Sunday, November 14, 2021

गुर्वा (मानव)

भगवन भी पछताये,
शक्तिमान रच मानव,
सृष्टि नष्ट करता दानव।
***

ओस कणों सा है मानव,
संघर्षों की धूप,
अब अस्तित्व करे तांडव।
***

धैर्य धीर धर के निर्लिप्त,
कुटिल हृदय झुँझलाएँ,
कमल पंक में इठलाएँ।
***

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-07-20

Friday, November 12, 2021

चामर छंद "मुरलीधर छवि"

गोप-नार संग नन्दलालजू बिराजते।
मोर पंख माथ पीत वस्त्र गात साजते।
रास के सुरम्य गीत गौ रँभा रँभा कहे।
कोकिला मयूर कीर कूक गान गा रहे।।

श्याम पैर गूँथ के कदंब के तले खड़े।
नील आभ रत्न बाहु-बंद में कई जड़े।।
काछनी मृगेन्द्र लंक में लगे लुभावनी।
श्वेत पुष्प माल कंठ में बड़ी सुहावनी।।

शारदीय चन्द्र की प्रशस्त शुभ्र चांदनी।
दिग्दिगन्त में बिखेरती प्रभा प्रभावनी।।
पुष्प भार से लदे निकुंज भूमि छा रहे।
मालती पलाश से लगे वसुंधरा दहे।।

नन्दलाल बाँसुरी रहे बजाय चाव में।
गोपियाँ समस्त आज हैं विभोर भाव में।।
देव यक्ष संग धेनु ग्वाल बाल झूमते।।
'बासुदेव' ये छटा लखे स्वभाग्य चूमते।।
=================
चामर छंद विधान -

"राजराजरा" सजा रचें सुछंद 'चामरं'।
पक्ष वर्ण छंद गूँज दे समान भ्रामरं।।

"राजराजरा" = रगण जगण रगण जगण रगण
पक्ष वर्ण = पंद्रह वर्ण।

(गुरु लघु ×7)+गुरु = 15 वर्ण

चार चरण दो- दो  या चारों चरण समतुकान्त।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
27-12-16

Thursday, November 11, 2021

मुक्तक (पर्व विशेष-2)

(रक्षा बंधन)

आज राखी आज इस त्योहार की बातें करें।
भाई बहनों के सभी हम प्यार की बातें करें।
नाम बहनों के लिखें हम साल का प्यारा ये दिन।
आज तो बहनों के ही मनुहार की बातें करें।।

(2122*3  212)
*********


(दशहरा के पावन अवसर पर)

आज दिन रावण मरा था, ये कथा मशहूर जग में,
दिन इसी से दशहरे की, रीत का है नूर जग में,
हम भलाई की बुराई पे मनाएं जीत मिल कर,
है पतन उनका सुनिश्चित, हों जो मद में चूर जग में।

(2122*4)

लोभ बुराई का दुनिया से, हो विनष्ट जब वास,
राम राज्य का लोगों को हो, मन में तब आभास,
विजया दशमी पर हम प्रण कर, अच्छाई लें धार,
धरा पाप से हो विमुक्त जब, वो सच्चा उल्लास।

(सरसी)
****   ***   ***

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-10-2016

Monday, November 8, 2021

ग़ज़ल (देखली है शानो शौकत)

 ग़ज़ल (देखली है शानो शौकत)

बहर:- 2122  2122  212

देखली है शान-ओ-शौकत आपकी,
देखनी है अब हक़ीक़त आपकी।

झेलते आए हैं जिसको अब तलक,
दी हुई सारी ही आफ़त आपकी।

ट्वीटरों पर लम्बी लम्बी झाड़ते,
जानते सारे शराफ़त आपकी।

दुश्मनों की फ़िक्र नफ़रत देश से,
अब न भाती ये तिज़ारत आपकी।

खानदानी देश की संसद समझ,
हो गई काफ़ी सियासत आपकी।

हर जगह मासूमियत के चर्चे हैं,
हाय अल्लाह क्या नज़ाकत आपकी।

वक़्त अब भी कर दिखादें कुछ 'नमन',
इससे ही बच जाये इज्जत आपकी।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-11-2018

Sunday, November 7, 2021

ग़ज़ल (हर सू बीमारी नहीं तो)

बह्र:- 2122  2122  2122  212

हर सू बीमारी नहीं तो और क्या है दोस्तो,
ज़िंदगी भारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

रोग से रिश्वत के कोई अब नहीं महफ़ूज़ है,
ये महामारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

सर छुपाने को न छत है, लोग भूखे सो रहे,
मुफ़लिसी ज़ारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

नारियाँ अस्मत को बेचें, भीख बच्चे माँगते,
घोर बेकारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

रहनुमा जिनको बनाया दुह रहे जनता को वे,
उनकी बदकारी नहीं तो और क्या है दोस्तो। 

जो गया है बीत उसको भूल हम आगे बढ़ें,
ये समझदारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

जो वतन को भूल दुश्मन से मिलाये सुर 'नमन',
उनकी मक्कारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
8-9-19

Thursday, October 28, 2021

द्रुतविलम्बित छंद "गोपी विरह"

 द्रुतविलम्बित छंद 

"गोपी विरह"

मन बसी जब से छवि श्याम की।
रह गई नहिँ मैं कछु काम की।
लगत वेणु निरन्तर बाजती।
श्रवण में धुन ये बस गाजती।।

मदन मोहन मूरत साँवरी।
लख हुई जिसको अति बाँवरी।
हृदय व्याकुल हो कर रो रहा।
विरह और न जावत ये सहा।।

विकल हो तकती हर राह को।
समझते नहिँ क्यों तुम चाह को।
उड़ गया मन का सब चैन ही।
तृषित खूब भये दउ नैन ही।।

मन पुकार पुकार कहे यही।
तु करुणाकर जानत क्या सही।
दरश दे कर कान्ह उबार दे।
नयन-प्यास बुझा अब तार दे।।
===============

द्रुतविलम्बित छंद विधान -

"नभभरा" इन द्वादश वर्ण में।
'द्रुतविलम्बित' दे धुन कर्ण में।।

नभभरा = नगण, भगण, भगण और रगण। (12 वर्ण की वर्णिक छंद)
111  211  211  212

दो दो चरण समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
09-01-2019

Monday, October 25, 2021

ताँका विधा "हार या जीत"

 ताँका विधा (हार या जीत)

ताँका विधान - ताँका कविता कुल पाँच पंक्तियों की जापानी विधा की रचना है। इसमें प्रति पंक्ति निश्चित संख्या में वर्ण रहते हैं। प्रति पंक्ति निम्न क्रम में वर्ण रहते हैं।

प्रथम - 5 वर्ण
द्वितीय - 7 वर्ण
तृतीय - 5 वर्ण
चतुर्थ - 7 वर्ण
पंचम - 7 वर्ण

(वर्ण में लघु, दीर्घ और संयुक्ताक्षर सब मान्य हैं।)

हार या जीत
तटस्थ रह मीत
रात से भोर, 
नीरवता से शोर
आते जाते, क्यों भीत?
**

कुछ तू सुना
कुछ मैं सुनाता हूँ
मन की बात,
दोनों की अनकही
भावनाओं में बही।
**

छलनी मन
आँसुओं का भूचाल
पर रूमाल,
अपने की दिलासा
बंधाती नव-आशा।
**

हम थे आग
इश्क की शुरुआत
हुई इंतिहा,
खत्म हुये जज्बात
बची केवल राख।
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-06-20

Friday, October 22, 2021

ग़ज़ल (बोझ लगने लगी जवानी है)

 ग़ज़ल (बोझ लगने लगी जवानी है)

बह्र:- 2122  1212  22

एक मज़ाहिया मुसलसल

बोझ लगने लगी जवानी है,
व्याह करने की मन में ठानी है।

सेहरा बाँध जिस पे आ जाऊँ,
पास में बस वो घोड़ी कानी है।

देख के शक़्ल दूर सब भागें,
फिर भी दुल्हन कोई मनानी है।

कैसी भी छोकरी दिला दे रब,
कितनी ज़हमत अब_और_उठानी है।

एक बस्ती बसे मुहब्बत की,
दिल की दुनिया मेरी विरानी है।

मैं परस्तिश करूँगा उसकी सदा,
जो भी इस दिल की बनती रानी है।

उसके बिन ज़िंदगी में अब तो 'नमन',
सूनी सी रात की रवानी है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-06-18

Wednesday, October 20, 2021

संयुत छंद "फाग रस"

 संयुत छंद 

"फाग रस"

सब झूम लो रस राग में।
मिल मस्त हो कर फाग में।।
खुशियों भरा यह पर्व है।
इसपे हमें अति गर्व है।।

यह मास फागुन चाव का।
ऋतुराज के मधु भाव का।।
हर और दृश्य सुहावने।
सब कूँज वृक्ष लुभावने ।।

मन से मिटा हर क्लेश को।
उर में रखो मत द्वेष को।।
क्षण आज है न विलाप का।
यह पर्व मेल-मिलाप का।।

मन से जला मद-होलिका।
धर प्रेम की कर-तूलिका।।
हम मग्न हों रस रंग में।
सब झूम फाग उमंग में।।
=============

संयुत छंद विधान:-

"सजजाग" ये दश वर्ण दो।
तब छंद 'संयुत' स्वाद लो।।

"सजजाग" = सगण जगण जगण गुरु
112 121 121 2 = 10 वर्ण
चार चरण। दो दो समतुकांत
********************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
09-03-2017

Monday, October 18, 2021

गुर्वा (हवा)

गुर्वा विधा

"हवा"

पूरब में है लाली,
हवा चले मतवाली,
मौक्तिकमय हरियाली।
***

जल तरंग को हवा बजाये,
चिड़ियाँ गाएँ गीत,
प्रकृति दिखाये पग-पग प्रीत।
***

खिली हुई है अमराई,
सनन बहे पुरवाई,
स्वाद चखे नासा मीठा।
***
गुर्वा विधान जानने के लिए यहाँ क्लिक करें ---> गुर्वा विधान

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-07-20

Thursday, October 14, 2021

मत्तगयंद सवैया विधान –

 मत्तगयंद सवैया छंद

मत्तगयंद सवैया छंद 23 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है। अन्य सभी सवैया छंदों की तरह इसकी रचना भी चार चरण में होती है और सभी चारों चरण एक ही तुकांतता के होने आवश्यक हैं।

यह भगण (211) पर आश्रित है, जिसकी 7 आवृत्ति और अंत में दो गुरु वर्ण प्रति चरण में रहते हैं। इसकी संरचना 211× 7 + 22 है।

(211 211 211 211 211 211 211 22 )

सवैया छंद यति बंधनों में बंधे हुये नहीं होते हैं परंतु कोई चाहे तो लय की सुगमता के लिए इसके चरण में क्रमशः12 -11 वर्ण पर 2 यति खंड रख सकता है ।चूंकि यह एक वर्णिक छंद है अतः इसमें गुरु के स्थान पर दो लघु वर्ण का प्रयोग करना अमान्य है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
13-10-21

Wednesday, October 13, 2021

विमलजला छंद "राम शरण"

 विमलजला छंद 
"राम शरण"

जग पेट भरण में।
रत पाप करण में।।
जग में यदि अटका।
फिर तो नर भटका।।

मन ये विचलित है।
प्रभु-भक्ति रहित है।।
अति दीन दुखित है।।
हरि-नाम विहित है।।

तन पावन कर के।
मन शोधन कर के।।
लग राम चरण में।
गति ईश शरण में।।

कर निर्मल मति को।
भज ले रघुपति को।।
नित राम सुमरना।
भवसागर तरना।।
=============

विमलजला छंद विधान -

"सनलाग" वरण ला।
रचलें 'विमलजला'।।

"सनलाग" = सगण नगण लघु गुरु

112  111  12 = 8 वर्ण
चार चरण। दो दो समतुकांत
********************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
20-05-17

Friday, October 8, 2021

वरूथिनी छंद "प्रदीप हो"

 वरूथिनी छंद 

"प्रदीप हो"

प्रचंड रह, सदैव बह, कभी न तुम, अधीर हो।
महान बन, सदा वतन, सुरक्ष रख, सुवीर हो।।
प्रयत्न कर, बना अमर, अटूट रख, अखंडता।
कभी न डर, सदैव धर, रखो अतुल, प्रचंडता।।

निशा प्रबल, सभी विकल, मिटा तमस, प्रदीप हो।
दरिद्र जन , न वस्त्र तन, करो सुखद, समीप हो।।
सुकाज कर, गरीब पर, सदैव तुम, दया रखो।
मिटा विपद, उन्हें सुखद, बना सरस, सुधा चखो।।

हुँकार भर, दहाड़ कर, जवान तुम, बढ़े चलो।
त्यजो अलस, न हो विवस, मशाल बन, सदा जलो।।
अराति गर, उठाय सर, दबोच तुम, उसे वहीं।
धरो पकड़, रखो जकड़, उसे भगन, न दो कहीं।

प्रशस्त नभ, करो सुलभ, सभी डगर, बिना रुके।
रहो सघन, डिगा न मन, बढ़ो युवक, बिना झुके।।
हरेक थल, रहो अटल, विचार नित, नवीन हो।
बढ़ा वतन, छुवा गगन, सभी जगह, प्रवीन हो।।
=====================

वरूथिनी छंद विधान -

"जनाभसन,जगा" वरण, सुछंद रच, प्रमोदिनी।
विराम सर,-त्रयी सजत,  व चार पर, 'वरूथिनी'।।

"जनाभसन,जगा" = जगण+नगण+भगण+सगण+नगण+जगण+गुरु
121  11,1  211  1,12  111,  121  2
सर,-त्रयी सजत = सर यानि बाण जो पाँच की संख्या का भी द्योतक है। सर-त्रयी यानि 5,5,5।

(१९ वर्ण, ४ चरण, क्रमश: ५,५,५,४ वर्ण पर यति, दो-दो चरण समतुकान्त)
***************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
26-01-19

Monday, October 4, 2021

मुक्तक (कोरोना बीमारी - 2)

(1)

करें सामना कोरोना का, जरा न हमको रोना है,
बीमारी ये व्यापक भारी, चैन न मन का खोना है,
संयम तन मन का हम रख कर, दूर रहें अफवाहों से, 
दृढ़ संकल्प सभी का ये हो, रोग पूर्ण ये धोना है।

(ताटंक छंद आधारित)
*********

(2)

यही प्रश्न है अब तो आगे, भूख बड़ी या कोरोना,
करो पेट की चिंता पहले, छोड़ो सब रोना धोना,
संबंधो से धो हाथों को, शायद बच भी हम जाएँ,
मँहगाई बेरोजगार से, तय है सांसों का खोना।

(लावणी छंद आधारित)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
24-04-21

Saturday, October 2, 2021

ग़ज़ल (तूफाँ में चल सको तो)

बह्र:- 221  2121  1221  212

तूफाँ में चल सको तो मेरे साथ तुम चलो।
दुनिया उथल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

सत्ता के नाग फन को उठाए रहे हैं फिर।
इनको कुचल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

बदहाली, भूख में भी सियासत का दौर है।
ढर्रा बदल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

सब जी रहे हैं कल के सुनहरे से ख्वाब में।
गर ला वो कल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

ईमान सब का डिग रहा पैसे के वास्ते।
जो रह अटल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

नेतागिरी यहाँ चले भांडों से स्वांग में।
इससे निकल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

झूठे खिताब-ओ-नाम को पाने में सब लगे।
इन सब से टल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

सेवा करें जो देश की गल गल के बर्फ में।
गर उन सा गल सको तो मेरे साथ तुम चलो।

लफ़्फ़ाजी का ही मंचों पे अब तो बड़ा चलन।
इससे उबल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

निर्बल हैं वर्तमान के हालात में सभी।
यदि बन सबल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

इक क्रांति की लपट की प्रतीक्षा में जग 'नमन'।
दे वो अनल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
28-01-19