Monday, July 26, 2021

पंचिक - (विविध-2)

ढोकलास गाँव का है ढोकला ये हलवाई,
जैसा नाम वैसा रूप लगे ढोलकी सा भाई।
सिर के सफेद केश मोहते,
नारियल की चटणी ज्यों सोहते,
चलै तन ज्यों हो ये ही गाँव का जंवाई।।
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बाकी सब गढणियाँ गढ तो चित्तौडगढ़,
उपजे थे वीर यहाँ एक से ही एक बढ।
कुंभा की हो ललकार,
साँगा की या तलवार,
देशवासी वैसे बणो गाथा वाँ की पढ पढ।।
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लक्ष्मी बाई जी की न्यारी नगरी है झाँसी,
नाम से ही गद्दारों को दिख जाती फाँसी।
राणी जी की ऐसी धाक,
अंग्रेजों की नीची नाक,
सुन के फिरंगियों की चल जाती खाँसी।।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-10-2020

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