क्षणिका (1)
जिंदगी एक
सुलगा हुआ अलाव
जिसमें इंसान
उम्र की आग
कुरेद कुरेद
तपता जाता है,
और अलाव
ठंडा पड़ता पड़ता
बुझ जाता है।
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क्षणिका (2)
जीवन
एक अनबूझ पहेली
जिसका उत्तर
ढूंढते ढूंढते,
इंसान बूढ़ा हो
मर जाता है
पर यह पहेली
वहीं की वहीं।
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क्षणिका (3)
जीवन
एक नन्ही गेंद!
कोई फेंके,
कोई हवा में उड़ाये,
कई लपकने को तैयार।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-06-19
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