Friday, March 8, 2019

कामरूप छंद "आज की नारी"

कामरूप छंद / वैताल छंद

नारी न अबला, पूर्ण सबला, हो गई है आज।
वह भव्यता से, दक्षता से, सारती हर काज।।
हर क्षेत्र में रत, कर्म में नत, आज की ये नार।
शासन सँभाले, नभ खँगाले,सामती घर-बार।।

होती न विचलित, वो समर्पित, आत्मबल से चूर।
अवरोध जग के, कंट मग के, सब करे वह दूर।।
धर आस मन में, स्फूर्ति तन में, धैर्य के वह साथ।
आगे बढ़े नित, चित्त हर्षित, रख उठा कर माथ।।

परिचारिका बन, जीत ले मन, कर सके हर काम।
जग से जुड़ी वह, ताप को सह, अरु कमाये नाम।।
जो भी करे नर, वह सके कर, सद्गुणों की खान।
सच्ची सहायक, मोद दायक, पूर्ण निष्ठावान।।

पीड़ित रही हो, दुख सही हो, खो सदा अधिकार।
हरदम दिया है, सब किया है, फिर बनी क्यों भार।।
कहता 'नमन' यह, क्यों दमन सह, अब रहें सब नार।
शोषण तुम्हारा, शर्मशारा, ये हमारी हार।।

कामरूप छंद / वैताल छंद विधान

बासुदेव अग्रवाल 'नमन',
तिनसुकिया
08-10-17

1 comment:

  1. रचना के माध्यम से आपके सराहनीय विचारों को पढ़कर मेरा नारी मन भी आह्लादित हुआ। उत्तम रचना हेतु बधाई।

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