Saturday, February 2, 2019

ग़ज़ल (बना है बोझ ये जीवन कदम)

ग़ज़ल (बना है बोझ ये जीवन कदम)

बह्र:- (1212  1122)*2

बना है बोझ ये जीवन कदम थमे थमे से हैं,
कमर दी तोड़ गरीबी बदन झुके झुके से हैं।

लिखा न एक निवाला नसीब हाय ये कैसा,
सहन ये भूख न होती उदर दबे दबे से हैं।

पड़ेंं दिखाई नहीं अब कहीं भी आस की किरणें,
गगन में आँख गड़ाए नयन थके थके से हैं।

मिली सदा हमें नफरत करे ज़लील ज़माना,
हथेली कान पे रखते वचन चुभे चुभे से हैं।

दिखींं कभी न बहारें मिले सदा हमें पतझड़,
मगर हमारे मसीहा कमल खिले खिले से हैं।

छिपाएँ कैसे भला अब हमारी मुफ़लिसी जग से,
हमारे तन से जो लिपटे वसन फटे फटे से हैं।

सदा ही देखते आए ये सब्ज बाग घनेरे,
'नमन' तुझे है सियासत सपन बुझे बुझे से हैं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-10-2016

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