Sunday, July 4, 2021

ग़ज़ल (जीने की इस जहाँ में दुआएँ मुझे न दो)

बह्र:- 221  2121  1221  212

जीने की इस जहाँ में दुआएँ मुझे न दो,
और बिन बुलाई सारी बलाएँ मुझे न दो।

मर्ज़ी तुम्हारी दो या वफ़ाएँ मुझे न दो,
पर बद-गुमानी कर ये सज़ाएँ मुझे न दो।

सुलगा हुआ हूँ पहले से भड़काओ और क्यों,
नफ़रत की कम से कम तो हवाएँ मुझे न दो।

वाइज़ रहो भी चुप ज़रा, बीमार-ए-इश्क़ हूँ,
कड़वी नसीहतों की दवाएँ मुझे न दो।

तुम ही बता दो झेलने हैं और कितने ग़म,
ये रोज़ रोज़ इतनी जफ़ाएँ मुझे न दो।

तुम दूर मुझ से जाओ भले ही ख़ुशी ख़ुशी,
पर दुख भरी ये काली निशाएँ मुझे न दो।

सुन ओ 'नमन' तुम्हारा सनम क्या है कह रहा,
वापस न आ सकूँ वो सदाएँ मुझे न दो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-01-2019

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