Saturday, January 1, 2022

आंग्ल नव-वर्ष दोहे

दोहा छंद


प्रथम जनवरी क्या लगी, काम दिये सब छोड़।
शुभ सन्देशों की मची, चिपकाने की होड़।।

पराधीनता की हमें, जिनने दी कटु पाश।
उनके इस नव वर्ष में, हम ढूँढें नव आश।।

सात दशक से ले रहे, आज़ादी में साँस।
पर अब भी हम जी रहे, डाल गुलामी फाँस।।

व्याह पराया हो रहा, मची यहाँ पर धूम।
अब्दुल्ला इस देश का, नाच रहा है झूम।।

अपनों को दुत्कारते, दूजों से रख चाह।
सदियों से हम भोगते, आये इसका दाह।।

सत्य सनातन छोड़ कर, पशुता से क्यों प्रीत।
'बासुदेव' मन है व्यथित, लख यह उलटी रीत।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
01-01-2019

Tuesday, December 28, 2021

रूपमाला छंद "राम महिमा"

रूपमाला छंद / मदन छंद

राम की महिमा निराली, राख मन में ठान।
अन्य रस का स्वाद फीका, भक्ति रस की खान।
जागती यदि भक्ति मन में, कृपा बरसी जान।
नाम साँचो राम को है, लो हृदय में मान।।

राम को भज मन निरन्तर, भक्ति मन में राख।
इष्ट पे रख पूर्ण आश्रय, मत बढ़ाओ शाख।
शांत करके मन-भ्रमर को, एक का कर जाप।
राम-रस को घोल मन में, दूर हो सब ताप।।

नाम प्रभु का दिव्य औषधि, नित करो उपभोग।
दाह तन मन की हरे ये, काटती भव-रोग।।
सेतु सम है राम का जप, जग समुद्र विशाल।
आसरा इसका मिले तो, पार हो तत्काल।।

रत्न सा जो है प्रकाशित, राम का वो नाम।
जीभ पे इसको धरो अरु, देख इसका काम।।
ज्योति इसकी जगमगा दे, हृदय का हर छोर।
रात जो बाहर भयानक, करे उसकी भोर।।

गीध, शबरी और बाली, तार दीन्हे आप।
आप सुनते टेर उनकी, जो करें नित जाप।।
राम का जप नाम हर क्षण, पवनसुत हनुमान।
सकल जग के पूज्य हो कर, बने महिमावान।।

राम को जो छोड़ थामे, दूसरों का हाथ।
अंत आयेगा निकट जब, कौन देगा साथ।
नाम पे मन रख भरोसा, सब बनेंगे काज।
राम से बढ़कर जगत में, कौन दूजो आज।।
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रूपमाला छंद / मदन छंद विधान -

रूपमाला छंद जो कि मदन छंद के नाम से भी जाना जाता है, 24 मात्रा प्रति पद का सम-पद मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक पद में 14 और 10 के विश्राम से 24 मात्राएँ और पदान्त गुरु-लघु से होता है। यह चार पदों का छंद है, जिसमें दो-दो पदों पर तुकान्तता होती है। 

इसकी मात्रा बाँट 3 सतकल और अंत ताल यानी गुरु लघु से होती है। इस छंद में सतकल की मात्रा बाँट 3 2 2 है जिसमें द्विकल के दोनों रूप (2, 11) और त्रिकल के तीनों रूप (2 1, 1 2, 111) मान्य है। अतः निम्न बाँट तय होती है:
3 2 2  3 2 2 = 14 मात्रा और

3 2 2  2 1 = 10 मात्रा

इस छंद को 2122  2122, 2122  21 के बंधन में बाँधना उचित नहीं। प्रसाद जी का कामायनी के वासना सर्ग का उदाहरण देखें।

स्पर्श करने लगी लज्जा, ललित कर्ण कपोल,
खिला पुलक कदंब सा था, भरा गदगद बोल।
किन्तु बोली क्या समर्पण, आज का हे देव!
बनेगा-चिर बंध नारी, हृदय हेतु सदैव।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
29-08-2016

Saturday, December 25, 2021

हाइकु (नारी)

नारी की पीड़ा
दहेज रूपी कीड़ा
कौन ले बीड़ा?
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दहेज तुला
एक पल्ले समाज
दूजे अबला।
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पंचाली नार
पुरुष धर्मराज
चढ़ाते दाव।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-07-19

Sunday, December 12, 2021

शक्ति छंद "फकीरी"

शक्ति छंद 

फकीरी हमारे हृदय में खिली।
बड़ी मस्त मौला तबीयत मिली।।
कहाँ हम पड़ें और किस हाल में।
किसे फ़िक्र हम मुक्त हर चाल में।।

वृषभ से पड़ें हम रहें हर कहीं।
जहाँ मन, बसेरा जमा लें वहीं।।
बना हाथ तकिया टिका माथ लें।
उड़ानें भरें नींद को साथ लें।।

मिले जो उसीमें गुजारा करें।
मिले कुछ न भी तो न आहें भरें।।
कमंडल लिये हाथ में हम चलें।
इसी के सहारे सदा हम पलें।

जगत से न संबंध कुछ भी रखें।
स्वयं में रमे स्वाद सारे चखें।।
सुधा सम समझ के गरल सब पिएँ।
रखें आस भगवान की बस जिएँ।।
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शक्ति छंद विधान -

यह (122 122 122 12) मापनी पर आधारित मात्रिक छंद है। चूंकि यह एक मात्रिक छंद है अतः गुरु (2) वर्ण को दो लघु (11) में तोड़ने की छूट है। दो दो चरण समतुकांत होने चाहिए।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
12-02-19

Friday, December 10, 2021

ग़ज़ल (पास बैठे तो हैं पर आँख)

बह्र: 2122 1122 1122  22

पास बैठे तो हैं पर आँख उठाते भी नहीं,
मुझसे क्या उन को शिकायत है बताते भी नहीं।

झूठे वादों से रिझा मुँह को छुपाते भी नहीं,
ढीट नेता ये बड़े भाग के जाते भी नहीं।

ख्वाब झूठे जो दिखा वोट बटोरे हम से,
ऐसे मक्कार कभी दिल में समाते भी नहीं।

रंग गिरगिट से बदलते हैं जो मतलब के लिए,
लोग जो दिल से खरे उनको वो भाते भी नहीं।

ज़ख्म गहरे जो मिले ज़ीस्त से, रह रह रिसते,
दर्द सहते हैं तो क्या! अश्क़ बहाते भी नहीं।

सामने रहके भी महबूब सितमगर मेरे,
पास आये न सही पास बुलाते भी नहीं।

एक चहरे पे चढ़ा लेते जो दूजा चहरा,
भेष रहबर का 'नमन' राह दिखाते भी नहीं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
24-08-18

Tuesday, December 7, 2021

पुण्डरीक छंद "राम-वंदन"

मेरे तो हैं बस राम एक स्वामी।
अंतर्यामी करतार पूर्णकामी।।
भक्तों के वत्सल राम चन्द्र न्यारे।
दासों के हैं प्रभु एक ही सहारे।।

माया से आप अतीत शोक हारी।
हाथों में दिव्य प्रचंड चाप धारी।
संधानो तो खलु घोर दैत्य मारो।
बाढ़े भू पे जब पाप आप तारो।।

पित्राज्ञा से वनवास में सिधाये।
सीता सौमित्र तुम्हार संग आये।।
किष्किन्धा में हनु सा सुवीर पाई।
लंका पे सागर बाँध की चढ़ाई।।

संहारे रावण को कुटुंब साथा।
गाऊँ सारी महिमा नवाय माथा।।
मेरे को तो प्रभु राम नित्य प्यारे।
वे ऐसे जो भव-भार से उबारे।।

सीता संगे रघुनाथ जी बिराजे।
तीनों भाई, हनुमान साथ साजे।।
शोभा कैसे दरबार की बताऊँ।
या के आगे सुर-लोक तुच्छ पाऊँ।।

ये ही शोभा मन को सदा लुभाये।
ये सारे ही नित 'बासुदेव' ध्याये।।
वो अज्ञानी चरणों पड़ा भिखारी।
आशा ले के बस भक्ति की तिहारी।।
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पुण्डरीक छंद विधान -

"माभाराया" गण से मिले दुलारी।
ये प्यारी छंदस 'पुण्डरीक' न्यारी।।

"माभाराया" = मगण भगण रगण यगण

(222  211  212 122)
12 वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छंद। 4 चरण, 2-2 चरण समतुकान्त।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
25-01-19

Saturday, December 4, 2021

ग़ज़ल (मौत का कुछ तो इंतज़ाम करें)

बह्र:- 2122  1212  22

मौत का कुछ तो इंतज़ाम करें,
नेकियाँ थोड़ी अपने नाम करें।

कुछ सलीका दिखा मिलें पहले,
बात लोगों से फिर तमाम करें।

सर पे औलाद को न इतना चढ़ा,
खाना पीना तलक हराम करें।

दिल में सच्ची रखें मुहब्बत जो,
महफिलों में न इश्क़ आम करें।

वक़्त फिर लौट के न आये कभी,
चाहे जितना भी ताम झाम करें।

या खुदा सरफिरों से तू ही बचा,
रोज हड़तालें, चक्का जाम करें।

पाँच वर्षों तलक तो सुध ली नहीं,
कैसे अब उनको हम सलाम करें।

खा गये देश लूट नेताजी,
आप अब और कोई काम करें।

आज तक जो न कर सका था 'नमन',
काम वो उसके ये कलाम करें।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-11-2018

Saturday, November 27, 2021

पिरामिड "सेवा"


(1)

हाँ 
सेवा,
कलेवा
युक्त मेवा,
परम तुष्टि
जीवन की पुष्टि
वृष्टि-मय ये सृष्टि।
***

(2)

दो 
सेवा?
प्रथम
दीन-हित
कर्म में रत,
शरीर विक्षत?
सेवा-भाव सतत।
***

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
16-07-19

Sunday, November 21, 2021

पुट छंद "रामनवमी"

नवम तिथि सुहानी, चैत्र मासा।
अवधपति करेंगे, ताप नासा।।
सकल गुण निधाना, दुःख हारे।
चरण सर नवाएँ, आज सारे।।

मुदित मन अयोध्या, आज सारी।
दशरथ नृप में भी, मोद भारी।।
हरषित मन तीनों, माइयों का।
जनम दिवस चारों, भाइयों का।।

नवल नगर न्यारा, आज लागे।
इस प्रभु-पुर के तो, भाग्य जागे।।
घर घर ढ़प बाजे, ढोल गाजे।
गलियन रँगरोली, खूब साजे।।

प्रमुदित नर नारी, गीत गायें।
जहँ तहँ मिल धूमें, वे मचायें।।
हम सब मिल के ये, पर्व मानें।
रघुवर-गुण प्यारे, ही बखानें।।
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पुट छंद विधान -

"ननमय" यति राखें, आठ चारा।
'पुट' मधुर रचायें, छंद प्यारा।।

"ननमय" = नगण नगण मगण यगण
111  111  22,2  122 = 12वर्ण, यति 8,4
चार पद दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Thursday, November 18, 2021

मुक्तक (पर्व विशेष-3)

(दिवाली)

दिवाली की बधाई है मेरी साहित्य बन्धुन को,
सभी बहनें सभी भाई करें स्वीकार वन्दन को,
भरे भण्डार लक्ष्मी माँ सभी के प्रार्थना मेरी,
रखें सौहार्द्र नित धारण करें साहित्य चन्दन को।

(1222×4)

दीपोत्सव के, जगमग करें, दीप यूँ ही उरों में।
सारे वैभव, हरदम रहें, आप सब के घरों में।
माता लक्ष्मी, सहज कर दें, आपकी जिंदगी को।
दिवाली पे, 'नमन' करता, मात को गा सुरों में।।

(मन्दाक्रांता छंद)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-10-2016

Sunday, November 14, 2021

गुर्वा (मानव)

भगवन भी पछताये,
शक्तिमान रच मानव,
सृष्टि नष्ट करता दानव।
***

ओस कणों सा है मानव,
संघर्षों की धूप,
अब अस्तित्व करे तांडव।
***

धैर्य धीर धर के निर्लिप्त,
कुटिल हृदय झुँझलाएँ,
कमल पंक में इठलाएँ।
***

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-07-20

Friday, November 12, 2021

चामर छंद "मुरलीधर छवि"

गोप-नार संग नन्दलालजू बिराजते।
मोर पंख माथ पीत वस्त्र गात साजते।
रास के सुरम्य गीत गौ रँभा रँभा कहे।
कोकिला मयूर कीर कूक गान गा रहे।।

श्याम पैर गूँथ के कदंब के तले खड़े।
नील आभ रत्न बाहु-बंद में कई जड़े।।
काछनी मृगेन्द्र लंक में लगे लुभावनी।
श्वेत पुष्प माल कंठ में बड़ी सुहावनी।।

शारदीय चन्द्र की प्रशस्त शुभ्र चांदनी।
दिग्दिगन्त में बिखेरती प्रभा प्रभावनी।।
पुष्प भार से लदे निकुंज भूमि छा रहे।
मालती पलाश से लगे वसुंधरा दहे।।

नन्दलाल बाँसुरी रहे बजाय चाव में।
गोपियाँ समस्त आज हैं विभोर भाव में।।
देव यक्ष संग धेनु ग्वाल बाल झूमते।।
'बासुदेव' ये छटा लखे स्वभाग्य चूमते।।
=================
चामर छंद विधान -

"राजराजरा" सजा रचें सुछंद 'चामरं'।
पक्ष वर्ण छंद गूँज दे समान भ्रामरं।।

"राजराजरा" = रगण जगण रगण जगण रगण
पक्ष वर्ण = पंद्रह वर्ण।

(गुरु लघु ×7)+गुरु = 15 वर्ण

चार चरण दो- दो  या चारों चरण समतुकान्त।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
27-12-16

Thursday, November 11, 2021

मुक्तक (पर्व विशेष-2)

(रक्षा बंधन)

आज राखी आज इस त्योहार की बातें करें।
भाई बहनों के सभी हम प्यार की बातें करें।
नाम बहनों के लिखें हम साल का प्यारा ये दिन।
आज तो बहनों के ही मनुहार की बातें करें।।

(2122*3  212)
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(दशहरा के पावन अवसर पर)

आज दिन रावण मरा था, ये कथा मशहूर जग में,
दिन इसी से दशहरे की, रीत का है नूर जग में,
हम भलाई की बुराई पे मनाएं जीत मिल कर,
है पतन उनका सुनिश्चित, हों जो मद में चूर जग में।

(2122*4)

लोभ बुराई का दुनिया से, हो विनष्ट जब वास,
राम राज्य का लोगों को हो, मन में तब आभास,
विजया दशमी पर हम प्रण कर, अच्छाई लें धार,
धरा पाप से हो विमुक्त जब, वो सच्चा उल्लास।

(सरसी)
****   ***   ***

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-10-2016

Monday, November 8, 2021

ग़ज़ल (देखली है शानो शौकत)

 ग़ज़ल (देखली है शानो शौकत)

बहर:- 2122  2122  212

देखली है शान-ओ-शौकत आपकी,
देखनी है अब हक़ीक़त आपकी।

झेलते आए हैं जिसको अब तलक,
दी हुई सारी ही आफ़त आपकी।

ट्वीटरों पर लम्बी लम्बी झाड़ते,
जानते सारे शराफ़त आपकी।

दुश्मनों की फ़िक्र नफ़रत देश से,
अब न भाती ये तिज़ारत आपकी।

खानदानी देश की संसद समझ,
हो गई काफ़ी सियासत आपकी।

हर जगह मासूमियत के चर्चे हैं,
हाय अल्लाह क्या नज़ाकत आपकी।

वक़्त अब भी कर दिखादें कुछ 'नमन',
इससे ही बच जाये इज्जत आपकी।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-11-2018

Sunday, November 7, 2021

ग़ज़ल (हर सू बीमारी नहीं तो)

बह्र:- 2122  2122  2122  212

हर सू बीमारी नहीं तो और क्या है दोस्तो,
ज़िंदगी भारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

रोग से रिश्वत के कोई अब नहीं महफ़ूज़ है,
ये महामारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

सर छुपाने को न छत है, लोग भूखे सो रहे,
मुफ़लिसी ज़ारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

नारियाँ अस्मत को बेचें, भीख बच्चे माँगते,
घोर बेकारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

रहनुमा जिनको बनाया दुह रहे जनता को वे,
उनकी बदकारी नहीं तो और क्या है दोस्तो। 

जो गया है बीत उसको भूल हम आगे बढ़ें,
ये समझदारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

जो वतन को भूल दुश्मन से मिलाये सुर 'नमन',
उनकी मक्कारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
8-9-19