म्हारो भारत घणो है चोखो,
सगळै जग सै यो है अनोखो।
ई री शोभा ताराँ सै झिलमिल,
जस गावाँ आपाँ सब हिलमिल।
नभ मँ भाँत भाँत रा तारा,
नया नया रंग रा है सारा।
शोभा री चूनड़ मँ चमकै,
वा चूनड़ अंबर मँ दमकै।
कीरत रो तारो ध्रुवतारो है,
मीठो अनूठो शक्करपारो है।
अंबर मँ अटल बिराजै है,
सगळां सै अलग ही छाजै है।
सप्तॠषि है आन बान रा,
नखत्र है प्राचीन मान रा।
है बल बुद्धि रा राशि बारा,
ज्ञान धर्म रा ग्रह है सारा।
कीरत कै फेरी सगळा काडै,
अम्बर मँ शोभा थारी मांडै।
जग रो जोशी तू पैल्यां थो,
सगळो जग थारै गैल्याँ थो।
थारो इतिहास अमर है,
थारा जोधा वीर जबर है।
धाक सै वाँ री वैरी थर्रावै,
धजा आज भी वाँ री फर्रावै।
थो दिल्ली रो पीथो रण बंको,
दक्खण मँ शिवा रो बाज्यो डंको।
रच्छक राणा मेवाड़ी आन रा,
छत्रशाल बुन्देली शान रा।
रणबांकुड़ी झांसी री राणी,
नहीं आज तक जा री साणी।
नेताजी पूरब सै ठाकर,
पच्छम सै भगत सींघ धाकड़।
जोधाँ री बाताँ जिसी जबर,
भगतां री कोनी कमतर।,
जस भगतां रो नाभो गायो,
मस्त कबीरो अलख जगायो।
धन धन विष पी मीरा बाई,
खुवा खीचड़ो करमा बाई।
चन्दन टीको लगार तुलसी,
भात मोकळो भरार नरसी।
थारो ठीयो अलग अनोखो,
दुनिया सै न्यारो बोळो चोखो।
चोड़ी छाती और माथो ऊँचो,
कशमीरी केशरियो पेचो।
मार पलाथी उत्तर मँ बैठ्या,
शिवजी रा सुसरोजी लूँठा।
रखवाली भारत की राखै,
नदियाँ मँ मीठो पाणी नाखै।
दक्खण मँ सागरियो खारो,
कोनी दै चालण कोई रो सारो।
धाड़ाँ मारै गरज गरज कै,
बैर्याँ नै राखै परै बरज कै।
गंगु यमनु जिसि भैणां दो दो,
पाप्याँ नै तारै पापाँ नै धो धो।
खेतां नै सींचै मीठै पाणी सै,
जसड़ो गावै कलकल वाणी सै।
छ बेट्यां दो दो म्हीनां मँ आवै,
नई नई बे चीजां नै ल्यावै।
रूप सींगार सगळां रो न्यारो,
हर मौसम रो प्यारो प्यारो।
भाँत भाँत रो धर्म रैवणो,
बोली खाणो और पैरणो।
सगळां का है अलग बारणा,
पर एक भाइपो एक धारणा।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
16-05-2016
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