कण्ठी छंद / यशोदा छंद
हुआ सवेरा।
मिटा अँधेरा।।
सुषुप्त जागो।
खुमार त्यागो।।
सराहना की।
बड़प्पना की।।
न आस राखो।
सुशान्ति चाखो।।
करो भलाई।
यही कमाई।।
सदैव संगी।
कभी न तंगी।।
कुपंथ चालो।
विपत्ति पालो।।
सुपंथ धारो।
कभी न हारो।।
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मिटा अँधेरा।।
सुषुप्त जागो।
खुमार त्यागो।।
सराहना की।
बड़प्पना की।।
न आस राखो।
सुशान्ति चाखो।।
करो भलाई।
यही कमाई।।
सदैव संगी।
कभी न तंगी।।
कुपंथ चालो।
विपत्ति पालो।।
सुपंथ धारो।
कभी न हारो।।
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कण्ठी छंद / यशोदा छंद विधान -
"जगाग" वर्णी।
सु-छंद 'कण्ठी'।।
"जगाग" = जगण गुरु गुरु (121 2 2) = 5 वर्ण की वर्णिक छंद।
यशोदा छंद" के नाम से भी यह छंद जानी जाती है, जिसका सूत्र -
यशोदा छंद विधान -
रखो "जगोगा" ।
रचो 'यशोदा'।।
"जगोगा" = जगण, गुरु गुरु
(121 22) = 5 वर्ण की वर्णिक छंद, 4 चरण,
2-2 चरण समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-02-19
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