प्रीत की है तेज धार, पैनी जैसे तलवार,
इसपे कदम आगे, सोच के बढ़ाइए।
मुख पे हँसी है छाई, दिल में जमी है काई,
प्रीत को निभाना है तो, मैल ये हटाइए।
छोटा-बड़ा ऊँच-नीच, चले नहीं प्रीत बीच,
पहले समस्त ऐसे, भेद को मिटाइए।
मान अपमान भूल, मन में रखें न शूल,
प्रीत में तो शीश को ही, हाथ में सजाइए।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
03-06-2017
इसपे कदम आगे, सोच के बढ़ाइए।
मुख पे हँसी है छाई, दिल में जमी है काई,
प्रीत को निभाना है तो, मैल ये हटाइए।
छोटा-बड़ा ऊँच-नीच, चले नहीं प्रीत बीच,
पहले समस्त ऐसे, भेद को मिटाइए।
मान अपमान भूल, मन में रखें न शूल,
प्रीत में तो शीश को ही, हाथ में सजाइए।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
03-06-2017