्ण - 5+2 गणक और वर्ण। जैसे 22121 22 = तींगी, तींगिव
8 वर्ण - 6+2 गणक और वर्ण यदि संभव हो जैसे 221121 22 = तूंगी। अन्यथा 5+3 गणक और गण जैसे 22121 212 = तींरा
9 वर्ण - 6+3 गणक और गण यदि संभव हो जैसे 122221 212 = यैंरा, यैंरण, यैंरव। अन्यथा 5+4 दो गणक जैसे 22121 2122 = तींरी
10 वर्ण - 6+4 या 5+5 दो गणक। जैसे 122121 2112 = यूंभी या 22121 12222 = तींये।

उपरोक्त परंपराएँ वर्ण संख्या के आधार पर निभाई जाने वाली सामान्य परंपराएँ हैं। परंतु छंदों में गणों की आवृत्ति का बहुत महत्व है। छंदाओं के नामकरण में किसी भी प्रकार की आवृत्ति को सदैव प्राथमिकता दी जाती है। इन प्राथमिकताओं का क्रम निम्नानुसार है।
(1) सर्व प्रथम आधार गुच्छक की आवृत्ति की प्राथमिकता रहती है। जैसे 212*2 2 = रादग का नाम 21221 22 = रींगी नहीं रखा जा सकता। 2122 21211 2 = रीरोगा का 212221 2112 = रैंभी नाम नहीं होगा। इस छंदा में दो रगणाश्रित गुच्छक आवृत्त हो रहे हैं जिनकी छंदा के नामकरण में प्राथमिकता है।
(2) आधार गण यदि छंदा के अंत के गुच्छक में पुनरावृत्त हो रहा है तो उसकी प्राथमिकता है। जैसे 12221 212 122 = यींरय को 12221 21212 2 = यींरुग नाम देना उचित नहीं।
(3) आधार गण के पश्चात यदि अन्य गण की किसी भी प्रकार की आवृत्ति बन रही है तो ऐसी आवृत्ति की प्राथमिकता रहती है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Friday, March 31, 2023

दोहा छंद "दोहामाल" (वयन सगाई अलंकार)


वयन सगाई अलंकार / वैण सगाई अलंकार


आदि देव दें आसरा, आप कृपालु अनंत।
अमल बना कर आचरण, अघ का कर दें अंत।।

काली भद्रा कालिका, कर में खड़ग कराल।
कल्याणी की हो कृपा, कटे कष्ट का काल।।

गदगद ब्रज की गोपियाँ, गिरधर मले गुलाल।
ग्वालन होरी गावते, गउन लखे गोपाल।।

चन्द्र खिलाये चांदनी, चहकें चारु चकोर।
चित्त चुराके चंचला, चल दी सजनी चोर।।

जगमग मन दीपक जले, जब मैं हुई जवान।
जबर विकल होगा जिया, जरा न पायी जान।।

ठाले करते ठाकरी, ठाकुर बने ठगेस।
ठेंगा दिखला ठगकरी, ठग करके दे ठेस।।

डगमग चलती डोकरी, डट के लेय डकार।
डिग डिग तय करती डगर, डांड हाथ में डार।।

तड़प राह पिय की तकूँ, तन के बिखरे तार।
तारों की लगती तपिश, तीखी ज्यों तलवार।।

दान हड़पने की दिखे, दर-दर आज दुकान।
दाता ऐसों को न दे, दे सुपात्र लख दान।।

नख सिख दमकै नागरी, नस नस भरा निखार।
नागर क्यों ललचे नहीं, निरख निराली नार।।

पथ वैतरणी है प्रखर, पापों की सर पोट।
पार करें किस विध प्रभू, पातक जगत-प्रकोट।।

भूखे पेट न हो भजन, भर दे शिव भंडार।
भक्तों का करके भरण, भोले मेटो भार।।

मधुर ओष्ठ हैं मदभरे, मोहक ग्रीव मृणाल।
मादक नैना मटकते, मन्थर चाल मराल।।

यत्न सहित सब योजना, योजित करें युवान।
यज्ञ रूप तब देश यह, यश के चढ़ता यान।।

रे मन तुझ को रमणियाँ, रह रह रहें रिझाय।
राम-भजन में अब रमो, राह दिखाती राय।।

लोभी मन जग-लालसा, लेवे क्यों तु लगाय।
लप लप करती यह लपट, लगातार ललचाय।।

वारिज कर में शुभ्र वर, वाहन हंस विहार।
विद्या दे वागीश्वरी, वारण करो विकार।।

सदा भजो मन साँवरा, सारे जग का सार।
सजन मात पितु या सखा, सभी रूप साकार।।

हरि की मोहक छवि हृदय, हरपल रहे हमार।
हर विपदा भव की हरे, हरि के हाथ हजार।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
20-11-2018

Saturday, March 25, 2023

बसंत और पलाश (कुण्डलिया)

कुण्डलिया छंद


दहके झूम पलाश सब, रतनारे हों आज।
मानो खेलन फाग को, आया है ऋतुराज।
आया है ऋतुराज, चाव में मोद मनाता।
संग खेलने फाग, वधू सी प्रकृति सजाता।
लता वृक्ष सब आज, नये पल्लव पा महके।
लख बसंत का साज, हृदय रसिकों के दहके।।

शाखा सब कचनार की, करने लगी धमाल।
फागुन की मनुहार में, हुई फूल के लाल।
हुई फूल के लाल, बैंगनी और गुलाबी।
आया देख बसंत, छटा भी हुई शराबी।
'बासुदेव' है मग्न, रूप जिसने यह चाखा।
जलती लगे मशाल, आज वन की हर शाखा।।

हर पतझड़ के बाद में, आती सदा बहार।
परिवर्तन पर जग टिका, हँस के कर स्वीकार।
हँस के कर स्वीकार, शुष्क पतझड़ की ज्वाला।
चाहो सुख-रस-धार, पियो दुख का विष-प्याला।
कहे 'बासु' समझाय, देत शिक्षा हर तरुवर।
सेवा कर निष्काम, जगत में सब के दुख हर।।

कागज की सी पंखुड़ी, संख्या बहुल पलास।
शोभा सभी दिखावटी, थोड़ी भी न सुवास।
थोड़ी भी न सुवास, वृक्ष पे पूरे छाते।
झड़ के यूँ ही व्यर्थ, पैर से कुचले जाते।
ओढ़ें झूठी आभ, बनें बैठे ये दिग्गज।
चमके ज्यों बिन लेख, साफ सुथरा सा कागज।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
14-03-2017

Wednesday, March 15, 2023

ग़ज़ल (मैं उजाले की लिए चाह)

बह्र:- 2122  1122  1122  22

मैं उजाले की लिए चाह सफ़र पर निकला,
पर अँधेरों में भटकने का मुकद्दर निकला।

जो दिखाता था सदा बन के मेरा हमराही,
मेरी राहों का वो सबसे बड़ा पत्थर निकला।

दोस्त कहलाते जो थे उन पे रहा अब न यकीं,
आजमाया जिसे भी, जह्र का खंजर निकला।

पास जिसके भी गया प्रीत का दरिया मैं समझ,
पर अना में ही मचलता वो समंदर निकला।

कारवाँ ज़ीस्त की राहों का मैं समझा था जिसे,
नफ़रतों से ही भरा बस वो तो लश्कर निकला।

जीत के जो भी यहाँ आया था रहबर बन के,
सिर्फ अदना सा हुकूमत का वो चाकर निकला।

दोस्तों पर था बड़ा नाज़ 'नमन' को हरदम,
काम पड़ते ही हर_इक आँख बचा कर निकला।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-06-19

Friday, March 10, 2023

छंदा सागर (गुरु छंदाएँ)

                        पाठ - 08

छंदा सागर ग्रन्थ

"गुरु छंदाएँ"

इसके पिछले पाठ में हमने वृत्त छंदाओं का विस्तारपूर्वक अध्ययन किया। इस पाठ में हम गुरु छंदाओं पर प्रकाश डालेंगे। पंचम पाठ "छंद के घटक - छंदा" में गुरु छंदा की परिभाषा दी गई है। गुरु छंदाएँ वाचिक, मात्रिक, वर्णिक तीनों स्वरूप में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। अतः इस पाठ में भी वृत्त छंदाओं की तरह तीनों स्वरूप की छंदाएँ दी गई हैं। साथ ही अंत में लघु वृद्धि की भी अलग से छंदाएँ दी गई हैं।

वर्णिक स्वरूप की गुरु छंदाओं में रचना सपाट होती है क्योंकि उनमें गुरु वर्ण सदैव दीर्घ रहता है। इसे शास्वत दीर्घ के रूप में नहीं तोड़ा जा सकता। मात्रिक स्वरूप में इन पर रचना बहुत ही लोचदार और लययुक्त होती है। हिंदी मात्रिक छंदों की संरचना समकल पर आधारित है जिनमें कल संयोजन पर बल दिया जाता है न कि लघु गुरु के क्रम पर। छठे पाठ में समकलों की विस्तृत व्याख्या की गई है जो कि मात्रिक गुरु छंदाओं का आधार है। मात्रिक स्वरूप में रचना करते समय चौकल, अठकल और छक्कल का कल संयोजन आवश्यक है न कि लघु और दीर्घ कहाँ और कैसे गिर रहे हैं। वाचिक स्वरूप में शास्वत दीर्घ यानी एक शब्द में साथ साथ आये दो लघु को गुरु वर्ण माना जाता है।

गुरु छंदाओं के संदर्भ में वाचिक में हम गुरु वर्ण को दो लघु में तोड़ सकते हैं जो एक शब्द में भी हो सकते हैं अथवा दो शब्द में भी पर इनमें मात्रा पतन के नियम सामान्य नियम से भिन्न हैं। वैसे तो गुरु छंदाओं में मात्रा पतन मान्य नहीं है, पर यदि 'उगाल' वर्ण (21) के पश्चात एक अक्षरी गुरु शब्द जैसे का, की, है, में, मैं, वे आदि हैं तो उन्हें लघु के रूप में लिया जा सकता है। जैसे 'राम की माया राम ही जाने' में 'की' 'ही' को लघु उच्चरित करते हुए 2222*2 माना जा सकता है। एक अक्षरी संयुक्ताक्षर शब्द जैसे क्या, क्यों की मात्रा नहीं गिराई जा सकती। 

एक मीबम छंदा (2222*3  222) का मेरा द्विपदी मुक्ता देखें जिसमें कई स्थान पर मात्रा पतन है पर लय भटकी हुई नहीं है। 

"उसके हुस्न की' आग में' जलते दिल को चैन की' साँस मिले,
होश को' खो के जोश में' जब भी वह आगोश में' आए तो।"

मीबम में तीन अठकल और एक छक्कल है। ऐसा मात्रा पतन अठकल या छक्कल में एक बार ही होना चाहिए।

अब हम गुरु छंदाओं की संरचना करते हैं। गुरु छंदाओं में अठकल (2222) को आधार माना गया है इसलिए छंदाओं का नामकरण उसी के अनुसार है। साथ ही छक्कल आधारित छंदाएँ भी हैं।

(1) 2222 = मीका, मीकण (अखण्ड छंद), मीकव (तिन्ना छंद)
22221 = मींका, मींकण, मींकव

(2) 2222 2 = मीगा, मीगण, मीगव (सम्मोहा छंद)
2222 21 = मीगू, मीगुण, मीगुव

(3) 2222 22 = मीगी, मीगिण, मीगिव (विद्युल्लेखा,शेषराज छंद)
2222  22 +1 = मीगिल, मीगीलण, मीगीलव

(4) 2222  222 = मीमा, मीमण (मानव छंद),
मीमव (शीर्षा/शिष्या छंद)
2222  2221 = मीमल, मीमालण, मीमालव

(5) 2222*2 = मीदा, मीदण, मीदव
2222, 2222 = मीधव (विद्युन्माला छंद)
2222*2 + 1= मीदल, मीदालण, मीदालव

(6) 2222*2  2 = मीदग, मीदागण, मीदागव
2222*2  21 = मिदगू, मीदागुण (तमाल छंद), मीदागुव
2222 2, 2222 2 = मीगध, मीगाधण, मीगाधव
2222 2, 2222 2 +1 = मीगाधल, मीगधलण, मीगधलव
2222 21, 2222 21  = मीगुध, मीगूधण, मीगूधव

(7) 2222*2  22 = मिदगी, मीदागिण, मीदागिव (शोभावती छंद)
2222*2  22 +1 = मीदागिल, मिदगीलण, मिदगीलव

(8) 2222*2  222 = मीदम, मीदामण, मीदामव
2222*2  2221 = मीदामल, मीदमलण, मीदमलव

(9) 2222*3 = मीबा, मीबण, मीबव
 2222*3 + 1 = मीबल, मीबालण, मीबालव
2222 22, 2222 22 = मीगिध, मीगीधण, मीगीधव
2222 22, 2222 22 +1 = मीगीधल, मीगिधलण, मीगिधलव
2222 22+1, 2222 22+1 = मीगींधा, मीगींधण, मीगींधव

(10) 2222*3  2 = मीबग, मीबागण, मीबागव
2222*3 21 = मिबगू, मीबागुण, मीबागुव

(11) 2222*3  22 = मिबगी, मीबागिण, मीबागिव
2222*3  22 +1 = मीबागिल, मिबगीलण, मिबगीलव
2222  222, 2222  222 = मीमध, मीमाधण, मीमाधव
2222  222, 2222  222 +1 = मीमाधल, मीमधलण, मीमधलव
2222  2221, 2222  2221 = मीमंधा, मीमंधण, मीमंधव

(12) 2222*3  222 = मीबम, मीबामण, मीबामव
2222*3  2221 = मीबामल, मीबमलण, मीबमलव
2222*2, 2222 222 = मीदंमिम, मीदंमीमण, मीदंमीमव (सारंगी छंद)
(दं संकेतक ईमग गुच्छक को द्विगुणित भी कर रहा है तथा वहाँ पर यति भी दर्शा रहा है।)

(13) 2222*4 = मीचा, मीचण, मीचव
2222*4 + 1= मीचल, मीचालण, मीचालव
2222*2, 2222*2  = मीदध, मीदाधण, मीदाधव
2222*2, 2222*2 + 1 = मीदाधल, मीदधलण, मीदधलव
2222*2 + 1, 2222*2 + 1 = मीदालध, मीदलधण, मीदलधव
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केवल छक्कल आधारित छंदाएँ:-

222*2 = मादा, मादण, मादव

2221*2 = मंदा, मंदण (सुलक्षण छंद), मंदव

2221, 2221 =  मंधव  = (वापी छंद)

222*3 = माबा, माबण, माबव

222*4 = माचा, माचण, माचव
222*2, 222*2  = मादध, मदधण, मदधव (विद्याधारी छंद)
222*2 + 1, 222*2 + 1 = मदलध, मादलधण, मादलधव
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उपरोक्त छंदाओं की मात्रा बाँट के विषय में प्रमुखता इस बात की है कि 4 से विभाजित छंदाओं की मात्रा जैसे 2*4, 2*6, 2*10, 2*14 आदि में चौकल अठकल का कोई भी संभावित क्रम लिया जा सकता है। 4 से विभाजन के बाद यदि 2 शेष बचता है तो यह छंदाओं के अंत में ही आयेगा, मध्य में नहीं। एक मीदामण (2222*2  222) छंदा की मात्रा बाँट ध्यान पूर्वक देखें -

8*2 + 4 + 2; 
8 + 4*3 + 2;
4 + 8*2 + 2;
4 + 8 + 4*2 + 2;
4*2 + 8 + 4 + 2;
4*3 + 8 + 2;
4*5 + 2;

इस छंदा की 7 संभावित मात्रा बाँट है और रचना के किसी भी पद में कोई सी भी एक बाँट प्रयुक्त की जा सकती है।

(विशेष:- चतुर्थ पाठ में बताये गये संख्यावाचक संकेतकों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें और देखें कि इन छंदाओं में उन संकेतक का किस प्रकार प्रयोग किया गया है।)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Saturday, March 4, 2023

ताँका विधान

ताँका कविता कुल पाँच पंक्तियों की जापानी विधा की रचना है। इसमें प्रति पंक्ति निश्चित संख्या में वर्ण रहते हैं। प्रति पंक्ति निम्न क्रम में वर्ण रहते हैं।

प्रथम पंक्ति - 5 वर्ण
द्वितीय पंक्ति - 7 वर्ण
तृतीय पंक्ति - 5 वर्ण
चतुर्थ पंक्ति - 7 वर्ण
पंचम पंक्ति - 7 वर्ण

(वर्ण गणना में लघु, दीर्घ और संयुक्ताक्षर सब मान्य हैं। अन्य जापानी विधाओं की तरह ही ताँका में भी पंक्तियों की स्वतंत्रता निभाना अत्यंत आवश्यक है। हर पंक्ति अपने आप में स्वतंत्र हो परंतु कविता को एक ही भाव में समेटे अग्रसर भी करती रहे।)

बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया 

Monday, February 27, 2023

चौबोला छंद "मन की पीड़ा"

पीड़ हृदय की, किससे कहूँ।
रुदन अकेला, करके सहूँ।।
शून्य ताकता, घर में रहूँ।
खुद पर पछता, निश दिन दहूँ।।

यौवन में जब, अंधा हुआ।
मदिरा पी पी, खेला जुआ।।
राड़ मचा कर, सबसे रखी।
कभी न घर की, पीड़ा लखी।।

दारा सुत सब, न्यारे हुए।
कौन भाव अब, मेरे छुए।।
बड़ा अकेला, अनुभव करूँ।
पड़ा गेह में, आहें भरूँ।।

संस्कारों में, बढ कर पला।
परिपाटी में, बचपन ढला।।
कूसंगत में, कैसे बहा।
सोच सोच अब, जाऊँ दहा।।
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चौबोला छंद विधान -

चौबोला छंद 15 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। यह तैथिक जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 पद होते हैं और छंद के दो दो या चारों पद सम तुकांत होने चाहिए। इन 15 मात्राओं की मात्रा बाँट:- अठकल, चौकल+1S (लघु गुरु वर्ण) है। यति 8 और 7 मात्राओं पर है। अठकल में 4 4 या 3 3 2 हो सकते हैं। चौकल में 22, 211, 112 या 1111 हो सकते हैं। 
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
08-06-22