Thursday, July 22, 2021

विविध मुक्तक -9

क्षणिक सुखों में खो कर पहले, नेह बन्धनों को त्यज भागो,
माथ झुका फिर स्वांग रचाओ, नीत दोहरी से तुम जागो,
जीम्मेदारी घर की केवल, नारी पर नहिँ निर्भर रहती,
पुरुष प्रकृति ने तुम्हें बनाया, ये अभिमान हृदय से त्यागो।

(समान सवैया)
************

अपनी मक्कारियों पे जो भी उतर जाएगा,
दुश्मनी पाल के जो हद से गुज़र जाएगा,
याद वो रख ले कि चट्टान बने हम हैं खड़े,
जो भी टकराएगा हम से वो बिखर जाएगा।

2122 1122 1122 22
**********

नफ़रतें दूर कर के, मुझको अपना बना ले;
लौ मेरे प्यार की तू, मन में अपने जगा ले।
जह्र के घूँट कितने, और बाकी पिलाना;
जाम-ए-उल्फ़त पिला के, दिल में अब तो बसा ले।

(2122  122)*2
***************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
05-01-18

No comments:

Post a Comment